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बाहर का खाना किसके भरोसे खा रहे है ?

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हर साल  बढ़ रहा है बाहर का खाना खाने से  फूडपॉइज़निंग के मामले.

इन दिनों बाहर का खाना घर में खाने का चलन बहुत बढ़ा है।स्विगी जोमेटो की तरह फ़ूड डिलीवर एप्प और मोबाइल से बुकिंग का आसपास के होटल ढाबो का खाना सीधे आपके घर तक पहुंच रहा है। लेकिन खाने की क़्वालिटी और फ़ूड सेफ्टी का ध्यान  उतना नहीं रखा जाता जितना होना चाहिए।

साल के शुरुवाती महीने में ही करेला से एक के बाद एक फ़ूड पॉइज़निंग के मामले सामने आये जिसमे दो युवतियों की मौत हो गई। एक की मौत  एप्प से मंगवाये बाहर का  खाना खाने से हुई।

19 वर्षीय युवती अनुश्री पार्वती की मौत साल के शुरुवाती हफ्ते में ही हो गई । पीड़ित एक हफ्ते तक जिंदगी और मौत से जूझते हुवे मारी गई।

वही केरल के एर्नाकुलम के  एक ही होटल में खाने से 68 लोग बीमार हो गए।

इसी साल जून में सोनीपत (हरियाणा ) में दो छोटे बच्चो की मौत चाउमीन खाने से हो गई थी। 

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2022 अक्टूबर माह में तिरुपुर ( तमिलनाडु ) में 3  बच्चो की मौत घर में मंगवाये खाने से हो गई जबकि अन्यो को अस्पताल में गंभीर हालत में भर्ती किया गया।  
भारत में हर साल बाहर का खाना खाने से हुई  फ़ूड पॉइज़निंग से 20 लाख लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से मारे जाते है। और  करीब इस संख्या से तीन गुणा लोग बीमार पड़ जाते है।लापरवाही और स्थानीय खाद्य सुरक्षा विभाग के कर्मचारियों की उदासीनता और कर्मछोड़ नीति की वजह से हजारो लोग प्रभावित होते है।

बाहर का खाना  खाने में हम भारतीय भी अब पश्चिमी देशो की राह पर चलने लगे है।होटल व रेस्टोरेन्ट में खाना नई नार्मल हो गया है। लेकिन होटल व रेस्टोरेंट  के खाने के साथ सबसे बड़ी दिक्कत बासी खाने को ताजा खाने में मिला कर अपना घाटा  न होने देने वाली मानसिकता है। जो की किसी भी रूप में टाली नहीं जा सकती है।

वही दूसरी समस्या है की खाने को जल्दी बनाने के लिए पक्का या अधपका खाना तैयार रखना ताकि जैसे ही ग्राहक या कोई ऑडर मिले तो उसे जल्द से जल्द पूरा करना है। लेकिन पहले से तैयार खाने में संक्रमण की स्थिति कभी भी बन सकती है । दूसरी और खाने को स्वादिष्ट बनाने के लिए सिंथेटिक खाद्य अवयवों का उपयोग धड़ल्ले से किया जाता है। तथा इसके लिए इन होटलो के शेफ के पास कोई आधिकारिक प्रशिक्षण नहीं होता है।

मात्र बड़े और फाइव स्टार होटल में शेफ या मुख्य शेफ ही प्रमाणित डिग्री लिए होता है। ढाबों और रेस्टोरेंट आदि  में आज भी पुराने अनुभव से नए तरह के खाद्य अवयव को ऐसे  ही खाने में डाल दिया जाता है।खाद्य अवयवों की मात्रा और सही मात्रा का कोई ध्यान नहीं रखा जाता। मात्र स्वाद ही सबकुछ होता है। गुणवत्ता ,स्वच्छता ,स्वास्थ्य के लिए कितना लाभकारी जैसे शब्द होटल व ढाबों की रसोई के शब्दकोश में नहीं होते 

बाहर का खाना व खाने की गुणवत्ता और सुरक्षा का ध्यान देने के लिए FSSAI द्वारा FoSTac जैसी प्रशिक्षण योजना भी होटल मालिकों और कथा कथित शेफ या होटल रसोइये के रवैये को नहीं बदल पाई है। होटल के खाने के राशन सामग्री  यानी आटा मसाले और ताजा सब्जियां थोक में ली जाती है।

ये सामग्री प्राय होटल के स्टोर में रखी जाती है जहा चूहे कॉकरोच व फफूंद आदि देखने को मिलते है। जिनसे कच्ची रसद सामग्री कभी भी संक्रमित हो सकती है।  तथा किसी भी खाद्य में खाद्य संक्रमण की स्थिति में ग्राहक बेखबर ही रहता है । बाहर का खाने वाले  ग्राहक को खाद्य विषाक्तता का पता घंटो बाद पता चलता है। तथा पीड़ित इसे गैस या पेट ख़राब की स्थिति समझते हुवे घरेलु इलाज या कई बार अनदेखा ही कर देता है जो की धीरे धीरे भयानक और जानलेवा साबित होता है।

फ़ूड पॉइज़निंग का शिकार व्यक्ति पानी में मेढक उबालने वाली स्थिति में होता है। जैसे जैसे पानी सहन करने की स्थिति में होता है मेढक सहता रहता है। लेकिन जब पानी का तापमान उसकी सीमा से बाहर होता है तो वो इतना थक चूका होता है की पानी से बाहर नहीं निकल पाता और मारा जाता है।
भारत में भी अब बाहर का खाना  होटल या रेस्टोरेंट में खाना या खाना घर पर माँगा कर खाने का चलन जोरो पर है। ऐसे में अगर खाने के बाद हुई किसी भी असाधारण स्थिति में तुरंत चिकित्सक के पास पहुंचे। स्थिति घरेलु नुस्खों से न सुधरे तो इसे बहुत ज्यादा बिगड़ने वाली स्थिति का इन्तजार न करे।

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क्यों की पहले खाने में मात्र बासी खाना होने की स्थिति में होती थी लेकिन आज के दौर में सिंथेटिक खाद्य अवयव का जबरदस्त इस्तेमाल हो रहा है।जो की घरेलु नुस्खों से ठीक नहीं किये जा सकते है।तथा असावधानी या लापरवाही जानलेवा या जीवन भर के लिए विशेष परिस्थिति बन सकती है। छोटे बच्चो को बाहर का खाना खिलाने से बचना चाहिए। बच्चो में विशेषकर 2-8 साल की उम्र तक बाहर का खाना नहीं खिलाना चाहिए। 

आज भागदौड़ और दिखावे का जीवन हर कोई जी रहा है। फिर भी अगर परिस्थितियां सही हो तो घर में देशी व पारम्परिक मसलो से बना भोजन ही खाना चाहिए। बाहर का खाना मज़बूरी हो सकता है। इसे फैशन ना बनाये। 

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