कंज्यूमर कार्नर
गायों को विलुप्त करने की तैयारी
किसानों की वैकल्पिक आय पर खतरा
गाय और गाय का दूध हम भारतीयों के लिए अलग अलग धर्मो के अनुसार अमृत या एक पोषक आहार के रूप में समाहित है। हर धर्म के लोग गौ पालन व गाय के दूध व दूध से बने अन्य पदार्थों का सेवन करते है।
पशुपालन किसानों के लिए वैकल्पिक व द्वितीय आय का स्त्रोत माना जाता है। और है भी।
यूरोपियन व पश्चिमी देशो में अनाज आधारित या पौधों से आधारित दूध को लेकर कई प्रयोग किये जा रहे है। जिससे दूध या दूध जैसे प्रदार्थ मवेशियों से न लेकर प्लांट बेस दूध की तरफ लोगो को ले जाया जा सके।
विदेशो में शाकाहार को नियोजित रूप से प्रचार किया जा रहा है। और यही कोशिशें हमारे देश में भी चल रही है। गौपालन को इतना हिंसक व अमानवीय बताया जा रहा है। जैसे हिटलर के यहूदियों के लिए गैस चैम्बर की डॉक्यूमेंट्री हो। यह तो समझा जा सकता है की शहर या आधुनिक तकनीकों से सुसज्जित डेयरी फार्म में मवेशियों पर तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। और सिर्फ दूध का उत्पादन ही इनका प्राथमिक उद्देश्य होता है। तथा नुकसान और लागत बचाने के लिए ये डेयरी फार्म अमानवीय तरीको से पशुपालन कर रहे है।
इसके विपरीत किसानो और गांव के पशुपालकों के पशुपालन में और आधुनिक डेयरी फार्म के व्यवहार में बहुत फर्क देखने को मिलता है।किसान और गांव के पशुपालको से पशु से भावनात्मक रूप से जुड़े होते है।
आज प्लांट बेस दूध के प्रचार में कुछ अप्रवासी भारतीय (NRI ) शहरों में अलग अलग उदाहरणों से लोगो को प्लांट बेस दूध का प्रचार करते देखे जा सकते है।
सोच कर देखिये – जब दूध के लिए मवेशियों का उपयोग बंद या कम हो जायेगा। तो फिर इन मवेशियों का क्या होगा। इन पशुओं की जरूरत कम हो जाएगी तो इसका परिणाम कितना भयानक होगा। इन दुधारू पशुओं को आवारा छोड़ दिया जायेगा या आधुनिक कसाई खानो में भेज दिया जायेगा। और कुछ ही सालो में इन मवेशियों की प्रजाती विलुप्ति के किनारे होंगी।
तथा दूध के अन्य उत्पाद जैसे दही, घी, छाछ ,क्रीम और भारतीय मिठाइयां आदि उत्पाद भी बाजार से गायब हो जायेगे। और इनके साथ साथ भारतीय संस्कृति भी और धुँधली हो जाएगी।
फूडमेन में हमने हमेशा नकली और मिलावटी दूध का विरोध किया है। तथा प्राकृतिक रूप से पाली गई गाय व अन्य दुधारू मवेशियों के दूध मिले तो उत्तम बताया है। इसके अलावा बाजार का दूध मिलावटी और नकली हो सकता है। इसलिए ऐसा दूध का उपयोग बंद करने की सलाह हमारी तरफ से दी जाती रही है।
CNN की हालिया एक रिपोर्ट में बताया गया है – अमेरिकन सोसायटी फॉर न्यूट्रिशन की वार्षिक बैठक, न्यूट्रिशन 2023 में सोमवार को बोस्टन में प्रस्तुत एक नए अप्रकाशित अध्ययन के अनुसार, मवेशियों के दूध के विभिन्न पोषक तत्वों के स्तर को पूरा करने के लिए पौधों के दूध के सभी विकल्प सही नहीं हैं।
इस अध्ययन में करीब 23 प्लांट बेस दूध बनाने वाले निर्माताओं के 233 दूध के सैंपल लिए गए। जिनमे से 50 % में विटामिन डी गायो के दूध के मुकाबले बहुत ही काम या नाम मात्र का था कई सैंपलों में केल्सियम गायों के दूध के मुकाबले कम था तो कई सेम्पल में प्रोटीन का सत्तर गायों के दूध के मुकाबले कम पाया गया।
पोषक तत्वों की कमी को वैज्ञानिक सिंथेटिक या कृत्रिम तत्वों से पूरा कर सकते है। व्यवहारिकता में ऐसे दूध जिसमे कृत्रिम तत्व हो उसे कृत्रिम दूध ही कहा जायेगा। पश्चिमी विज्ञान इसे फोर्टिफाइड दूध बता कर पेश करेगा। दूध और दूध के बाजार को लेकर बड़ी बड़ी कम्पनी दूध के विकल्पों पर अरबो रूपए खर्च कर रही है। जल्दी ही इनको मान्य कर दिया जायेगा। और भारत का सबसे बड़ा दूध बाजार इन बहुराष्ट्रीय कम्पनीयो के हाथो में होगा। जिसका खामियाजा किसानो और छोटे दूध व्यापारियों को उठाना पड़ेगा। भारत की दूध सहकारी संगठन बिखर जायेंगे।
इससे सरकार के राजस्व में कोई कमी नहीं आएगी ,बल्कि राजस्व में बढ़ोतरी ही होगी। क्योकि छोटा पशुपालक और किसान सीधे तौर पर दूध बेच कर कोई टेक्स नहीं देते है।
आने वाले सालो में ये बहुराष्ट्रीय कम्पनी नाच गा कर अपने विज्ञापनों में बड़े कलाकारों को लेकर आपको अपने कृत्रिम दूध पीने के लिए प्रेरित कर लेगी। और दूध उत्पादन में डेयरी उद्योग के अमानवीय चेहरे को भी बेनकाब कर देगी। बाजार के नकली दूध और गाय के दूध में हिंसा दिखा कर आपको इन कंपनियों के कृत्रिम व फैक्ट्री मेड दूध आपको बेच देंगी।
लेकिन याद रहे अगर ये दूध आप के लिए एलर्जिक या आपके अनुकूल नहीं रहा तो क्या होगा ?जब तक आप समज और संभल पायेंगे तब तक पशुपालन के पशु विलुप्ति के कगार पर होंगे और आपको मुंह मांगे दाम पर भी शुद्ध गाय का दूध नहीं मिलेगा। इसलिए सावधान हो जाये।