ब्लॉग

क्या फ़ूड रेहड़ी पर फ़ूड माफिया का कब्ज़ा ?

Published

on

फ़ूड रेहड़ी पर परोसे जा रहे है खतरनाक खाद्य रसायन। 

फ़ूड रेहड़ी लगाना भारत में गरीबो के लिए एक प्रचलित रोजगार का तरीका है। बेरोजगारी इस देश की सच्चाई है। लेकिन स्वरोजगार भी इसी देश की सच्चाई है। कभी प्रधानमंत्री के पकोड़े बेचने के रोजगार पर अपनी राय रखी तो विपक्ष और एंटी गोदी मिडिया इस पर  आज तक व्यंग्य कसते है।

रेहड़ी पर खाने पीने के सामान को बेचने  का रोजगार बहुत पुराना है। फ़ूड रेहड़ी  बस और रेलवे स्टेशन और प्लेटफार्म पर दिखने वाले या मंदिर मस्जिद और मेलो में दिखने वाली रेहड़ी गरीब मजदूरों के लिए रोजगार की  आखरी उम्मीद होती है।

 आप को जानकर ताज्जुब होगा के ये गोलगप्पे या बर्फ का गोला बनाने वाला मजदूर माफिया कैसे हो गया ? ये मजदुर तो आज भी मजदुर है लेकिन अब रेहड़ी पर माफियाओ का कब्ज़ा हो गया है। ये माफिया दूसरे राज्यों से मजदुर लाते है और अपनी रेहड़ी पर काम पर लगा देते है। आपने भी गौर किया होगा के आपको गोलगप्पे खिलाने वाला किसी अन्य राज्य का  या  ग्रामीण इलाके का होगा।वो इसलिए ताकि इन माफियाओ की कालगुजारी बाहर न आ सके। स्थानीय मजदुर कभी भी कोई चुनौती या समस्या खड़ी कर सकता है।

                ऐसा इसलिए भी  है क्यों की रेहड़ी पर कोई टेक्स या कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है जिसका फायदा उठा कर ये लोग किसी कच्ची बस्ती में अपनी छोटी फेक्ट्री लगाते  है। उत्पाद बनाने वाला  कारीगर और उत्पाद बेचने वाला मजदुर  वही फैक्ट्री में ही रहते है। शहर के अलग अलग इलाको में रेहड़ी भेजी जाती है। और जिन इलाको में ये रेहड़ी लगती है उन इलाको के भी ठेकेदार होते है जो रेहड़ी लगाने का किराया वसूलते है। और पुलिस और प्रशासन से इन रेहड़ी वालो को सुरक्षा देते है।

इन रेहड़ी मजदुर को दैनिक मजदूरी के हिसाब से मजदूरी तय होती है। इन रेहड़ियों पर बिकने वाला सामान जिस फैक्ट्री में तैयार होता है, वंहा भी  घटिया तेल और मसालों से नकली या एक्सपायर सामान का इस्तेमाल किया जाता है। रेहड़ी पर बिकने वाला खाद्य या तो पूरी तरह से पका पकाया होता है। जैसे गोलगप्पे ,पोहे  ,दही बड़े ,कांजी बड़े , या अधपका या मुख्य भाग पका पकाया होता है जैसे आलू टिक्की में टिक्की सामने पकाई जाती है लेकिन टिक्की की सब्जी पकी पकाई होती है। छोले भटुरे के छोले पहले से ही तैयार होती है।  इनके पकाये जाने में  केमिकल और बहुत ही ख़राब कच्चे माल का उपयोग होता है।

इन रेहड़ी वालो पर  किसी का नियंत्रण या नियमन नहीं है।  लेकिन स्वाद का मरता करे क्या? रेहड़ी पर वही बेचा जाता है जिसको घर पर पकाना है किसी के लिए आसान नहीं होता। लेकिन मजा  हर कोई लेना चाहता है। अब इन फ़ूड रेहड़ी पर ड्रग्स और नशीले प्रदार्थो की तस्करी भी हो रही है। दवाओं के सस्ते नशे को भी इन्ही फ़ूड रेहड़ी के जरिये माफियाओ द्वारा बेचा जा रहा है।

चाइनीज नमक यानी MSG (Mono sodium glutamate ) का भीषण उपयोग इन्ही फ़ूड रेहड़ी पर किया जा रहा है। चाय और कॉफी के नाम पर अफीम और डोडा पोस्त को मिला कर ग्राहक को अधीन किया जा रहा है। सरकार को चाहिए की इन रेहड़ी वालो के लिए लागु कानूनों को सख्ती से लागु किया जाये।  जिसके  खाद्य सुरक्षा अधिकारियो लाम बंध जाये तथा पुलिस विभाग को भी इन फ़ूड माफियाओ के लिए विशेष दस्तो का गठन करना चाहिए। 


समय रहते इन रेहड़ियों पर नियंत्रण और नियमन करना बहुत जरुरी हो गया है मई महीने में ही कर्नाटका में एक बच्ची की मौत ख़राब खाने से हो गई थी। रोज कही न कही से रेहड़ी के खाने से  फ़ूड पॉइजनिंग की खबरे आम हो गई है। ये खबरे भी खबरे तब बनती है जब किसी की जान चली जाये। अब ये आप की ही जिम्मेदारी है कि  रेहड़ी पर कुछ भी खाने जाये तो अपना विवेक भी इस्तेमाल करें।

Advertisement

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Trending

Exit mobile version