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महुआ -भारतीय खाद्य विरासत का सुपरफूड
भारत में ही भुला बिसरा होता – महुआ
निशा निरंजन (मध्यप्रदेश ) ग्वालियर
महुआ भारतीय संस्कृति से जुड़ा एक सुपर फ़ूड है। जिसकी जड़ से लेकर छाल फल फूल पत्ते सभी खाद्य या औषधि के रूप में खाया जा सकता है। प्राचीन भारत में इसको सूखा काल (अकाल ) का भोजन तक कहा गया है। कई आदिवासी परम्पराओं में अपने अलग अलग नामो से प्रचलित महुआ को इतना पवित्र माना गया है की इसकी पूजा या इसके अलग अलग अंगों को पूजा में शामिल किया जाता है।
आप किसी भी बीमारी में महुआ के विभिन्न हिस्सों को मुख्य या वैकल्पिक इलाज के लिए काम में ले सकते है। इसके लिए विशेषज्ञों की सलाह जरुरी है।
महुआ का पेड़ उष्णकटिबंध इलाको में आसानी से पाए जाते है।पुरे विश्व महुआ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।इसका वनस्पति विज्ञान में (Madhuca Longifolia ) इंग्लिश में हनी ट्री व बटर ट्री कहा जाता है।
महुआ के फूलो का उपयोग शराब बनाने में किया जाता है। कुछ इलाकों में शुद्ध रूप से महुआ के फूलों की शराब बना कर उसका सेवन स्वास्थ्य लाभ के लिए भी किया जाता है।
महुवा भारतीय नागरिकों के लिए बहुत ही उपयोगी है। अब कुछ आयुर्वेदिक निर्माताओं ने महुआ से बने कई औषधियाँ बना कर मुख्यधारा में स्थान बनाने की कोशिश में लगे हुये है। महुआ का खाद्य तेल व मक्खन आदि से साबुन व कॉस्मेटिक उत्पादों भी बनाये जाते है।
महुवा के फूलों से कई तरह के खाद्य प्रदार्थ अलग अलग स्थानों पर अलग अलग तरह से बनाये जाते है। महुआ के फूलों में लौह तत्व (IRON ) भरपूर मात्रा में होता है। जो महिलाओ के लिए बहुत ही जरूर तत्वों में से है।
महुवा भारतीय प्राचीन खाद्य विरासत में किसी सुपरफूड से कम नहीं है।
लेकिन आदिवासी और जनजातियों से जुड़े होने के कारण महुआ को वो स्थान भारत में प्राप्त नहीं जो ओलिव को दिया जाता है। आज भी मुख्यधारा बाजारों में महुआ से सम्बंधित उत्पाद आप लोगो को देखने में नहीं मिलेंगे। कुछ भारतीय निर्माताओं ने महुआ के उत्पादों को बनाना और उसे मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रहे है। तो एक बार महुआ से बने उत्पादों को भी आजमा कर देखने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए।
महुवा सिर्फ पारम्परिक खाद्य न हो कर भारतीय पाक कला और पाक कला विज्ञान का एक अद्भुत उदाहरण है। जब पश्चिम की सभ्यता और लोग सिर्फ कुछ ही खाद्यों की जानकारी रखते थे। उस समय भी भारतीय पाक कला इतनी उन्नत थी। की वो हर प्रकार से खाद्य पदार्थों और अवयवों का उपयोग करना जानती थी ,न सिर्फ खाद्य तत्वों का बल्कि औषधि गुणों की भी खोज भारतीय सभ्यता ने कर ली थी।
इस देश का एक गौरव ये भी है की भारतीय सभ्यता में खाद्य तत्वों और अवयवों व औषधीय गुणों की पहचान करके उनके आधार पर आयुर्वेद व कई चिकित्सीय ग्रंथो का निर्माण किया है। भारतीय की आधुनिक सभ्यता भले ही पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हो। लेकिन आखिर में एक भारतीय को भारतीय अध्यात्म और खाद्य व औषधि की तरफ आते देखा जा सकता है। ऐसे में समझदारी यही है की समय बीत जाने से पहले ही अपने पारम्परिक परिवेश में लौट आये।
महुवा आज भारत में ही अपनी पहचान खोज रहा है। जैसा की बताया गया है की कुछ लोग कोशिश कर रहे है की महुवा से बने उत्पाद विशेषकर औषधीय गुणों के उत्पाद बना कर बेचने की कोशिश कर रहे है। ऐसे में अपनी विरासत और परम्पराओं पर भरोसा करना चाहिए।
पहले से ही हम अपनी परम्परागत खान पान से दूर हो कर जीवन व्यापी बीमारियों से पीड़ित हो चुके है। अब तो हमें हमारे बच्चो के लिए सोचना ही होगा की आधुनिकता और पश्चिम की चकाचौंध और बीमारिया और दवाओं से भरपूर जीवन जीये या पुनः अपनी परम्परागत बीमारियों से मुक्त जीवन जीये ?