कंज्यूमर कार्नर
गेंहू और गेहूं की तलब : भाग 1
जानलेवा होता पापी पेट
इसी साल फरवरी के दूसरे हफ्ते में केरल के इडुक्की जिले में 11वी में पढ़ने वाली नयन मारिया की मौत गेंहू का पराठा खाने से हो गई। उसका गेंहू की एलर्जी के लिए इलाज भी चल रहा था। लेकिन फिर भी छात्रा ने इलाज के परिणाम को देखने या अपनी गेहूं की प्रति लालसा के वश गेंहू का पराठा खा लिया। जिसके चलते उसकी मौत हो गई। यह कोई पहली घटना नहीं है। न ही आखरी दक्षिण भारत में ऐसी खबरों को लेकर विशेष चेतना है। जबकि उत्तरभारत व अन्य हिंदी पट्टी क्षेत्र में ऐसी खबरों को छापा ही नहीं जाता या खबर के सन्दर्भ के रूप कोई पत्रकारिता नहीं होती है।
सिलिअक डिसीज ,या गेंहू से एलर्जी या असहिष्णुता के मरीजो में भी गेंहूं को लेकर क्रेविंग या तलब के लक्षण देखे गए है। जो की एक जाँच का विषय है।
फ़ूडमेन समय समय पर जनता से किसी न किसी बहाने जनता में जागरूकता और जानकारी के लिए जनता के बीच में पहुंच कर साधारण रूप से उनसे संवाद करता है।
भारत में रोटी का अर्थ ही गेंहूँ की रोटी है।यदि किसी डायबिटीज के मरीज को गेहूं रोटी के विकल्प में कुछ और खाने को कहा जाये तो वो ऐसे असंभव जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकता है। गेहूं के आलावा मोटे अनाज को किसी भी रूप में वो रोटी के विकल्प में इस्तेमाल कर सके। गेहूं की रोटी का सेवन किसी मादक पदार्थ के जैसा हो गया है। जो किसी न किसी रूप में भारतीय खाना जरूर चाहेगा
ऐसे में उसको समझाया तो जा सकता है। लेकिन उससे छुड़वाना अत्यंत दुर्लभ है।
हालाँकि देखा जाये तो आजादी से पहले गेंहूँ मात्र अमीरो और अंग्रेजो तक ही सिमित था लेकिन आजदी के से पूर्व और बाद के वर्षो में अंग्रेजो की नीति से हुवे अनाज की कमी को पूरा करने विदेशी गेंहूं ही सहारा बने और ऐसे बने की आज किसी को गेंहू को छोड़ने का कहा जाये तो वो उस स्थिति की कल्पना भी नहीं कर सकता।
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