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हिन्दू आस्थाओ पर चोट करती पैकेट बंद उपवास सामग्री 

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पैकेट बंद उपवास सामग्री से दूषित होता सनातन उपवास

पैकेट बंद उपवास सामग्री आज हमारे देश में फैशन या मज़बूरी हो गया है। उपवास सनातन धर्म में और विशेषकर  महिलाओ में सामान्य एक धार्मिक कार्यक्रम है जिसे महिलाये अपनी श्रद्धा और परिवार की सुख सुविधा के लिए ईश्वर के प्रति धन्यवाद व आस्था जताने और धार्मिक पर्वो में किया करती है। सिर्फ महिलाये ही नहीं पुरुष और बच्चे भी बड़े त्योहारों में एक समय का अन्न त्याग कर भगवान और धर्म के प्रति अपनी भूमिका निभाते है।

बाजारवाद के इस युग में मानवता को ताक पर रख कर  शिशुओं के डब्बा बंद भोजन में हानिकारक तत्व खाद्य संरक्षण  के नाम पर  मिला कर बेचे जाते है। वहा धर्म और धार्मिक कार्यो में शुद्धता को कौन पूछता है। हालाँकि सनातन धर्म अनुयायियों को प्रोसेस फ़ूड को लेकर संवेदनशील होने की जरुरत है।  क्यों की उनके धार्मिक मान्यताओ को प्रोसेस फ़ूड विज्ञापनों के माध्यम से नुकसान पहुंचाया जा रहा है। 

हाल ही के कुछ सालो में अलग अलग खाद्य  निर्माता या कम्पनी उपवास के लिए  पैकेट बंद उपवास सामग्री  फलाहारी बाजार में बेची जा रही है।

मजे  की बात ये है की किसी भी निर्माता या कंपनी के पैकेट पर उपवास या व्रत में उपयोग की कोई दिशा निर्देश नहीं दिए है। किसी भी तरह से ऐसे उत्पादों पर सनातन की व्रत परम्परा में इन उत्पादों की महत्वता को लेकर कोई जानकारी होती ही नहीं है।  लेकिन दुकानों पर  पैकेट बंद उपवास सामग्री  की  मार्केटिंग उपवास या व्रत में काम में आने को लेकर की जाती है।

पैकेट बंद उपवास सामग्री फलाहारी यानी फल आहार के  नाम पर बेचे जाने वाले उत्पादों में पाम आयल ,बीटी कॉटन सीड व कई तरह की फैट या वसा का उपयोग होता है। जिसकी कोई भी जानकारी उत्पाद के पैकेट पर उपलब्ध नहीं होती है।  इनको ई-कोड ( E-Code ) में लिख दिया जाता है।

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जो सिर्फ कंपनी वाले या FSSAI वाले ही समझ सकते है।  आम इंसान और पढ़े लिखे लोग भी इन E-कोड की सामग्री का विवरण नहीं समझ सकते। ऐसे उत्पाद छोटे स्तर से लेकर कई नामी ब्रांड के होते है।   जिसमे कई बड़ी बड़ी कम्पनी के उत्पाद भी शामिल है।  तथा ऐसे उत्पादों में भी सरक्षक और स्वाद बढ़ाने के लिए जो तत्व काम में लिए जाते है। उनकी व्रत में उपयोग की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आलू चिप्स हो या मिक्स।

अगर आप भी पैकेट बंद उपवास सामग्री  पर लिखे तत्वों और  उपवासिय उत्पाद में मिलाये जाने वाले तत्व पढ़े तो पाएंगे की उसके मक्के के मैदे ( Corn /Maize starch ) का उपयोग किया गया है। जो की व्रत ,उपवास की नियमावलियों के विरुद्ध है। तथा कुछ स्थानीय निर्माताओं  के पेकिंग पर बहुत से तत्वों की जानकारी ही नहीं होती है।

  कुछ निर्माता पैकेट बंद उपवास सामग्री उत्पाद में एलर्जी के लिए चेतावनी भी पैकेट के पीछे लिखते है जिसमें गेहूं जैसे तत्वों के बारे में आगाह किया जाता है। उपवास में एक समय के अन्न की मनाही होती है और उपवास पूर्ण होने से पहले अन्न का कण भी उपवास भंग कर सकता है ऐसी मान्यता है।

फ़ूडमेन ने अपनी जाँच पड़ताल में पाया कि  स्थानीय बाजार में पैकेट बंद उपवास सामग्री फलाहारी में बहुत से ऐसे तत्व पाए गए है जो स्वास्थय के लिए सही हो या न हो ये जाँच का विषय है लेकिन अंग्रेजी में उन तत्वों के बारे में जरूर लिखा होता है। ऐसे उत्पादों की उपभोक्ता या  अधिकतम उपवास करने वाला वर्ग यानी महिलाये होती है। जिनको इन तत्वों के बारे में ज्यादा पता ही नहीं होता है ।

इन उत्पादों में ऐसे तत्व होते है।  जो उपवास में उपयोग किये जाने योग्य नहीं है।लेकिन टीवी विज्ञापनों के साथ साथ महिलाओ को दैनिक सीरियल के नाटकों में भी जाने अनजाने में ऐसे उत्पादों की मार्केटिंग की जा रही है। 

ऐसी परिस्थिति में फ़ूडमेन की सलाह है की सनातनी  महिलाये व अन्य सनातन उपासक जब भी उपवास करे ताजे फलों का ही फलाहार करे या घर में ही चिप्स व मूंगफली को तैयार कर के उपयोग में लाये।  खाद्य उत्पादक व निर्माताओं को उत्पाद की सेल्फ लाइफ को लेकर गंभीरता है ना कि आपके स्वास्थ्य और धार्मिक भावनाओं की।अपनी धार्मिक आस्थाओ का निर्वाह करना हर भारतीय के अधिकार में है।  जिसे कोई धोखा दे नहीं सकता है।  और देता है तो उसके लिए पर्याप्त कानूनी प्रावधान भी हमें संविधान देता है। 

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