क्या आप जानते हैं ?
भोजन के अभिन्न हिस्से आलू/ टमाटर इत्यादि में छुपे जहर की पड़ताल
आलू/ टमाटर के ग्लाइको अल्कलॉइड( Glycoalkaloid )- प्राकृतिक क्षारीय जहर –
विश्वभर में भोजन में दैनिक रूप से आलू ,टमाटर उपयोग में लाया जाता है टमाटर के बिना तो कोई सब्जी ही नहीं बनती कुछ एक सब्जियों को छोड़ दिया जाये तो टमाटर हर सब्जी की जान है जबकि आलू भी एक दिन में किसी न किसी रूप हम उपयोग करते है। जंक फ़ूड आलू टमाटर के बिना हो ही नहीं सकता है।
आलू टमाटर दोनों में ही कुछ ग्लाइको कोलाइड पाए जाते है
ग्लाइको अल्कलॉइड- प्राकृतिक रूप से कई वनस्पतियों में पाया जाता है। ये पौधे या पेड़ के फलो ,तने,पत्तियों जड़ो या कंदो में या सम्पूर्ण पौधे या पेड़ में पाया जाता है। आमतौर पर यह छोटे पोधो के फलो और कंदो में पाया जाता है। प्राकृतिक रूप से इसका निर्माण पौधे और उसके फल व जड़ो की कीट पतंगों को दूर रखने के लिए होता है।
दूसरे शब्दों में कहे तो यह पौधे की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली है, जो पौधे को कीटो के हमले से बचाने के लिए होती है ये रक्षा प्रणाली अलग अलग तरह की हो सकती है; उनमे से एक है ग्लाइकोकलॉइड जो कुछ विशेष प्रकार के पौधों और कंद में देखने को मिलते है। आलू टमाटर ,बैगन ,मिर्च दिखते अलग अलग है विज्ञान में इनको एक ही प्रकार के नस्लीय परिवार “नाइटशेड फेमली” से जोड़ा जाता है
प्राकृतिक ग्लाइको अल्कलॉइड( Glyco alkaloid )- प्राकृतिक क्षारीय जहर –
प्राकर्तिक ग्लाइको अल्कलॉइड कई तरह के होते हैं कुछ नुकसान देह होते तो कुछ का कोई खास प्रभाव नहीं होता है लेकिन कुछ ग्लाइको अल्कलॉइड ऐसे होते हे जो हमारे दैनिक भोजन से सीधे जुड़े होते है जैसे सोलनीन,चाकोनाइन ,टोमैटिन आदी।
ग्लाइको अल्कलॉइड प्राय कुछ ही पौधों में पाया जाता है ये टमाटर ,आलू ,बैंगन व कुछ विदेशी जामुन जो भारत नहीं होते उनमे पाया जाता है।
टमाटर आलू व बैंगन पत्तो में सोलनीन पाया जाता है। ग्लाइको अल्कलॉइड – पाचन तंत्र को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है इससे अपच व उल्टी होना आम बात है।
इसकी थोड़ी अधिक मात्रा अमाशय को नुकसान पंहुचा सकती है तथा तंत्रिका तंत्र पर भी सीधे असर डालती है। ग्लाइको अल्कलॉइड की अधिक मात्रा होने की स्थिति में लकवा या जान तक जा सकती है। लेकिन सावधानी रखी जाए तो ग्लाइको अल्कलॉइड की अधिकता को पहचाना जा सकता है।तथा इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।
ग्लाइको केलॉइड की वजह से टमाटर और बैगन व आलू में कड़वाहट आ जाती है।भारतीय भोजन परम्परा में सब्जियों को काटते समय चखा जाता था। और अभी भी कई घरो में चखा जाता है। लौकी तोरई खीरा आदि तो आज भी पकाने से पहले चखे जाते है।
वही आलू के भंडारण में तेज रोशनी या धूप के सम्पर्क में आने से आलू में हरा रंग आ जाता है तथा उनमे अंकुरण (मुकुलन ) होना शुरू हो जाता है। जो आलू में ग्लाइको केलॉइड की मात्रा बढ़ने का संकेत है।ग्लाइको अल्कलॉइड को सब्जियों से हटाया नहीं जा सकता है।सब्जियों को उबालने और तलने से भी नाम मात्र की कमी होती है।
लेकिन पकाने से कड़वापन खत्म हो सकता है जो की खतरनाक है।कई बार दावतों और होटल ढाबे के खाने में ऐसी सब्जियों के स्वाद और स्वरूप को लेकर नजरअंदाज किया जाता है। जो की किसी को भी फ़ूड पॉइज़निंग कर सकता है।
ग्लाइको एल्कलॉइड से ब्लैकवुड सिंड्रोम (Blackwood Syndrome): इस बीमारी में व्यक्ति का खुद पर नियंत्रण काम हो जाता है। ड्रॉव्सी (Drowsiness): कुछ ग्लाइको एल्कलॉइड सेदेवन के बाद ड्रॉव्सी या नींद आ सकती है।उल्टियां (Nausea): मतली (Vomiting)मानसिक बीमारियां (Mental Disorders): कुछ ग्लाइको एल्कलॉइड के सेवन के बाद मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने की संभावना होती है, और व्यक्ति में उत्तेजना, चिंता, या अन्य मानसिक बीमारियों के लक्षण हो सकते हैं।
स्वस्थ रहना हर किसी का निजी मामला है। हर कोई स्वस्थ रहना चाहता है। फ़ूडमेन आपके लिए खाद्य संबंधित जानकारियों का संग्रहण करता है। ताकी आप सचेत रहे।