स्वास्थ्य और जीवनशैली
सांगरी की सब्जी – मरुस्थल का बहुमुखी आहार
सांगरी का पेड़ राजस्थानी भाषा में खेजड़ी या खेजड़ा कहा जाता है।
सांगरी राजस्थान के मरुप्रदेश ( थार ) में पाये जाने वाले खेजड़ी की फलियों को कहा जाता है।सांगरी को हरा व सूखा कर कैर व अन्य राजस्थानी मसालों के साथ बनाया जाता है।
राजस्थान में सांगरी कई लोक त्योहारों और रिवाजो से सदियों से जुडी हुई है।
सांगरी का पेड़ राजस्थानी भाषा में खेजड़ी या खेजड़ा कहा जाता है।इसे शमी या जांटी कहा जाता है। भारत के दो राज्यों का राजकीय वृक्ष होने के साथ साथ यूनाइटेड अरब अमीरात का भी राष्ट्रीय वृक्ष शमी ( खेजड़ी ) ही है।
खेजड़ी का वैज्ञानिक नाम Prosopis Cineraria (प्रोसोपिस सिनेरारिआ ) है ,खेजड़ी एक विषम परिस्थियों में जीवित रह कर फल फूल सकता है।जिसकी वजह से सांगरी का पेड़ ( खेजड़ी ) रेगिस्तान की भीषण गर्मी के साथ साथ रेगिस्तान की भीषण ठण्ड को भी झेल जाता है।खेजड़ी की फलियों( सांगरी ) की सब्जी मारवाड़ की पहचान है। इससे ताजा और ज्यादातर सूखा कर काम में लिया जाता है।
सिर्फ राजस्थान में ही नहीं बल्कि विश्व की अनेको संस्कृतियों में सांगरी और इसके पेड़ की पत्तियों और फूलो का उपयोग खान पान के साथ साथ औषधीय उपयोग के लिए होता आ रहा है।इसीलिए इसे वंडर ट्री भी कहा गया है।आज के विज्ञान के अनुसार सांगरी एक बहुत ही बढ़िया क्षार ( अलकालॉइड) है। जो की मधुमेह के मरीजों के लिए लाभदायक है।
अफ्रीका और अरब देशो में सांगरी की पकी फलियों का आटे की रोटी और मिठाई भी बनायीं जाती है। सांगरी का उपयोग त्वचा सम्बन्धी रोगो में भी काम में लिया जाता है।सांगरी के पत्तो में घाव को भरने की बहुत ही ताकतवर गुण होता है।ये मुँह के छालो से लेकर बवासीर व आंतो में होने वाले अन्य तरह के घावों के लिए बहुत ही लाभकारी है।
तथा कई तरह के कैंसर में सांगरी की फलिया ,फूल का उपयोग दुनिया के कई शुष्क स्थानों या जहा पर प्राकृतिक रूप से खेजड़ी के पेड़ पाये जाते है वहां किया जाता है।
अभी भी कई शोध व अध्ययन होने बाकी है।
राजस्थान में सांगरी का अचार व सब्जी के रूप में ही प्रचलित है। सांगरी की सब्जी में कैर (Capparis Decidua barries),देशी बबूल के बीज ( Senegalia senegal ) सुखी कमल ककड़ी ( Dried lotus cucumber ) के साथ बनाया जाता है। जिससे इस सब्जी की तासीर क्षारीय व ठंडी हो जाती है।
राजस्थान के कई आदिवासी इलाको में सांगरी को नियमित रूप से खाया जाता है। व इसके पत्ते को पशु आहार में उत्तम माना जाता है। आज भी राजस्थान के कई आदिवासी इलाको में उनके खान पान और उनमे जीवनशैली बीमारियों के ना होने को लेकर अध्ययन जारी है।सांगरी को सुपरफूड तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इनकी खूबियों को देखते हुवे इसे एक बहुमुखी आहार कहा जा सकता है।