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महंगे टमाटर खरीदने की क्या मज़बूरी हो सकती है। 

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बाजार में टमाटर के कई विकल्प मौजूद होते हुवे भी ?

टमाटर हर साल इन्ही दिनों में महंगे होते है। होते आए है। मानसून के शुरुवात और दौरान कई सब्जियों के भाव आसमान छूने लगते है। इसकी बड़ी वजह उपजाऊ और फसल वाले इलाको में बरसात के कारण बाढ़ और बाढ़ की वजह से फसलों का बर्बाद होना और ट्रांसपोर्ट के संसाधनों   दिक्कत की वजह से मांग और पूर्ती के खेल में महंगाई जीत जाती है।  

लगभग पांच सौ सालो पहले जिस को जहरीला मान कर खाया ही  सिर्फ बाग बगीचों में सजावट के लिए लगाया जाता था। भारत में भी 16वी शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा टमाटर भारत में लाया गया। टमाटर में पाये जाने वाले अल्कलॉइड टोमेटिन और सोलनीन कई लोगो को एलर्जिक रिएक्शन का कारण बनते है। जिससे कई लोग टमाटर खाना पसंद नहीं करते। लेकिन टमाटर को अधिक पकाने से ये अल्कलॉइड कम या नाम मात्र के रह जाते है। जिससे टमाटर न खाने वाले भी इसका सॉस खूब मजे ले कर खाते है। टमाटर को खाद्य संदूषक साल्मोनेला से भी जोड़ कर देखा जाता है अकेले अमेरिका में 2006 से 2018 के बिच लगभग 172 तरह की बीमारियों का  सूत्रधार टमाटर में पाये जाने वाले साल्मोनेला से जोड़ कर देखा गया। 2008 मे अमेरिका में साल्मोनेला प्रकोप के चलते टमाटर को अस्थायी रूप से प्रतिबंधित किया गया था। 

टमाटर पकने के बाद मीठा और खट्टा स्वाद उत्पन्न करता है। वही इसका रंग भी खाने को चार चाँद लगता है। और अक्सर खाद्य वस्तुओ के विज्ञापन में टमाटर को प्रमुखता से दिखा कर इसे जनमानस में अत्यंत जरुरी सामग्री के रूप में बिठा दिया गया है। किसी भी घरेलु सब्जी को बिना टमाटर सोच पाना बनाने वालो के लिए कल्पना से बाहर की सोच बन गई है। इसी सोच का फायदा कई दशकों से सब्जी के भण्डारण करने वाले माफिया सालो से उठाते आये है। सीजन और मौसम या प्राकृतिक आपदा के नाम पर ग्राहकों से 10 से 20 गुणा अधिक भाव में टमाटर ,प्याज की बिक्री की जाती है। जबकि किसानो को नाम मात्र के भाव ही दिए जाते है आज भारत में टमाटर का खुदरा दाम 100 के आसपास है जबकि हालही की खबर है की किसानो को टमाटर के भाव 1रु प्रतिकिलो के हिसाब से दिया जा रहा था तो किसानो ने अपने टमाटर को मवेशियों को खिलने और खाद बनाने के काम में लेकर अपना विरोध दर्ज करवाया है। 

सब्जिया और फल के दामों में सरकार (केंद्र सरकार व राज्य सरकार ) कोई दखलनदाजी नहीं करती है। वही सरकार के ही विधायक सांसद मंत्री मंडियों में अपना राज कायम किये हुवे है। ऐसे में सरकार पर कोई नैतिक जिम्मेदारी होते हुवे भी कुछ नहीं किया जा सकता। बस हर साल विपक्ष इस मुद्दे को लेकर जनता में पहुंच कर  एक तमाशा आयोजित कर लेते है। और फिर यही एक दो  महंगाई कुछ महीनो में पुनः सामान्य हो जाती है। इस पुरे खेल में सबसे ज्यादा नुकसान किसानो और मध्यम वर्ग को ही होता है। 

ऐसा नहीं है की टमाटर के विकल्प बाजार में उपलब्ध नहीं है। बाजार में आपको सूखे टमाटर या टमाटर का पाउडर आसानी से मिल जायेगा। वही कुछ स्थानीय मंडियों में सब्जी में खटाई के लिए कई वनस्पति व सीजनल सब्जियाँ भी उपलब्ध रहती है। सूखा आम यानि आमचूर और निम्बू ताजा केरी जैसी कई सब्जियाँ बाजार में है जिनको टमाटर के विकल्प में काम में लिया जा सकता है। कुछ टमाटर से थोड़ी ज्यादा खट्टी है तो कुछ टमाटर से थोड़ी कम खट्टी है। लेकिन जब विकल्प उपलब्ध है। तो मुख्य के भाव के लिए भयभीत होने की आवशयकता नहीं है। बल्कि यह तो एक मौका है। की और भी विकल्पों को आजमा कर देखा जाये। 

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