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“मौत का कारण “तो होता है।
लेकिन चिकित्सक की अल्पायु में मौत। सिस्टम और चिकित्सा विज्ञान पर सवाल है
अल्प आयु और संयमित जीवन जीने के बावजूद क्या है इन मौतों का सही जवाब
डॉ कौशल किशोर मिश्रा (आयुर्वेदिक चिकित्सक ) अतिथि संपादक
“मौत “हमेशा एक सदमा लाती है। आज के दौर में मौत किसी एक घर या परिवार के ही दुखो तक सीमित हो गई है। लेकिन कुछ मौते समाज के उदासीनता और मृतचेतना को दर्शाता है। वही” सिस्टम और चिकित्सा विज्ञान” पर भी सवालिया निशान लगा देता है
इकतालीस वर्ष की अल्पायु में संयमित जीवन जीने वाले जामनगर के कार्डिलॉज़िस्ट गौरव गांधी ने अपनी अंतिम यात्रा के साथ ही सभ्यता को झकझोर कर रख दिया है ।
जिस समय टीवी डिबेट्स में सम्मिलित हृदयरोग विशेषज्ञ ईसीजी की फाल्स नॉर्मल रिपोर्ट और कार्डियक अरेस्ट के बीच पैथोलॉजिकल सम्बंध तय करने में लगे हुये थे, मेरी सुई सर्जिकल केसेज़ की उस संख्या पर अटक गयी जो डॉक्टर गांधी ने मात्र 41 साल की आयु तक किये थे । माना कि उन्हें किसी नशे की कोई लत नहीं थी और उनका जीवन बहुत संयमित था किंतु 41 साल की आयु तक सोलह हजार से भी अधिक सर्जिकल ऑपरेशन का अर्थ होता है काम का नशा । यदि न्यूनतम 28 की आयु से उन्होंने सर्ज़री प्रारम्भ कर दी होगी तो 41 की आयु तक कुल 13 वर्ष में लगभग 1230 केस प्रतिवर्ष की दर से निपटाये गये होंगे अर्थात हर चार दिन में एक सर्जरी । चिकित्सा सेवा में सर्जरी एक ऐसी प्रक्रिया है जो सर्जन को शारीरिक और मानसिक रूप से थका देती है । और फिर बात केवल सर्ज़री की संख्या तक ही सीमित नहीं होती, यह ओपीडी में देखे जाने वाले रोगियों की संख्या के साथ मिलकर और भी थका देने वाली होती है, मुझे लगता है कि यह बहुत अधिक है ।
डॉक्टर गांधी की असामयिक मृत्यु के तकनीकी कारणों का विश्लेषण करते समय कार्य के बोझ के महत्व की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये ।
सरकारी तंत्र में स्थितियाँ और भी प्रतिकूल होती हैं जहाँ डॉक्टर्स को प्रायः कार्य की प्रतिकूल स्थितियों में काम करने के लिये विवश होना पड़ता है, यह पूरी तरह एक अस्वस्थ परम्परा है । अस्वस्थ स्थितियों में किसी अस्वस्थ व्यक्ति की चिकित्सा करके उसे स्वस्थ्य बनाने का दायित्व किसी भी डॉक्टर के लिये बहुत चुनौतीपूर्ण और तनाव उत्पन्न करने वाला होता है ।
हृदयाघात से बचने के लिये सिगरेट और शराब से दूर रहना ही पर्याप्त नहीं है ,तब हमें उन कारणों को प्रमुखता देनी चाहिये जो हृदयाघात के लिये उत्तरदायी हो सकते हैं । सबको पता है कि लाइफ़-स्टाइल जनरेटेड डिस-ऑर्डर्स में हृदयरोग की भी गणना की जाती है किंतु दुर्भाग्य से हमारे यहाँ इसके लिये कोई सार्थक और ठोस योजना नहीं है । योगासन के नाम पर जो हो रहा है वह यदि पाखण्ड नहीं है तो अभी तक ऐसा कोई डाटा सामने क्यों नहीं आया जो जीवनशैली जन्य रोगों में कमी को प्रदर्शित करता हो !
“अब समय आ चूका है” की हम लोग ही अपने आसपास के मरीजों और उनके रोग और उन रोगो के निकटतम कारणों की समीक्षा करे। तथा वर्तमान खान पान को त्याग कर पुन:पुरानी पद्धति के खान पान की तरफ रुख करे।
फ़ूडमेन अपने लेखो के द्वारा स्वस्थ जीवन शैली और स्वास्थ्य को लेकर हमेशा से बताता रहा है। स्वस्थ रहने के लिए स्वस्थ खान-पान और स्वस्थ खान-पान के क्या तरीके हो सकते है। और कैसे अपने जीवन में मामूली बदलाव ला कर स्वस्थ रह सकते है जैसे विषयो पर पाठको का ध्यान आकर्षित किया है। हो सकता है की ऐसे मामूली बदलाव आपके लिए आसान नहीं हो लेकिन असंभव भी नहीं है।आज ही से शुरुवात होगी या फिर जीवनशैली बीमारियों के बाद से। फैसला आप का ही रहेगा। अल्पायु में अपने सपने मन में लिए कोई तड़प कर मरना नहीं चाहेगा ?