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सच का सामना

गेहूं एक  व्यापारिक और थोपी गयी  फसल 

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गेहूं विश्व में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है। गेहूं एक ऐसा अनाज है। जिसे हर भारतीय हर रोज खाता है। रोटी ,पूरी ,ब्रेड ,पाव,पिज्जा ,पास्ता  कई प्रकार के खाद्य सामग्री का मुख्य आधार गेहूं ही है।
वही स्वास्थय की दृष्टि से देखे तो मधुमेह ,ब्लडप्रेशर ,आंतो में सूजन ,घाव ,बवासीर ,बाल झड़ना ,व तनाव जैसी बीमारियों की आधारशिला भी गेहू ही है।
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 गेहूं की खेती पर वैश्विक घरानों का बोलबाला 
प्रथम विश्व युद्ध के बाद से ही वैश्विक उद्योग घरानों ने गेहूं पर निवेश प्रारम्भ कर दिया था। गेहूं की मूल फसलों विस्थापित कर  सरकारो और षड्यंत्र पूर्ण मार्केटिंग से बदल कर हाइब्रिड और अब जींस प्रौद्योगिकी ( GMO ) फ्रैंकिन व्हीट  से बदला जा रहा है। जिसका भुगतान आम जनता कर रही है।वैश्विक रूप से कई विशेषज्ञों की राय में अकेले गेहूं से 70 से 80 बीमारियों का खतरा हो सकता है।  लेकिन गेहूं इतना जरूरी हो गया है की कोई भी विकल्प गेहूं की बराबरी नहीं कर सकता है। वैश्विक उद्योग घराने  गेहूं और  गेहूं के बीजो और गेहूं की खेती सम्बन्धी रसायनों पर दशकों से काबिज है। देखने में गेहूं किसान की फसल ही लगता है। लेकिन गेहू के बीज और गेहू की फसलों पर लगने वाले रसायन व रसायनो के अवयव पूर्णरूप से वैश्विक फ़ूड उधोग घरानो की जागीर है। और बहुत बड़ा व्यापर है जो कुछ पूंजीपतियों की हाथ में है।
 गेहूं सबसे ज्यादा एलर्जिक फसल बनी
गेहूं में पाए जाने वाले प्रोटीन ही इसकी विशेषता और मुख्य वजह है। गेहूं में पाए जाने वाले प्रोटीन मुख्यतः ग्लूटेन तथा  ग्लैडिन ग्लोबुलीन और एल्बुमिन होते है। अधिकतर जिन लोगों को गेहूं से एलर्जी होती है उनको ग्लूटेन से ही होती है। ग्लूटेन से होने वाली एलर्जी को सीलिएक रोग कहा जाता है। सीलिएक रोग के इतिहास में कुछ धुंधला जिक्र है किन्तु स्पष्ट रूप से 1968 के बाद इस रोग का फैलाव शुरू हुवा था। ( याद रहे -भारत में हरित क्रांति की शुरुवात 1966 से शुरू हुई थी और इसके संस्थापक नार्मन अर्नेस्ट बोरलॉग एक अमरीकी कृषि वैज्ञानिक थे ) जो बढ़ते बढ़ते वैश्विक आबादी का  1 प्रतिशत होने का दावा किया जाता है लेकिन ये दावा वास्तविकता से कम है या ज्यादा कहा नहीं जा सकता है।(सीलिएक रोग पर आगामी लेख में जानकारी दी गई है
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लेकिन एक बड़ा प्रश्न ये भी उठता है की अचानक से बरसो से उपभोग में लिए जा रहे गेहूँ से ही लोगो को एलर्जी क्यों होने लगी?
इस सवाल के जवाब में कई खाद्य व चिकित्सीय वैज्ञानिको ने अपने अपने अध्ययन में पाया की गेहू के मूल सरंचना से इतनी छेड़छाड़ हो चुकी है की गेहू अब मानव उपयोग के लिए बिलकुल भी उचित नहीं है।
अमरीकी मूल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ विलियम डेविस अपनी किताब” व्हीट बेली” में गेहू से हो रहे स्वास्थ्य हानि के बारे में विस्तृत रूप बताते है। जिनको लेकर बहुत से खाद्य विशेषज्ञ व चिकित्सीय विशेषज्ञ के दो धड़े हो गए है। एक जो सहमत है दूसरा जो असहमत है। जाहिर है सालाना अरबो करोड़ डॉलर के व्यापर पर उंगली उठेगी तो कोई चुप नहीं रह सकता है।
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               भारत में भी कई खाद्य विशेषज्ञ अब गेहूँ खाना छोड़ने की वकालत करने लगे है। डॉ खदर वली व डॉ बी एम हेडगे जैसे कई जाने माने विशेषज्ञ बाजरा ज्वार ,रागी जैसे मूल भारतीय अनाज की पैरवी शुरू कर दी है। और भारत में लाखो परिवार मज़बूरी या अच्छी सेहत के लिए गेहूँ के स्थान पर मल्टीग्रेन या ज्वार बाजरे से बने उत्पाद काम में लेना शुरू कर दिया है।
फ़ूडमेन की  गेहूँ से हर पहलु को उजागर करने की कोशिश आगे भी जारी है। …

कंज्यूमर कार्नर

तो क्या अब होटल रेस्टोरेंट में खाना खाने की पूरी  वीडियोग्राफी जरुरी हो गई है ?

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वीडियोग्राफी

क्या हर पैकेज फ़ूड को अनपैक करते वीडियोग्राफी  जरुरी हो गई है ?

तो क्या अब हर खाने पीने से पहले खाने की  वीडियोग्राफी जरुरी हो गई है? ये बात हम इस लिए पूछ रहे है। क्यों की देश भर में पिछले कई महीनो से पैक्ड प्रोसेस फ़ूड और होटल रेस्टोरेंट आदि से खाने में जिन्दा कीड़े ,मरे हुवे कीड़े कॉकरोच ,चूहे ,छिपकली ,यहाँ तक की इंसानी उंगली तक के  निकलने के विडिओ सोशल मिडिया में वाइरल हो रहे है। कुछ को फेक माना जा सकता है। या जानबूझ कर डॉक्टर्ड वीडिओ माना जा सकता है।लेकिन हर एक को नहीं।  

वंदेभारत जैसी आधुनिक ट्रेनों के खाने में भी कॉकरोच ,कीड़े मिल रहे है। 18 जून 2024 भोपाल से आगरा जाने वाले भारत एक्सप्रेस में IRCTC द्वारा परोसे खाने में कॉकरोच निकला जिस पर रेलवे ने माफ़ी जरूर मांगी लेकिन कार्यवाही क्या हुई ?पता नहीं। पुणे में एक डॉक्टर की आइसक्रीम में इंसानी ऊँगली निकली। मामला हैरान करदेने वाला था। ऐसे ही गुजरात से कई विडिओ वायरल हुए  जिनमे होटल रेस्टोरें के खाने में छिपकली और जिन्दा कीड़े खाने में पाए गए है। 

लेकिन हर सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता है।ऐसे में FSSAI पर उंगली उठना तथा स्थानीय खाद्य सुरक्षा विभाग पर उंगली उठाना जायज है। लेकिन उपभोक्ता विशेष कर पीड़ित उपभोक्ता क्या कर रहा है ? क्या रील बना कर सम्बंधित होटल रेस्टोरेंट या प्रोडक्ट का नाम रील में लेकर न्याय मिल जाता है। सम्बंधित होटल रेस्टोरेंट की पीड़ित उपभोक्ता को  तुरंत क्षतिपूर्ति और माफीनामा न्याय है?  रेस्टोरेंट कर्मचारियों द्वारा मारपीट ?

ये उपभोक्ता कानून व अधिकारों और खाद्य कानूनों की अवहेलना है। ऐसी घटनाओ में पीड़ित उपभोक्ता को मिली तुरंत क्षतिपूर्ति व माफीनामा संबंधित होटल और रेस्टोरेंट को भविष्य में भी ऐसी लापरवाहियां करने की छूट देती है। जिससे कोई सुधर की उम्मीद नहीं की जा सकती बल्कि यह ऐसी लापरवाही करने वालो के होंसले और बुलंद कर देती है। लेकिन क़ानूनी झमेले में कौन फंसना चाहता है। भारत का नागरिक न्याय के मुकाबले समझौता करना ज्यादा पसंद करता है।  

दूसरा खाद्य सुरक्षा व उपभोक्ता कानून के लूपहोल्स होने की वजह से भी उपभोक्ता कोर्ट में चला भी जाये तो ठगा सा ही महसूस करता है। पैकेज फ़ूड का खुल्ला पैकेट सबूत नहीं माना  जाता है। और न ही होटल रेस्टोरेंट के दूषित भोजन को कोर्ट में साबुत माना  जाता है। 

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ऐसे में हर पैकेट की अनबॉक्सिंग और होटल रेस्टोरेंट में खाते समय पूरी वीडियोग्राफी की आवशयकता पड़ेगी। सरकार और FSSAI ने ऑनलाइन शिकायत की व्यवस्था तो की है लेकिन कोई त्वरित कार्यवाही नहीं होती है।और कोर्ट में सबूत के तौर पर वह संबंधित खाना या उत्पाद सुरक्षित नहीं रखा जा सकता।  सिवाय FSL रिपोर्ट पर ही मुकदमा चलता है। जिसे आने में महीनों लग जाते है और अधिकतर मामलों में समझौता कर,डरा कर ,या लालच दे कर केस रफा दफा कर दिया जाता है। 

 ऐसे में उपभोक्ता अपनी शिकायत के साथ उपभोक्ता अदालतों में जाना नहीं चाहता है। और सरकार और जिम्मेदार खाद्य सुरक्षा विभाग अपनी तरफ से कोई खास कदम नहीं उठाते। हां ऐसे विडिओ वायरल करके उपभोक्ता मात्र संतुष्ट हो जाता है की उसने कुछ तो किया। 

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जानलेवा घी ,संस्कारहीन पूजा, अज्ञानी जनता , मस्त होते अफसर

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जानलेवा घी

हमारे देश में घी कितना जानलेवा  हो सकता है। इसका अंदाजा भी आम नागरिक नहीं लगा सकता है।  

अभी  24 फ़रवरी को जोधपुर की सीआईडी (CID) ने जोधपुर थाना क्षेत्र महादेव इलाके के मंडोर स्थित एक ऋषभ ट्रेडर्स नामक  गोदाम में छापा मारते हुए  २० हजार लीटर से भी अधिक मिलावटी घी को रंगे  हाथो पकड़ा ,फ़िलहाल घी को सीज कर लिया गया है व इसकी सेम्लिंग के लिए खाद्य सुरक्षा अधिकारियो को मौके से बुलाया गया।  आगे की कार्यवाही जाँच शुरू कर दी गई है।ऋषभ ट्रेडर्स  गोदाम से मजदूरों व कामगारों को गिरफ्तार किया गया है। जबकि मुख्य आरोपी फ़िलहाल फरार बताया जा रहा है। 

जानलेवा घी

देश में हर रोज कहीं  ना कहीं से नकली मिलावटी व जानलेवा घी दूध व दूध  के उत्पाद पकडे जाते है।  मजे की बात ये की FSSAI के राज्य व जिला अधिकारी  कुर्सियां तोड़ने के अलावा कुछ नहीं करते है। 

द इकोनॉमिक्स  टाइम्स की एक खबर के अनुसार 69 प्रतिशत दूध व दूध के उत्पाद नकली है। साल 2021 में  भारत में एक दिन में 64 करोड़ से भी अधिक दूध व दूध के उत्पादों की खपत है। जबकि असल में उत्पादन मात्र 14 करोड़ लीटर का  ही था । अब जबकि नकली  असली का अनुपात और भी बढ़ चुका  है। लेकिन इसके आधिकारिक आंकड़े फ़िलहाल सार्वजानिक नहीं है। 

साल 2021 में  आगरा जिले (उ. प्र. ) में खंदौली कस्बे में मोहल्ला व्यापारियान में मृत जानवरो जैसे गाय ,भैंस , सूअर  ,मुर्गियों की चर्बी को चूल्हे पर कढ़ाई में पिघला कर मिलावटी व जानलेवा घी बनाने मामला सामने आया था। इस पर भी पुलिस ने ही कार्यवाही करते हुए  100 किलो मिलावटी जानलेवा घी को जप्त किया व खाद्य सुरक्षा अधिकारी को घटना स्थल पर बुला कर सेम्पल लिए गए। इसमें करीब चार लोगो को गिरफ्तार किया गया था  तथा जालसाजी व  धोखाधड़ी में  FSS एक्ट  की धारा भी  लगायी गई थी लेकिन तीन साल में अभियुक्तों के साथ क्या हुआ  इसको लेकर कोई समाचार नहीं है। 

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अब ऐसे कारखाने दूरदराज व जंगलो और मृत पशु जिनको शहरों के बाहर डलवाया जाता है वहा अब ऐसे गौरख घंधे चल रहे हैं ।

साल 2023 में   सितंबर में  उत्तराखंड के उधमसिंह नगर पुलभट्टा थाना  क्षेत्र की पुलिस ने एक मुखबिर की सूचना पर जानवरो की चर्बी से घी बनाने वाले कारखाने पर छापा मारते हुए  205 कनस्तर मिलावटी व जानलेवा घी  जप्त किये गए थे तथा चार लोगो को गिरफ्तार भी किया गया था। इन अभियुक्तों ने बताया था कि  ये पशु चर्बी मिलावटी व जानलेवा घी  व वनस्पति घी बनाने वाली फैक्ट्री में सप्लाई किया करते थे। 

वही मुजफ्फरनगर (उ प्र ) में 50 क्विंटल जानवरो की चर्बी को बरामद किया गया था । 

22 अगस्त 2023 दिल्ली के मोतिया खान मस्जिद के पास जानवरो की चर्बी से मिलावटी व जानलेवा घी बनाने के मामले में  दिल्ली हाईकोर्ट में जानवरो की चर्बी से बने घी को लेकर एक याचिका भी दायर की गई थी ।  मजे की बात ये है कि असामाजिक तत्वों  द्वारा रिहाइशी इलाके में यह काम चल रहा था  तथा आम नागरिको को बदबू बर्दास्त करनी पड़  रही थी जो  कि संविधान  की धारा 21 का उलंघन है। 

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जानलेवा घी

फ़ूडमेन ने इस विषय को लेकर मोहन सिंह अहलूवालिया ( हरियाणा सरकार पूर्व कमिशनर, जंतु कल्याण बोर्ड अध्यक्ष  तथा वर्तमान में  ग्वाला गद्दी खेड़ा खेड़ी 

जीरक पूर ,वैश्विक वैदिक प्रमुख ) से  बात  की जिसमे अहलूवालिया जी ने साफ तौर  पर कहा कि  FSSAI अभी तक बट्टर आयल और घी में फरक करना ही नहीं चाहती।  FSSAI  या तो अज्ञानता में जी रही है या  जानबूझ कर अनजान बनी हुई है। FSSAI ने  घी  और  बटर आयल की भी कोई  परिभाषा अभी तक नहीं बताई है। मात्र फेट और कुछ मानक ही स्थापित किये है जो जानवरों की फेट और दूध की फेट में अंतर नहीं कर पाते या करना नहीं चाहते।  बाजार  में उपलब्ध घी  को वैदिक रूप से पूजा योग्य समझ कर भोली जनता धर्म कर्म में इस्तेमाल कर रही है। जनता अंधी हो कर इसके दिए त्योहारों में जलाती है चाहे इसमें पशु चर्बी मिली हो। 

जानलेवा घी
मोहन सिंह अहलूवालिया

भारतीय ज्ञान में  बटर आयल जैसी किसी भी उत्पाद की जगह  नहीं है, ये केवल विदेशी माल को देश में खपाने के लिए  घी बनाने के काम में उपयोग होता है।

भारत सरकार को इस तरफ और ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है। केवल विज्ञान पढ़े लोग या दूसरे विषय के लोग ही नहीं, काबिल व फ़ूड साइंस संबंधी ज्ञानी लोगो को FSSAI में जगह मिलनी चाहिये। फ़िलहाल FSSAI एक कॉर्पोरेट संचालित संस्था है। जिसकी प्राथमिकता उधोगो को फायदा पहुंचना होता है ना कि आम नागरिक के स्वास्थ्य को लेकर काम करना । आम आदमी खान पान की सुरक्षा को लेकर भारत मे राम भरोसे ही है। 

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अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद। श्री राम मंदिर  के नाम का उपयोग। 

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अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद

उपभोक्ता प्राधिकरण ने अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद बिक्री पर थमाया नोटिस। 

22 जनवरी को श्री राम मंदिर का उद्घाटन  कार्यक्रम है। और अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद बेचा जा रहा है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हमारे देश के व्यापारियों में कुछ ऐसे असामाजिक तत्व है। जिनका मकसद मात्र लाभ कमाने के लिए बड़े से बड़ा झूठ बोलने को तैयार रहते है। ऐसे में अमेजॉन जैसे बड़े ऑनलाइन प्लेटफॉर्म इनको स्थानीय से ग्लोबल मौका देते है। 

अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद

22 जनवरी श्री राम मंदिर के उद्धघाटन में व्यस्त केंद्र सरकार के अधिकारी उस समय अचंभित रह गए जब उनको ऑनलाइन श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का प्रसाद ऑनलाइन बिक्री की सबसे बड़ी कम्पनी अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद बेचते पाया गया। हैरान कर देने वाली इस खबर का संज्ञान लेते हुवे केंद्रीय उपभोक्ता सरक्षण प्राधिकरण (CCPA ) ने अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद बेचने के नाम पर भ्रामक विज्ञापन कर मिठाई बेचने के लिए अमेजॉन को नोटिस दिया है।यह कार्यवाही  कार्न्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) की एक शिकायत के आधार पर केंद्र सरकार के तहत आने वाले नियामक प्राधिकरण की ओर से की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि  अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद राम मंदिर  के प्रसाद के  नाम से  मिठाइयों की बिक्री कर रहा है। 

अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद

आस्था के नाम पर इस देश में पहले से ही लूट और धोखेबाजी चल ही रही है।  अब अमेजॉन जैसे बड़े ऑनलाइन मार्किट पर भी आस्थागत धोकेबाजी होती जा रही है।  ऐसा पहली बार नहीं है की अमेजॉन पर धोका धड़ी के आरोप लगे है। वास्तविकता में अमेजॉन जैसे ऑनलाइन मार्किट मात्र ग्राहक और दुकानदार की बीच की कड़ी का काम करती है। जहां अमेजॉन अपनी नीतियों और जिम्मेदारी पर विक्रेताओं को अपना ऑनलाइन प्लेटफॉर्म इस्तेमाल करने देता है।

अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद बेचने का यह पहला मामला नहीं इससे पूर्व भी अमेजॉन के बायर्स पर मोबाइल के नाम पर साबुन टिकिया ,पत्थर ,या खाली डब्बे आदि व नकली सामान भेजने की ग्राहकों से शिकायते मिलती रहती है। यह पहली बार है की केंद्र सरकार  के कार्यक्रम व आस्था के नाम पर ग्राहकों को अमेजॉन के सहारे धोखा दिया जा रहा है। 

अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद

सूत्रों के अनुसार  उपभोक्ता प्राधिकरण ने अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद बिक्री पर  सात दिनों में जवाब मांगा है. साथ ही चेतावनी दी है कि जवाब देने में विफल रहने पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के तहत कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इस बीच, कंपनी ने कहा कि वे इस बारे में उचित कार्रवाई कर रहे हैं. सीसीपीए की ओर से बताया गया है, अधिकारियों ने देखा कि विभिन्न मिठाइयां/खाने की वस्तुएं  अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद  पर बिक्री के लिए हैं, जिन्हें श्री राम मंदिर अयोध्या प्रसाद होने का दावा किया गया है. आरोप है कि ग्राहकों को भ्रमित किया जा रहा है। 

  बिक्री के लिए  अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद  पर लिमिटेड प्रोडक्ट्स पर ‘श्री राम मंदिर अयोध्या प्रसाद- रघुपति घी लड्डू’, ‘अयोध्या राम मंदिर अयोध्या प्रसाद- खोया खोबी लड्डू’, ‘राम मंदिर अयोध्या प्रसाद – देसी गाय के दूध का पेड़ा’ लिखा हुआ है। 

  उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ‘भ्रामक विज्ञापन’ पर प्रतिबंध लगाता है, जो ऐसे प्रोडेक्ट या सर्विस की गलत जानकारी देता है. उधर, अमेजॉन ने एक बयान में कहा कि कंपनी अपनी नीतियों के अनुसार उचित कार्रवाई कर रही है. अमेजॉन के प्रवक्ता की ओर से कहा गया है कि हमें कुछ विक्रेताओं की ओर से भ्रामक उत्पाद दावों और उनके उल्लंघन की जांच के संबंध में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) से कहा गया है। 

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 केंद्रीय प्राधिकरण ने कहा कि इस तरह की भ्रामक जानकारी और सूचना ग्राहकों को प्रभावित करती है. उल्लेखनीय है कि उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 के नियम 4(3) के तहत, कोई भी ई-कॉमर्स इकाई अनुचित व्यापार व्यवहार नहीं कर सकता है। 

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बाजार में बिक रही है गंदे पानी की सब्जियां। 

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गंदे पानी

गंदे पानी की सब्जियों पर प्रशासन मौन। 

गंदे पानी की सब्जियां यानी सब्जियों की सिंचाई के लिए गटर ,नाली ,और फैक्ट्रियों से निकले पानी के  उपयोग से सब्जियां उगाना तथा सब्जियों को धोने के लिए भी गंदे पानी का ही उपयोग करना। 

गंदे पानी की सब्जियां आज हर शहर के बाजारों की सच्चाई है। ताजी सब्जियों के नाम पर ये जहरीली सब्जियां मंडियों से लेकर हमरे फ्रिज और रसोई और खाने में आसानी से मिल जाती है। गंदे पानी की सब्जियों की कोई खास निशानी नहीं होती है। लेकिन स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक होती है। हर रोज देश  के करोड़ों लोग रोज इन्ही सब्जियों का उपयोग करने के लिए मजबूर है। 

गंदे पानी

हर शहर के बाहर जहां शहर के गंदे पानी की निकासी या ट्रिटमेन्ट प्लांट आदि होते है उसके आसपास की जमीन भूमाफिया द्वारा ही खरीदी हुई होती है। जिसे किसानों को या मजदूरों के जरिये सब्जियां उगाई जाती है तथा  शहरो के गंदे पानी की सब्जियां उसी शहर में बेचने के लिए  भेज दी जाती है। तेरा तुझको अर्पण। 

ऐसा नहीं है की सिर्फ किसानों द्वारा ही गंदे पानी में सब्जियां उगाई जाती है। यह बहुत ही प्रायोजित और सामूहिक लाभ व सामूहिक उदासीनता का नतीजा है। 

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शहरो के आसपास के इलाके ऐसी सब्जियां उगाई जाती है। किसी न किसी प्रभावशाली व्यक्ति या भूमाफिया से जुडी होती है। जिसके चलते आम नागरिक इनसे उलझने की कोशिश ही नहीं करता और शिकायत कर भी दे तो कार्यवाही होते होते फैसले कट के बाजार में बिक जाती है और दिखावे के लिए कुछ  बीघा की फसल नष्ट करके प्रशासन अखबारों में सुर्खियां बटोर लेता है। 

गंदे पानी

आमतौर पर गंदे पानी की निकासी या ट्रीटमेंट प्लांट शहर से दूर या शहर के सुनसान इलाको में ही लगाए जाते है। जिसके चलते आम आदमी वहा आना जाना बहुत ही कम या ना के बराबर ही होता है। तथा ट्रीटमेंट प्लांट भी सरकारी या निजी कम्पनियो के हाथ में होते है जिनको गंदे पानी को साफ़ करके सिंचाई के लिए आगे भेजना होता है। पानी को साफ करने की लागत को कम करने के लिए गटर के पानी  को आसपास फैला दिया जाता है ताकि वो जल्दी सुख जाये। ऐसे में आसपास की जमीनों में खेती होने लगती है।सिंचाई के  पानी की गुणवक्ता के निरिक्षण के लिए हर शहर में कृषि विभाग होता है। लेकिन फिर ट्रीटमेंट प्लांट से निकले मामूली साफ़ पानी से सिंचाई की जा रही है। 

सिर्फ गटर के पानी  की सब्जियां ही हानिकारक नहीं होती बल्कि गटर के पानी  को साफ करने वाले ट्रीटमेंट प्लांट की लापरवाही से निकलते पानी में लगी फसल भी जहरीली ही होती है। 

गटर के पानी  की सब्जियों से कैसे बचे 

(1 ) आमतौर पर गटर के पानी  में पालक ,गोभी ,मूली ,हरे प्याज ,पत्तेदार सब्जियां की ही फसले लगाई जाती है। इनको उपयोग लेने से बचे। 

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(2 ) ऐसी सब्जियों को नमक के गर्म पानी में कुछ देर रख कर धोये व बाद में साफ पानी से धोले। 

(3 ) ऐसी सब्जियों को कच्चा खाने से बचे। 

पकाने से गटर के पानी  की सब्जियों के जहर और भारी धातुओं में कोई कमी नहीं आती है। लेकिन खाद्य संदूषको  (इ-कोलाई जैसे बैक्टीरिया व फंगस ) को कम किया जा सकता है। 

गंदे पानी

गंदे पानी की सब्जियां व फसलों से बचाव के राज्य सरकरो व केंद्र को सशक्त कानून बनाने होंगे।न सिर्फ गंदे पानी में खेती के अपितु शहर के गंदे पानी की निकासी और उसकी सफाई को लेकर भी कड़े कानून बनाने होंगे। 

फ़ूडमेंन हमेशा से खाने पीने में साफ सफाई तथा प्राकृतिक खेती को लेकर अग्रसर रहा है। तथा अपने पाठकों को बाजार के खाने पीने के खतरों के साथ साथ बचाव व एक सामूहिक प्रयास करने के लिए जनता में जागृति लाने का काम कर रहा है रहा है।  

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भारत के ब्रांडेड शहद में चीनी की मिलावट। 

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ब्रांडेड शहद

ब्रांडेड शहद के नाम पर ग्राहकों से ठगी। 

भारतीय बाजारों में मिलावटी ब्रांडेड शहद धड्ड्ले से बेचा जा रहा है।  इसके  प्राकृतिक कारण है जो मनुष्यो की शहद उत्पादन में दखल की वजह से होता है। वही कई कम्पनी जानबूझ भारत के बाजारों में अपना ब्रांडेड शहद बेच रही है। जबकि एक्सपोर्ट में शुद्ध शहद भेज रही है। अपने ही देश वासियो को मिलावटी ब्रांडेड शहद खिलाने वाली कम्पनीज भारतीय ही है। 

 मधुमक्खियां इंसानो के लिए नहीं बल्कि अपने जरुरत और अपने लार्वा पालने के लिए शहद को बनाती है। लेकिन अपने स्वाद और स्वास्थ्य के लिए इंसान मधुमक्खियों के  एकत्र भोजन का सेवन और व्यापार करता है। मधुमक्खी पालन करने वाले इन मक्खियों का शहद छीन कर उसकी जगह शुगर सीरप (चाशनी ) व अन्य तरह की शुगर सीरप जैसे चावल मेपल और अन्य वैकल्पिक सस्ते चीनी के सीरप या धोल मधुमक्खियों को पीलाते जिससे मधुमक्खियां जिन्दा भी रहे और शहद भी बनाती रहे।और यही चीनी या अन्य चाशनी शुद्ध शहद के साथ मधुमक्खियों के शहद के साथ मिल जाता है। 

ब्रांडेड शहद

शहद असल में फूलो के रस का मधुमक्खियों के पेट में उत्पन्न एंजाइम व पाचक रसो के बाद पच चूका रस होता है। जो बाद में मधुमक्खी द्वारा बनाये छत्ते में उगल दिया जाता है। लेकिन अब शहद की मांग बढ़ने और इंसान के लालच के कारण मधुमक्खियों को चीनी दी जा रही है।और जैसा की चीनी का स्वभाव होता है ये आदत और लत दोनों ही बन जाती है।

मधुमक्खी भी इससे बच नहीं पाती है और चीनी को ही अपना भोजन समझने लगती है। मधुमक्खी पालको की मज़बूरी भी होती है की वो अपनी मधुमक्खियों को सुरक्षित करने के लिए ऐसा करते है। जिससे मधुमक्खियां भूखी भी न मरे और न ही कीटनाशकों के प्रभाव से मारी जाये।
ऐसे में कल्पना करना की आपके ब्रांडेड शहद शत

प्रतिशत शुद्ध शहद ही होंगे तो ये आपके विवेक पर ही निर्भर करता है।

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भारत जैसे देश में शहद को लेकर उपयोगिता तो बहुत है।लेकिन शहद की कीमतों के चलते यह मात्र उच्च वर्ग और मिडल अपर क्लास तक में ही इसकी दैनिक उपयोगिता है। बाकि मिडल क्लास और गरीब वर्ग के लिए शहद पूजा विशेष या किसी आयुर्वेदिक नुस्खे या वजन कम करने की होड़ में लिया जाने एक उपाय मात्र है। चीनी के विकल्प में चीनी से पांच से सात गुणा महंगा शहद कौन दैनिक जीवन में उपयोग करने की सोच सकता है।

ब्रांडेड शहद

वैसे भी मधुमक्खियां  अपने अस्तित्व की लड़ाई जल्द ही हारने वाली है। इंसानी हस्तक्षेप और कृषि में अनियंत्रित तेज और तेज जानलेवा कीटनाशकों के प्रभाव से मधुमक्खियाँ विलुप्ती की दहलीज तक आ पहुंची है।आखिरकार मधुमक्खी भी तो एक किट ही है। और प्रकृती में पुष्प निषेचन का काम इन्ही कीटो पर निर्भर करता है।

अगर किट ही नहीं रहेंगे तो फैसले कैसे पकेगी ? हालाँकि तकनीक और वैज्ञानिको ने इसका भी हल ढूंढ रखा है। और अब ये तरीके काम में भी लिए जा रहे है।कई फसलों से पैदावार अच्छी लेने के लिए पराग कणो का छिड़काव किया जा रहा है। और रही बात शहद की तो कई विकल्प आज मौजूद है। और इन विकल्पों की मौजूदगी आपको ब्रांडेड शत प्रतिशत शुद्ध शहद में आसानी से मील जाएगी।

ब्रांडेड शहद

भारत में खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI ) के शहद को लेकर ढुलमुल कानूनो के चलते कई कम्पनी के ब्रांडेड शहद बाजार में उपलब्ध है।जानबूझ कर शहद और शहद की शुद्धता के परिमाप ऐसे बनाये गए है जिससे ब्रांडेड शहद चीनी या चाशनी की मिलावट के साथ बेचा जा रहा है।

टीवी विज्ञापनों में नाच गा कर आपको शुद्धता का पाठ रटाया जाता है। और मुर्ख बनाया जाता है। यदि आपको लगे  ब्रांडेड शहद में मिलावट है तो जाँच करवाये और जाँच  मिलावट होने  उपभोक्ता अदालत  वाद दायर करे। 

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कंज्यूमर कार्नर

नकली घी -स्वाद व सेहत के साथ साथ आस्था के साथ भी धोखा 

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कुछ भी घी जैसा दिखता और महकता हो वो घी है।नकली घी

नकली घी बनाने में काम में ली जा रही है जानवरों की चर्बी 

नकली घी आज बाजार की सच्चाई है। अब घी की मिलावट कोई दूकानदार नहीं बल्कि बड़े बड़े कॉरपोरेट हाउस और कम्पनिया कर रही है  

घी स्वास्थ्य और स्वाद और खास खुशबू का एक ऐसा प्रतीक है जिसकी मान्यता और स्वीकार्यता भारत के हर धर्म और जाती व वर्ग में है।
लेकिन आज के दौर में नकली घी माफिया इतना अधिक सक्रिय हो चुका है की असली नकली घी की पहचान ही खत्म हो गई है। बाजार में 450 रु किलो से लेकर 5000 रु किलो तक के भाव में  घी मिल रहा है। घी में  पिछले कई दशक से मिलावट की जा रही है।

नकली घी


पारम्परिक घी दूध के दही को मथ कर मक्खन निकाल कर व मक्खन को गर्म करके घी निकला जाता था।जिसकी लागत वर्तमान में  प्रति किलो 1000 रु  से 1500 रु तक हो सकती है।आजकल मशीनों से दूध की क्रीम निकाल कर घी व मक्खन बनाया जाता है।लेकिन तकनीकी रूप से  इसको घी नहीं कहा जा सकता है।इसे बटर आयल (मक्खन का तेल ) कहा जाता है। 
खुद FSSAI भी घी को लेकर स्पष्ट परिभाषा अब तक नहीं दे पायी है।अब तक मात्र कुछ मापदंड ही FSSAI ने स्थापित किये है। और वो भी काफी नहीं है जो शुद्ध देशी घी और नकली घी में फर्क करता हो।  

नकली घी

बस कुछ भी घी जैसा दिखता और महकता हो वो घी है। मजे की बात तो ये है की बाजार में उपलब्ध हर घी पर देशी घी लिखा होता है जो देसी गाय के दूध से बनता है। लेकिन इनमे से कोई भी भैंस या जर्सी गाय होने का दावा नहीं करता है। क्यों की इसके लिए  FSSAI कोई मापदंड ही नहीं है।

जिससे ये परिभाषा और प्रमाणित रूप से देशी गाय के दूध से बना हो। इसी का फायदा उठा कर दूध और घी माफिया ग्राहकों को बेवकूफ बनाते चले आ रहे है। 

 घी माफिया घी में आलू ,नारियल तेल व वनस्पति तेल की मिलावट करते है। लेकिन पिछले कई वर्षो से जानवरो की चर्बी की मिलावट या जानवरो की चर्बी में ही कृत्रिम  घी की खुशबु (Diacetyl) आदि मिलाकर बेचा जा रहा है।

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छत्तीसगढ़ के रायपुर जिला स्थित A 2 मिल्क इंडिया के निदेशक श्री राजेंद्र तम्बोली से बातचित में उन्होंने बताया की घी में हो रही चर्बी की मिलावट के चलते रायपुर के कई बड़े मंदिरो में घी के दीपक व घी से बने प्रसाद पर रोक लगा दी गई है।उनके और उनके साथियों के प्रयासों से शुद्ध घी के लिए जनता को प्रेरित किया जा रहा है।

नकली घी


भारत में कई ग्रामीण व दूरस्थ  इलाको में सूअर पाले जाते है।वहां पर सूअर का दूध भी निकला जाता है जिसको गाय या भैंस के दूध के साथ मिला कर बेचा जाता है ,वैज्ञानिक रूप से सूअर  का दूध नुकसानदायक न हो कर स्वास्थ्यवर्धक होता है।

लेकिन आस्था के अनुसार हिन्दू या मुस्लिम दोनों धर्मों में यह वर्णित व घृणित है।यहाँ तक की संशोधित  पशु चर्बी जैसे सूअर की चर्बी (Lard ) गाय व भैंस की (Tallow) आदी से भी घी बनाया जा रहा है।

अब  नकली घी  दूध को बनाने के लिए सीधे ही खतरनाक रसायनो का उपयोग हो रहा है जो किसी भी लेब टेस्ट में पास हो जाये। बड़े बड़े डेयरी घराने इन का उपयोग सरकार और FSSAI के आँखों तले कर भी रहे है। लेकिन कार्यवाही कुछ नहीं ?

भारत जैसे देश में जहां दूध की खपत उत्पादन से दोगुनी तिगुनी  है।यहाँ पर दूध और घी में कुछ भी  मिलावट का होना आम हो चुका है। यहाँ तक की तथाकथित श्वेत वस्त्र या भगवा वस्त्र पहनकर कई बाबा  मठाधीश भी मिलावटी घी व दूध के व्यापार में संलिप्त हो चुके है।

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बड़े से बड़े ब्रांड नकली या मिलावटी घी के व्यापर में शामिल है। इसके बावजूद भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण सालाना एक हफ्ते की धरपकड़ या त्योहारी सीजन में छोटे दुकानदारों पर कार्यवाही के बाद पुरे साल खामोश रहता है।घी स्वाद के साथ साथ आस्था से भी जुड़ा है।

हर किसी को पता है की बाजार में घी नकली व मिलावटी है। लेकिन फिर भी विकल्प के अभाव में नकली घी ख़रीदा जा रहा है। उपभोक्ता की दूध व दूध से बने उत्पाद खरीदने की मज़बूरी समझ से परे है। हर उपभोक्ता यही मानकर दूध घी खरीद रहा है की उसके वाला नकली नहीं है। 

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टेट्रा पैक भविष्य के प्रदुषण का नया नाम, जल्द ही प्लास्टिक को पीछे छोड़ देगा 

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tetra pack

टेट्रा पैक में शराब की पैकिंग से शराब का परिवहन हुवा आसान 

टेट्रा पैक आज तरल प्रदार्थ पैक करने का  एक बहुत ही बहुआयामी पैकिंग व्यवस्था बन गया है। 

दूध दही और फलों के जूस के बाद अब इसका सबसे बड़ा बाजार शराब बन गया है। टेट्रा पैक 6 परतो से बना एक परत से बना होता है। जिसमे लकड़ी के अलावा प्लास्टिक और अल्मुनियम की परते होती है। जो किसी भी तरल प्रदार्थ की सुरक्षा के लिए एक बेहतरीन पैकिंग है। जिससे तरल खाद्य प्रदार्थ की सेल्फ लाइफ को दो गुणा किया जा सकता है।

लेकिन टेट्रा पैक की एक ही कमी है है की इसको प्लास्टिक की तरह रिसाइकल नहीं किया जा सकता है। यानी दोबारा काम में नहीं लिया जा सकता है। इसके कचरे से आप वैकल्पिक उपाय निकाल सकते है। लेकिन इसको एक बार के उपयोग के बाद कोई रिसाइकल नहीं हो सकता है।जिसका मूल कारण  मिश्रित सामग्री से बनी इसकी 6 परते है। जिसको फ़िलहाल की तकनीक से अलग नहीं किया जा सकता है। और टेट्रा पैक भविष्य में प्लास्टिक से भी ज्यादा गंभीर समस्या इस पृथ्वी के लिए होने जा रहा है। 

शराब की पैकिंग  टेट्रा पैक में होने से शराब की गुणवत्ता में कोई परिवर्तन नहीं होता है जब तक की टेट्रा पैक की एलुमिनियम की परत से शराब सीधे संपर्क में नहीं आती। लेकिन तकनीक पर विश्वास भी नहीं किया जा सकता है। मानवीय भूले कभी भी हो सकती है और शराब कभी भी जानलेवा हो सकती है। 

उ.प्र.पुलिस ने पकडे 3 हजार पैक  से भी ज्यादा टेट्रा पैकेड शराब 

अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश  के औरैया से पुलिस ने 3115 टेट्रा पैक में पैक शराब के डिब्बे पाइपो के अंदर बंद करके पंजाब की शराब को तस्करी कर बेचने के का अनोखा मामला सामने आया है। हालाँकि प्लास्टिक बोतल या थैली की भी तस्करी हो सकती है लेकिन इस तरह से ठूंस कर टेट्रा पैक ले जाने में टेट्रा पैक की परते दरक सकती है और एलुमिनियम की परत का संपर्क शराब से हो सकता है। जिससे कभी भी कोई गंभीर कांड हो सकता है। बरहाल औरैया पुलिस ने इस शराब को जब्त करके सेंकडो की जान बचाने का काम किया है।इससे पहले भी हाल ही में बिहार में जहरीली शराब कांड में टेट्रा पैक शराब ही मुख्य रूप से थी। 

amul lassi
Viral video of Amul Lassi which was treated for fungus

टेट्रा पैक को लेकर इससे पूर्व भी छाछ फलो के रस आदि में जानलेवा फंगस होने की खबरें अखबारों में छपी और इंटरनेट पर वायरल हुई है। सिर्फ भारत में ही नहीं अन्य देशो में भी ऐसी शिकायतें टेट्रा पैक को लेकर होती आई है। टेट्रा पैक प्रदुषण के मामले में बहुत ही जल्द प्लास्टिक को पीछे छोड़ने वाला है। प्लास्टिक से विपरीत टेट्रा पैक का कोई रिसाइकल व्यावहारिक नहीं है ,जल्द ही यह टेट्रा पैक विश्वव्यापी समस्या बनने जा रहा है।  अगर इसे नियंत्रित या प्रतिबंधित नहीं किया गया। 

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आप किस का दूध उपयोग में ला रहे है ?गाय का या भैंस का 

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buffalo and cow milk

गाय और भैंस के दूध से ये भेदभाव क्यों 

आप किस का दूध उपयोग में  रहे है। गाय का या भैंस का। भारत जैसे देश में दूध को लेकर लोगो में विचित्र तरह का व्यवहार देखने को मिलता है। दक्षिण भारत में गाय और भैंस का दूध अलग अलग पैकिंग में बिक्री के लिए उपलब्ध है। वही उत्तर भारत व हिन्दी पट्टी के राज्यों में सिर्फ गाय का दूध ही काम में लिया जाता है। और ये बात किसी मजाक से कम नहीं है। ऐसा नहीं है ,की हिंदी पट्टी प्रदेशो में भैंस नहीं पाली जाती है। गायों की संख्या के बराबर भैंसे पाली जाती है। और अब  कई पशुपालक गायों की अपेक्षा भेंसो को पालने को  ज्यादा महत्व देते है। जिसकी वजह भैंसो के दूध में प्रोटीन ज्यादा होना व  भेंसो का लगातार दूध देना और वो भी कम खर्च व रखरखाव के साथ हो जाता है। गाय की तुलना में भेंसो का बाजार भाव भी ज्यादा है। और किसी भी तरह आस्था का विषय भी नहीं। तो फिर कोई गाय को क्यों ले, भैंस ही लेगा। 

लेकिन इन सब खूबियों के बावजूद कोई भैंस का दूध नहीं पीना चाहता ,सब को गाय का ही दूध चाहिये .अब आपके दूध वाले भैया से लेकर बड़े बड़े कॉरपोरेट और दूध के सहकारी संस्थान भी गाय का दूध और गाय के नाम से ही अपने दूध घी मक्खन छाछ आदि को बेचते देखे जा सकते है। भारत में करीब 110 मिलियन भेंसे है। तो इनका दूध गया कहाँ ?

दूध को लेकर हम भारतीयों का व्यवहार विचित्र है।सबसे पहले तो हमें गाय का दूध चाहिए। । लेकिन हम में से कितने होंगे जो दूधवाले भैया के घर जा कर अपने सामने दूध दुहा कर लाते है। बस जो दूध घर बैठे मिल जाये या कॉलोनी या मोहल्ले की दुकान पर मिल जाये वही ठीक है। दूध के नाम पर  हमें सफ़ेद पानी जिसमे  फेट  हो असली हो या रासायनिक हमें फर्क नहीं पड़ता है। 

कुछ थोड़े ईमानदार लोग भैंस के दूध में ही पानी मिला कर उसके 7-8 % फेट को FSSAI द्वारा निर्धारित 4% करके गाय के दूध के नाम की पैकिंग करके बेचते है।ये भी इन विक्रेताओं की मेहरबानी ही समझे। वरना आजकल तो दूध में दूध को छोड़ कर वो सब पाया जाता है जो शरीर के लिए खतरनाक रूप से हानिकारक है ,

लेकिन फिर भी सवाल ये है की हमें भैंस का दूध भैंस के नाम पर क्यों नहीं बेचा जाता है। भैंस ने कोनसी” हमारी पूंछ पाड़” ली है। हिन्दू आस्थाओं में भेंसे की सवारी मृत्यु देवता “यमराज “जी की है। गायो की तरह सारे देवता ना सही एक दो देवता तो भैंस में पाये ही जा सकते है। 

उत्तर भारत में एक पर्व मनाया जाता है। ” बच्छ बारस” मात्र इस दिन हिन्दू महिलाएं गाय का दूध उपयोग में नहीं लेती।और जरुरी हो तो भैंस का दूध ही ग्रहण करती है। इस दिन भैंस का दूध 100 से 150 रु प्रति लीटर तक पहुंच जाता है। लेकिन इसी दिन कई दूध की पैकिंग करने वाली कंपनियों का दूध बाजार में कम पड़ जाता है। यही से आप गाय के दूध और भैंस के दूध का सम्बन्ध पता कर सकते है।खैर दूध किसी का भी पीये स्वास्थय के लिए लाभदायक ही रहेगा। बस उसमे मिलावट न हो। 

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समाचार (देश/विदेश)

ख़राब पाए जाने पर लगभग 29 हजार क्विंटल चावल रिजेक्ट

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कोरोना काल के बाद से चल रहा है गोरखधंधा 

कटनी (म.प्र.) गरीबो और खाद्य डिपो के लिए स्वीकृत फोर्टिफाइड  चावल की घटिया क्वालिटी को देखते हुवे जिलाधीश अवि प्रसाद ने चावल की खेप को रद्द करते हुवे गोदाम मालिकों और खाद्य अधिकारी व निरीक्षकों  पर कार्यवाही के निर्देश दे दिए है।

मई माह की शुरुवात से ही एक एक करके नियुक्त गोदामों पर कलेक्टर खुद से जाँच पड़ताल कर रहे है। इन कार्यवाहियों में सबसे बड़ी कार्यवाही 9 मई को की गई।तथा जाँच व कार्यवाही जारी है।

 कटनी में ऐसा नहीं है की यह मामला पहली बार ही हुवा है। कटनी में कोरोना काल से ही नागरिक आपूर्ति निगम में चावलों के वितरण को लेकर मिलर्स और अधिकारियो की मिली भक्ति से इलाके के गरीब व सरकारी राशन पाने वाले लोग कई वर्षो से परेशान है। अधिकतर सरकारी आपूर्ति में वितरित अनाज जानवरों के भी लायक नहीं है। इसको लेकर की गई शिकायतों पर भी स्थानीय खाद्य अधिकारियो ने नए नए रस्ते और नियमों को ही अपना हथियार बना रखा है। केंद्रीय खाद्य जांच एजेंसी के आँखों में धूल झोंकने का काम किया जा रहा है। 2018 से लेकर 2020 तक यही खेल चलता रहा 

2018 में 18 हजार क्विंटल घटिया  चावल गुपचुप तरीके से गरीबों में बाँट दिया गया 

2020   यहां चावल के नमूने लेने के लिए केंद्र की टीम के आने से पहले ही हजारों क्विंटल चावल रिजेक्ट कर दिया गया है। रिजेक्ट किए गए चावल के नमूने केंद्र की टीम नहीं लेगी और इस तरह से घटिया चावल सप्लाई करने वाले मिलर्स और गुणवत्ता पास करने वाले अफसरों के गठजोड़ का खुलासा होने से बच जाता था अब इसी को लेकर कटनी के कलेक्टर ने जांच के आदेश दिए है। इस देश के साथ दुर्भाग्य यही है की हर कोई गरीबो का ही हक़ खाने की फ़िराक में रहता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की वो कोई जिन्दा इंसान है या बेजुबान जानवर। 

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