सच का सामना

सीलिएक रोग – लस असहिष्णुता ( गेंहू की एलर्जी ) भाग 2

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लस असहष्णुता धीरे धीरे अपने पाँव पसार रही है। जिसका मुख्य कारण गेंहू की जीन सरंचना में मनुष्यो द्वारा की जा रही छेड़छाड़ है। खेती की उपज बढ़ाने के नाम पर कई बड़े वैश्विक खाद्य कॉर्पोरेट घराने बीज व्यापर और दवा बाजार को अपने हाथ में बनाये रखने के लिए हाइब्रिड का छद्मावरण ( प्रोपोगेंडा ) फैलाये हुवे है। दवा व्यापर और खाद्य बीजो को बनाने वाले वैश्विक खाद्य कॉर्पोरेट घराने सरकारों को गुमराह करके या मंत्रियो अधिकारियो  को रिश्वत दे ऐसा कर रहे है। भारत में अजीनोमोटो या MSG ( Mono sodium glutamate ) को मंजूरी को लेकर ऐसा ही कुछ हुवा होगा आशंका है। क्यों की MSG की शुरुवात रिपोर्ट नाकारत्मक होने के बावजूद क्या कारण थे की ये मंजूर कर दी गई।  ख़ैर ।

गेहूँ में मौजूद प्रोटीन ग्लूटन के ग्लियाडिन  पेप्टाइड सीलिएक रोग के लिए जिम्मेदार माना जाता है।  लेकिन यह भी पूरी तरह से सच नहीं है। गेंहू के प्रोटीन के अलावा गेंहूँ में मौजूद विटामिन व मिनरल्स भी  लस असहिष्णुता  होने के जिम्मेदार पाए गए है। लेकिन इन तथ्यों पर कोई शोध सार्वजनिक नहीं किया जाता है। लस असहिष्णुता  के अन्य  कारण है क्षेत्रीयता – क्षेत्रीयता से तात्पर्य विशेष क्षेत्र के लोगों के पाचन व चयापचय में उनके स्थानीय खाद्य उत्पादों के रहने के कारण दूसरे क्षेत्र के खाद्य पदार्थ के पचने में आसानी नहीं होती है। यह समस्या मानव विकास की एक त्रुटि है।

सुनने में अजीब लगेगा लेकिन समझने की कोशिश कीजिए कि  भारत का मूल निवासी  अमेरिका का गेहू अच्छे से नहीं बचा पायेगा और यही हाल अमेरिका निवासी का भारत में आने या भारत के गेंहू खाने से होगा। लेकिन इस बात का पता करने के लिए फ़ूडमेन ने इंटरनेट और दूसरे संसाधनों का इस्तेमाल करते हुवे गहन अधय्यन किया। और पाया की भारतीय अप्रवासियों में जो विदेश में बसे है उनमे वहां के गेहूँ से दिक्कत पेश आ रही है।  कनाडा के एक सर्वे में भी इस बात की पुष्टि की है।

कनाडा में बसे भारतीयों में  लस असहष्णुता  अधिक पायी जा रही है स्थानीय मूल निवासियों की तुलना में जिससे ये बात स्पष्ट होती है। जो जहाँ का रहने वाला है वही की खाद्य सामग्री उसके लिए उत्तम रहेगी ना की विदेशी या परदेशी खाद्य सामग्री। हमें हमेशा लगता है। की भारतीय आटा ,रसगुल्ले भुजिया ,मसाले एक्सपोर्ट हो रहे है वो विदेशी काम में ले रहे होंगे। जबकि सच्चाई ये है की विदेशो में बसे प्रवासी भारतीय ही भारतीय खाद्य वस्तुओं के ग्राहक है। और उनको विदेशो के स्थानीय भोजन के साथ समस्या रहती है।

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देश में बढ़ रही खाद्य एलर्जी के मुख्य स्त्रोत खाद्य प्रदार्थो में विदेशी सामग्री हो सकती है। जो की जाँच और शोध का विषय है । लेकिन बाजारवाद और चमक दमक के विज्ञापन ऐसे किसी भी जन स्वास्थ्य और जनहित के मुद्दे को धुंधला कर देते है। जिनसे इनकी बिक्री पर फर्क पड़े। जन स्वास्थ्य से इनको कोई लेना देना नहीं होता है। और जो संस्थाए इन पर लगाम कसने का काम करती है। वो कई रहस्यमय कारणों से उदासीन है।और मीडिया इनके विज्ञापनों के बोझ में इतनी दबी रहती है की इन खाद्य  कंपनियों पर उठे किसी भी खबर को दबा दिया जाता है।
लस असहष्णुता के और भी कारण और खाद्य एलर्जी व विषाक्त पर फ़ूडमेंन की नजर बनी  हुई है।

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