सच का सामना
सीलिएक रोग – लस असहिष्णुता ( गेहूं की एलर्जी )- भाग एक
सीलिएक रोग, लस असहिष्णुता यानि गेहूं से एलर्जी या गेहूं पचाने में दिक्कत होने के रोग को कहते है। लेकिन यह रोग न हो कर एक शारीरिक विकार है। जो गेहूं के प्रोटीन के प्रति शरीर की रक्षा प्रणाली की असहिष्णु प्रतिक्रिया के फल स्वरुप होती है।
भारत में लस असहिष्णुता स्थिति भयानक स्तर तक पहुंच चुकी है। हर साल 10 लाख से ज्यादा नए लस असहिष्णुता (सीलिएक ) रोगी रिपोर्ट हो रहे है। जिसमे सबसे ज्यादा मरीज छोटे बच्चे व नाबालिग उम्र के बच्चे प्रभावित हुवे है।
लस असहिष्णुता का कोई इलाज हाल फ़िलहाल में उपलब्ध नहीं है। एक मात्र बचाव गेंहू और गेंहू से बने खाद्य सामग्री सेवन न करना ही है। यही कारण है की भारत में मल्टी ग्रेन व ग्लूटन फ्री आटे और उत्पाद की मांग हर साल 130 प्रतिशत की वृद्धि से बढ़त में है। अब तो शिशु उत्पाद भी ग्लूटन फ्री बाजार में उपलब्ध है। जो साधारण शिशु खाद्य उत्पाद से दोगुने से भी अधिक महंगे है।
इन सब के बावजूद भारतीय समाज में गेहूँ के प्रति कोई सजगता या जाग्रति नहीं दिखाई देती है। और सरकार व जनहित एजेंसियों को भी कारण को पता करने की नियत में उदासीनता और खोट साफ साफ देखने को मिलती है। वजह साफ है गेहू खाना ही तो छोड़ना है। आसान बचाव है।
बाजार और खाने की भारतीय आदतों बारे में विवेचना करे तो लगभग हर पके पकाय या रेडीमेड भोजन के साथ गेहू या गेहू से प्राप्त अवयव उपयोग होता है। खास तौर पर पैक्ड फ़ूड में। वही दूसरी और देखे तो रेस्टोरेंट और ढाबा ,होटल आदि में भी ग्लूटन फ्री भोजन का विकल्प अभी तक उपलब्ध नहीं है। ( एक दो अपवादों को छोड़ कर ) ऐसे में ग्लूटन या गेंहू के प्रोटीन से बचना सोचने जितना आसान नहीं है।
लस असहिष्णुता के कारणों की पड़ताल में फ़ूडमेन के सामने कई चौंका देने वाले तथ्य सामने आये है। गेंहू की हाईब्रीडिंग या गेंहू के संकरण ( दो या दो से अधिक प्रजातियों का एक में संगम ) प्रमुख कारणों में से एक है। गेहूं की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से ही युद्ध स्तर पर काम शुरू हो गया था।
इतिहास में लस असहिष्णुता के कोई खास उदाहरण देखने को नहीं मिले है लेकिन तार जोड़ने की धुंधली कोशिशे देखने को मिलेगी। क्यों की वैश्विक खाद्य उधोग घराने अपने पर कोई उठती उंगली नहीं चाहते इसलिए लस असहिष्णुता का भी इतिहास गढ़ दिया गया है। भारत के इतिहास में लस असहिष्णुता का कोई मामला देखने को नहीं मिलता है। मगर भूख से मरने का इतिहास भारत के इतिहास के काले पन्नो पर भरा पड़ा है। गेंहू की फसल का उत्पादन बढ़ाने और लस असहिष्णुता ( सीलिएक ) के कारणों की फ़ूडमेन ने अपने संसाधनों के जरिये पड़ताल की है। क्रमशः जारी
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