कंज्यूमर कार्नर
फ़ूड रिकॉल क्या होता है। और क्यों जरुरी है।
फ़ूड रिकॉल और खाद्य सुरक्षा में भारत फिसड्डी क्यों है।
फ़ूड रिकॉल का मतलब होता है की किसी भी फैक्ट्री मेड या पैक्ड या कोई भी खाद्य सामग्री जो किसी भी रूप से दूषित हो गई तथा किसी भी रूप से मानव जीवन के लिए खतरनाक हो गई हो सकती है। उस खाद्य पदार्थ को बाजार से वापस लाने की प्रक्रिया को फूड रिकॉल या उत्पाद वापसी कहते है।बाजार में उपलब्ध पैकेज फ़ूड और प्रोसेस फ़ूड जो फैक्ट्रीज में बड़ी मात्रा में उत्पादित होते है। वो किसी भी वजह से दूषित हो सकते है। जिनमे ख़राब क्वालिटी के कच्चे माल ,या मशीन में किसी पुर्जे या कोई बाहरी तत्व या खाद्य संदूषको से प्रदूषित होने का खतरा बना रहता है। और कई बार मानवीय भूल या मशीनों की गड़बड़ी से भी खाद्य प्रदार्थ दूषित हो सकते है। जो मानव उपयोग के लिए सुरक्षित नहीं होते है।
हालाँकि प्रोसेस और नॉन प्रोसेस खाद्य पैकेट में पैक करने वाली फैक्ट्री में खाद्य सुरक्षा का ध्यान अनिवार्य रूप से रखना होता है। लेकिन किसी भी कारण खाद्य पदार्थों में कोई अतिरिक्त सामग्री हो जाने से खाद्य पदार्थ खाने लायक नहीं रहता तो इसकी जानकारी होते ही खाद्य प्रदार्थ का रिकॉल किया जाना चाहिए। जो स्वयं कोई फैक्ट्री या कंपनी कर सकती है या खाद्य विभाग द्वारा अनिवार्य रूप से करवाई जा सकती है। अधिकतर मामलों में खाद्य सुरक्षा एजेंसियों द्वारा ही यह अनिवार्य प्रक्रिया काम में ली जाती है।
भारत में फ़ूड रिकॉल के लिए FSSAI नियुक्त है। फ़ूड प्रोडक्ट्स के नियमन व रिकाल करने के लिए FSSAI स्वतंत्र एजेंसी है। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने फूड बिजनेस ऑपरेटर को लिखित में बताया गया है। कि अगर कोई फ़ूड निर्माता कंपनी रिकॉल ऑर्डर मानने से इनकार करती है तो संबंधित फूड अथॉरिटी उसके खिलाफ एक्शन ले सकती है।
कंपनियों को भेजे गए नोट में FSSAI ने लिखा है, ‘रिकॉल ऑर्डर के उल्लंघन के लिए जवाबदेह फूड बिजनेस ऑपरेटर होंगे।’ रेगुलेटर ने इस मामले में कंपनियों से उनकी सलाह और प्रतिक्रिया भी मांगी थी। रेगुलेटर ने कहा, ‘रिकॉल प्लान लिखित में होना चाहिए और फूड अथॉरिटी के मांगे जाने पर इसे उपलब्ध भी कराया जाना चाहिए।तथा यह फूड बिजनेस के वार्षिक ऑडिट का हिस्सा होगा।’
FSSAI ने अपने दिशानिर्देश कहा कि एक बार रिकॉल शुरू होने के बाद रिटेलर्स को तुरंत दुकान से वह प्रॉडक्ट हटा लेना चाहिए और मैन्युफैक्चरर, इम्पोर्टर या होलसेल को रिटर्न करना चाहिए। वहीं, कंपनियों को कंज्यूमर्स को इस बारे में प्रेस रिलीज, लेटर और विज्ञापनों के जरिए जानकारी देनी होगी । कंपनियों को संबंधित अथॉरिटी को ‘रिकॉल स्टेटस रिपोर्ट’ देकर उसे ताजा हाल की जानकारी देते रहना होगा । यह कम से हफ्ते में एक बार किया जाए।
फ़ूड रिकॉल सरकार और खासतौर पर इसके कंज्यूमर्स के हित में है। क्यों की किसी बड़ी कम्पनी के खाद्य उत्पाद अपनी सप्लाई चैन द्वारा बहुत जल्दी ही देश के कोने कोने तक पहुंच जाते है। ऐसे में अगर किसी खाद्य पदार्थ में कोई बड़ी लापरवाही हो जाये तो फ़ूड रिकॉल करना थोड़ा मुश्किल रहता है। ऐसे में फ़ूड रिकॉल की प्रक्रिया अपनानी ही पड़ती है।
फ़ूड रिकॉल यूरोपियन देशो में होना आम बात है। यहाँ पैक्ड फ़ूड को लेकर खाद्य सुरक्षा एजेंसिया बहुत सतर्क रहती है। निर्माता कितना भी बड़ा हो या छोटा पैक्ड फ़ूड में जरा सी गड़बड़ पाये जाने पर तुरंत फ़ूड रिकॉल कर लिया जाता है।
भारत में फ़ूड रिकॉल के गिने चुने केस मिलते हैं। मैग्गी के रिकॉल के बाद से फिर कोई बड़ी घटना नहीं घटी। कंपनी रेगुलेटर को रिकॉल का ड्रामा जरूर करती हुई जरूर नज़र आ सकती है। किन्तु असल में वो अपना व्यापार वैसे ही करना जारी रखती है।
भारतीय खाद्य सुरक्षा एजेंसियों ,स्थानीय अधिकारियो खुद ही खाद्य सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। सिर्फ त्योहारी सीजन में छोटी छोटी दुकानों या फैक्ट्री पर छापेमारी की जाती है। और दूषित खाद्य को नष्ट करवा दिया जाता है। कार्यवाही के नाम पर जुर्माना लगा दिया जाता है। और कोई विशेष कार्यवाही नहीं की जाती है। ऐसे में बड़े कॉरपोरेट हॉउस जिनके सम्बन्ध बड़े अधिकारियो और मंत्रियो तक होते है। वो अपने उत्पादों का रिकॉल होने ही नहीं देते है। और उपभोक्ता ठगा सा ही रह जाता है।