सच का सामना
गेहूं एक व्यापारिक और थोपी गयी फसल
गेहूं विश्व में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है। गेहूं एक ऐसा अनाज है। जिसे हर भारतीय हर रोज खाता है। रोटी ,पूरी ,ब्रेड ,पाव,पिज्जा ,पास्ता कई प्रकार के खाद्य सामग्री का मुख्य आधार गेहूं ही है।
वही स्वास्थय की दृष्टि से देखे तो मधुमेह ,ब्लडप्रेशर ,आंतो में सूजन ,घाव ,बवासीर ,बाल झड़ना ,व तनाव जैसी बीमारियों की आधारशिला भी गेहू ही है।
गेहूं की खेती पर वैश्विक घरानों का बोलबाला
प्रथम विश्व युद्ध के बाद से ही वैश्विक उद्योग घरानों ने गेहूं पर निवेश प्रारम्भ कर दिया था। गेहूं की मूल फसलों विस्थापित कर सरकारो और षड्यंत्र पूर्ण मार्केटिंग से बदल कर हाइब्रिड और अब जींस प्रौद्योगिकी ( GMO ) फ्रैंकिन व्हीट से बदला जा रहा है। जिसका भुगतान आम जनता कर रही है।वैश्विक रूप से कई विशेषज्ञों की राय में अकेले गेहूं से 70 से 80 बीमारियों का खतरा हो सकता है। लेकिन गेहूं इतना जरूरी हो गया है की कोई भी विकल्प गेहूं की बराबरी नहीं कर सकता है। वैश्विक उद्योग घराने गेहूं और गेहूं के बीजो और गेहूं की खेती सम्बन्धी रसायनों पर दशकों से काबिज है। देखने में गेहूं किसान की फसल ही लगता है। लेकिन गेहू के बीज और गेहू की फसलों पर लगने वाले रसायन व रसायनो के अवयव पूर्णरूप से वैश्विक फ़ूड उधोग घरानो की जागीर है। और बहुत बड़ा व्यापर है जो कुछ पूंजीपतियों की हाथ में है।
गेहूं सबसे ज्यादा एलर्जिक फसल बनी
गेहूं में पाए जाने वाले प्रोटीन ही इसकी विशेषता और मुख्य वजह है। गेहूं में पाए जाने वाले प्रोटीन मुख्यतः ग्लूटेन तथा ग्लैडिन ग्लोबुलीन और एल्बुमिन होते है। अधिकतर जिन लोगों को गेहूं से एलर्जी होती है उनको ग्लूटेन से ही होती है। ग्लूटेन से होने वाली एलर्जी को सीलिएक रोग कहा जाता है। सीलिएक रोग के इतिहास में कुछ धुंधला जिक्र है किन्तु स्पष्ट रूप से 1968 के बाद इस रोग का फैलाव शुरू हुवा था। ( याद रहे -भारत में हरित क्रांति की शुरुवात 1966 से शुरू हुई थी और इसके संस्थापक नार्मन अर्नेस्ट बोरलॉग एक अमरीकी कृषि वैज्ञानिक थे ) जो बढ़ते बढ़ते वैश्विक आबादी का 1 प्रतिशत होने का दावा किया जाता है लेकिन ये दावा वास्तविकता से कम है या ज्यादा कहा नहीं जा सकता है।(सीलिएक रोग पर आगामी लेख में जानकारी दी गई है
लेकिन एक बड़ा प्रश्न ये भी उठता है की अचानक से बरसो से उपभोग में लिए जा रहे गेहूँ से ही लोगो को एलर्जी क्यों होने लगी?
इस सवाल के जवाब में कई खाद्य व चिकित्सीय वैज्ञानिको ने अपने अपने अध्ययन में पाया की गेहू के मूल सरंचना से इतनी छेड़छाड़ हो चुकी है की गेहू अब मानव उपयोग के लिए बिलकुल भी उचित नहीं है।
अमरीकी मूल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ विलियम डेविस अपनी किताब” व्हीट बेली” में गेहू से हो रहे स्वास्थ्य हानि के बारे में विस्तृत रूप बताते है। जिनको लेकर बहुत से खाद्य विशेषज्ञ व चिकित्सीय विशेषज्ञ के दो धड़े हो गए है। एक जो सहमत है दूसरा जो असहमत है। जाहिर है सालाना अरबो करोड़ डॉलर के व्यापर पर उंगली उठेगी तो कोई चुप नहीं रह सकता है।
भारत में भी कई खाद्य विशेषज्ञ अब गेहूँ खाना छोड़ने की वकालत करने लगे है। डॉ खदर वली व डॉ बी एम हेडगे जैसे कई जाने माने विशेषज्ञ बाजरा ज्वार ,रागी जैसे मूल भारतीय अनाज की पैरवी शुरू कर दी है। और भारत में लाखो परिवार मज़बूरी या अच्छी सेहत के लिए गेहूँ के स्थान पर मल्टीग्रेन या ज्वार बाजरे से बने उत्पाद काम में लेना शुरू कर दिया है।
फ़ूडमेन की गेहूँ से हर पहलु को उजागर करने की कोशिश आगे भी जारी है। …
Pingback: सीलिएक रोग - लस असहिष्णुता ( गेंहू की एलर्जी ) भाग 2 - Foodman