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शीतलाष्टमी का त्यौहार और इसका विज्ञान
शीतलाष्टमी भारतीय भोजन प्रणाली और खाद्य विज्ञान का एक अच्छा उदाहरण है।
शीतलाष्टमी भारतीय हिन्दू परम्परा का एक त्यौहार है, जिसे उत्तर भारत के कई राज्यों में इसे मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, होली के आठवें दिन शीतला अष्टमी का व्रत रखा जाता है। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी मनाई जाती है।
कंही इसको ठंडा तो कही इसको बंसोड़ा के रूप में भी मनाया जाता है। शीतलाष्टमी त्यौहार में माता शीतला की पूजा एक दिन के बासी ,पुराने भोजन से की जाती है। पारम्परिक रूप से एक दिन का बासी भोजन धर्म के अनुसार भोजन की बर्बादी को समझने के लिए एक कोशिश है।
इस दिन मान्यता के अनुसार चूल्हा नहीं जलता है। महिलाएं पूजन के बाद आराम करती है, क्योकि माना जाता है की बासी भोजन का सेवन करने से आलस आता है।
शीतलाष्टमी त्यौहार में पारम्परिक रूप से कई व्यंजन किण्वन /फ़र्मन्टेशन विधि आधारित होते है।
जैसे बाजरे मक्के की छाछ में बनी राबड़ी ,हींग व मसालों के पानी को किण्वन करके कांजी व अलग अलग जगह की कांजी ( पानी में मसाले व अन्य सामग्री डाल कर पानी को किण्वन विधि से खाने योग्य बनाना ) इत्यादि कई ऐसे व्यंजन है जो भारतीयों के खानपान में ज्ञान व अतिप्राचीन ज्ञान होने का प्रतिक है।
भारत में हर त्यौहार एक निश्चित तिथि और विशेष नक्षत्रीय स्थिति में ही मनाये जाते है। ये त्यौहार किसी शासक या हमलावर के कारण नहीं बल्कि जन चेतना में प्राचीन बुद्धिजीवियों द्वारा सफल रणनीति का प्रमाण है। जिससे इनकी मान्यताओं में कोई कमी नहीं आयी है।
जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था तब से ही हम भारतीय पग पग पर धर्म परम्परा संस्कृति से ओतप्रोत थे । आज भी को ऐसे पर्व त्यौहार है जो पुरे भारत के साथ साथ विश्व भी मनाता है।
त्यौहार की व्यापकता उसके उतने ही पुरानी परंपरा से जुड़ी हुयी है। भारतीय धार्मिक त्यौहार किसी न किसी रूप से कृषि से व परम्परा से भी जुड़े हैं ।
परम्परा सेंकडो वर्षो से समकालीन बुद्धिजीवियों के ज्ञान को आसान भाषा में जन मानस को समझाने का एक तरीका है।
जब लाखो लोग पढ़े लिखे नहीं थे, तो दलित व सत्ता के कुचक्रो की भेंट चढ़ गए। तब समाज के ही बुद्धिजीवियों ने कई परम्पराओ को शुरू करके धर्म और लोगो को एक करने का प्रयास किया।
आज भले की कुछ पढ़े लिखे लोग धर्म और विज्ञान और परम्पराओ और भोजन को अलग अलग करके देखते है। भारत में शुरुआती या प्राचीन अर्थव्यवस्था इन सभी के समानांतर प्रयासों का परिणाम रही है।