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नए खाद्य कानून में ढील। बड़े औधोगिक घरानो को सहूलियत।
छोटे उधोगो के लिए आफत से कम नहीं नए खाद्य कानून।
नए खाद्य कानून देश की संसद से पारित हो चुके है। जिसका खाका पहले से ही तैयार हो चूका था। मौजूदा खाद्य कानून में संशोधन करके जन विश्वास कानून लागू किया जा रहा है। जो अब तक के खाद सुरक्षा कानूनों में सबसे कमजोर पूंजीपतियों के लिए व सबसे कठोर छोटे खाद्य उधोगो के लिए साबित होने जा रहा है।
2006 में एक फ़ूड सेफ्टी` बिल की देश भर में बात हुई और जोरदार बहस चली कि देश में एक मजबूत फ़ूड के कानून होने चाहिए। उस समय सभी निति निर्धारकों को ये तर्क संगत भी लगा। जिसका कारण उद्योग धंदे भारत सरकार के भिन्न भिन्न दफ्तरों के चक्कर लगाने में ही अपना समय बर्बाद करते रहते थे। फूड अपने में ही एक विस्तृत आयाम लिए हुए है, और उसकी कई केटेगरी जैसे दूध के लिए MMPO और घी के लिए एगमार्क , फल सब्जी के लिए FPO ,मीट के लिए MFPO .
इस तरह से फाइल और सरकारी बाबुओं की मर्जी और उद्योग धंधों को पेचीदगी का सामना करते हुए PFA एक्ट के तहत खून के आंसू रोने पड़ रहे थे।
2006 की पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग समिति ने नए फ़ूड सेफ्टी और स्टैंडर्ड्स एक्ट को गंभीरता से लिया।
फिर बहस छिड़ी कि इस पर नियत्रण के लिए कोई अथॉरिटी बने और वो किस मंत्रालय के अधीन हो। बहुत बहस के बाद तीन मंत्रालयों उपभोक्ता ,स्वास्थ और खाद्य प्रोसेसिंग मंत्रालय में से देश के जन मानस की सेहत का जिम्मा लेने वाला मंत्रालय केवल स्वस्थ मंत्रालय ही हो सकता है, ऐसा फैसला लिया गया ।
2008 के अंत तक FSSAI का गठन हो गया और इस एक्ट के अनुपालन की सारी जिम्मेदारी उसके ऊपर आ गयी।
किन्तु फ़ूड मेन उस लेख का उल्लेख यंहा करना चाहता है जिसे CSE की डायरेक्टर सुनीता नारायणन ने 2006 में ही लिखा था और भांप लिया था कि ये एक्ट किसके लिए बन रहा है क्या ये उद्योगों के लिए ही बन कर रहने वाला है।
फ़ूडमेन के एडिटर इन चीफ ने भी 2006 में वौइस् नई दिल्ली में हेड फ़ूड सेफ्टी पद पर रहते हुए `एक लेख लिखा कि किसे फिक्र पड़ी है :सरकार को :उधोगों को ,या जनता को कि इस एक्ट से कुछ होने
जाने वाला नहीं है।
खैर वो सारे कयास आज 14 साल बाद सच हो रहे हैं। जिन जिन मुद्दों पर आशंका जताई गयी वो सब हमने देखे हैं। जैसे बाबा राम देव के कई सैंपल फ़ैल होने के बाद भी उन्हें छोड़ दिया गया।यहाँ तक की रामदेव की कम्पनी पतंजली के भ्रामक विज्ञापनों पर भी एक करोड़ रूपए का जुर्माना लगाने की धमकी दे कर किनारा कर लिया गया। ताकि बाबा रामदेव बच भी सके और कोई दूसरा ऐसी हिमाकत न करे।
नए खाद्य सुरक्षा कानूनों में उम्र कैद जैसी सजा गंभीर मिलावट पर ख़तम कर दी गयी। और 2020 आते आते तो CII और FICCI का इतना कब्ज़ा हो गया कि सरकारी आईएएस लॉबी ने उद्योगों के हाथो उनके लिए कानूनों में संशोधन कर करके आर्डर जारी करना चालू कर दिया। जिसमे देश के किसी भी धर्म विशेष की भावना और मान्यताओ को पूर्णतया दरकिनार कर दिया गया हे।फ़िलहाल केंद्रीय सरकार द्वारा जनविश्वाश कानून के जरिये उधोगपतियो के लिए मनमानी करने के रास्ते खोल दिए है वही मंझले ,लघु,व सूक्ष्म उधोगो के लिए विलुप्ती के द्वार खोलने का प्रयास किया गया है।
फिर विदेशी अपना हाथ कैसे पीछे खींचते उन्होंने बस्ते में पड़े `जेनेटिक मॉडिफाइड एक्ट को धीरे से सरकवा दिया। और हमारे देश की संस्था FSSAI फंसाई साबित हुई।
अब जनता को जल्द ही लेवल पर GMO अवयवों पर सूचित किया जायेगा। विदेशों में ये पहले से ही है।इस तरह से खाद्य सुरक्षा व मानक प्राधिकरण अब उद्योगपतियों और पूंजीवाद के अधीन करने का सरकारी प्रयास किया जा रहा है।
भारत जहां के नागरिक खाद्य सुरक्षा का मतलब ढका हुवा और हाथ धोने तक की समज तक सीमित है। उनके लिए नए खाद्य कानून को समझना उतना ही मुश्किल है। जितना अब तक के कानून समझ में आये है।खाने में बाल और छिपकली या कांच के टुकड़ो पर हल्ला मचाने वाले हम भारतीय GMO और फ़ूड एडिटिव को लेकर कितने जागृत है। वो आज के फ़ूड ब्लॉगर और यूटूबर से समझ सकते है। जो आज भी शुगर और ट्रांस्फेट को लेकर लोगो को समझाने की कोशिश में लगे है। नए खाद कानून बहुत जल्दी ही आम नागरिकों को मॉल कल्चर में धकेल देंगे। और छोटे दुकानदारों की दुकाने चौपट हो जाएगी ?
डर्टी पिक्चर अभी बाकी है