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आम आदमी में बढ़ता यूरिया के जहर का प्रभाव ।
खाने की हर चीज में आज यूरिया के जहर मौजूदगी।
यूरिया के जहर का प्रभाव 21वी सदी का सबसे खतरनाक जहरो में होने जा रहा है। लेकिन सरकार और जनता का इस पर ध्यान बिलकुल भी नहीं है। सरकारे मेडिकल माफिया या मेडिकल इंडस्ट्री के बहकावे और जनसंख्या वृद्धि व खाद्य संकट में मायाजाल में उलझा दी गई है। या सरकार समझना ही नहीं चाहती की यूरिआ के जहर ही आज देश की जीवनशैली बीमारियों की जड़ है।
यूरिआ के जहर के प्रभाव को समझने के लिए हालिया में बीकानेर की एक घटना को उदाहरण के लिए देखा जा सकता है बीकानेर के लूणकरणसर तहसील के जैतपुर गावं में एक खेत में यूरिया के छिड़काव के बाद पानी छोड़ने और वही यूरिया के जहर युक्त पानी एक जगह इक्कठा हो गया जिसे पास ही गुजर रही गायो ने पी लिया जिसके चलते 5 गायो की मौत हो गई तथा 6 गायो की स्थिति गंभीर है। यूरिया की मात्रा को लेकर अंदाजे लगाये जा सकते है। लेकिन ये भी समझा जा सकता है की यूरिया एक जहरीला तत्व है। जो आज की तारीख में आपकी रसोई के हर कच्चे अनाज और सब्जी या फल के रूप में मौजूद है। जो आप की हर बीमारी के लिए जिम्मेदार है चाहे वो डायबिटीज हो या हृदय रोग या कैंसर ही हो।
यूरिया हरित क्रांति (1965-66 ) के बाद से ही भारतीय खेतों में डाला जाने लगा था। शुरुवात में किसानो को यूरिया को लेकर खास रूचि नहीं थी। तब सरकारों ने जबरदस्ती या बहला कर ,प्रशासनिक रूप से निशुल्क यूरिया खेतो में डलवाया गया। शुरुवाती तौर पर एक एकड़ में चार से छः किलो यूरिया डलवाया गया। जिसके असर से प्रति एकड़ फसलों में वृद्धि देखी गई। फसलों में दोगुने से तीन गुणे का उछाल देखा गया।
जिससे किसानो का लालच बढ़ा और किसान हर बार फसल बढ़ाने के लिए हर बार यूरिया की मात्रा बढ़ता गया पहले के मुकाबले दोगुनी यूरिया का उपयोग खेतो में होने लगा। किसानों ने तय सीमा से 10 -15 गुणा यूरिया का उपयोग शुरू कर दिया और सरकार द्वारा भी किसानों को यूरिया के बारे में ज्यादा शिक्षित नहीं किया गया।या जानबूझ कर उन्हें यूरिया के जहर के बारे में सही से समझाया ही नहीं गया। किसान तो यूरिया को चमत्कारी ही समझते रहे।
1965 में जहां कुछ किलो यूरिया का उपयोग होता था 1975 तक आते आते यूरिया का प्रति एकड़ 100 किलो तक पहुंच गया हर साल पिछले साल से 10 प्रतिशत तक यूरिया का उपयोग बढ़ गया 1995 -97 तक आते आते यूरिया का उपयोग 12 से 15 गुना बढ़ गया और प्रति एकड़ 250 किलो से 300 किलो तक बढ़ गया।
लेकिन यहाँ से हमारे खेतो की उर्वरक क्षमता नकारात्मक होनी शुरू हो गई।यूरिया के जहर के चलते आज देश में कई खेत अब बंजर होने की कगार तक पहुंच गए। हालात ये है की अब कई फसलों की पैदावार घट रही है। और उर्वरको की कीमत भी बढ़ाना शुरू हो चुकी है। जिसे फसलों के दामों में वृद्धि और बाजार में महंगाई बढ़ रही है।
अब हम ऐसे हालत में पहुंच गए है जहाँ से वापसी करना बहुत ही मुश्किल है। यूरिया के जहर से उत्पादित गेहूं का उपयोग हर कोई कर रहा है और सबसे ज्यादा यूरिया और रासायनिक उर्वरकों का उपयोग गेहूं और चावल में ही होता है। और अब ये अनाज ही आज की जीवनशैली बीमारियों की जड़ बन चूका है। युवाओ के बाल कम उम्र में ही झड़ने लगे है। जो बीमारियां बुढ़ापे की मानी जाती थी वो युवा अवस्था में ही होने लगी है। कैंसर आज भारत की सच्चाई है। भारत कई बीमारियों की राजधानी बन चूका है। ऐसा नहीं है की सरकार ने कोशिश नहीं की। लेकिन अब एक संयुक्त कोशिश की आवश्यकता है। जो हर किसी को मिल कर करनी पड़ेगी।
भारत में हर साल यूरिया की खपत बढ़ रही है। 2022 में ही भारत ने लगभग 3 करोड़ टन से भी अधिक यूरिया की खपत की है।यूरिया के उपयोग में भारत अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरे स्थान पर आता है
यूरिया के जहर अब खेतों से होते हुए हमारी रसोई और हमारे पानी के स्रोतों तक पहुंच रहा है। भूगर्भ जल में भी यूरिया के जहर पहुंचने लगे है।
जैविक खेती होती है लेकिन सिर्फ अमीरों के लिए। पूंजीपति वर्ग अब अपनी खेती खुद से ही करवा रहा है। और जैविक खेती के अनाज बाजार में बहुत महंगे है। जिनको खरीदने की गरीब वर्ग सोच भी नहीं सकता ( 80 करोड़ लोगो को मुफ्त में अनाज दिया जाता है ) और मध्यम वर्ग भी मुश्किल से जैविक अनाज खा सकता है। उसमे भी जैविक के नाम पर धोखे होते रहते है।
ऐसे में अब हम सब को ही मिल कर आगे आना होगा नहीं तो भविष्य में अनाज बहुत महंगा भी होगा और यूरिया के जहर से जहरीला भी। हमें सरकार पर कृषि को धीरे धीरे जैविक करने के लिए दबाव बनाना होगा। देश आज अनाज के मामले में आत्मनिर्भर है लेकिन हर आम इंसान अपने स्वास्थ्य और पौष्टिक भोजन को लेकर आत्मनिर्भर नहीं है। स्वास्थ्य बीमा बीमारी के इलाज का बोझ कम कर सकता है। लेकिन एक अच्छा स्वास्थ्य नहीं दे सकता है।