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आधुनिक रसोई और भोजन  गुणवत्ता की कमी और जीवन आनन्द  में कमी

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रसोई से गायब होती गुणवत्ता ? 

लाखो की कमाई के बावजूद कुपोषण 

आधुनिक जीवनशैली में रसोई तथा रसोई में खाना बनाने के तरीके में बहुत बदलाव हुआ है। आजकल के ज़माने में सिमटते परिवार व एकल परिवार के चलते रसोई में खाना बनाने व खाने के सामान में भी बदलाव आया है। लोगों के बीच भागदौड़ भर जीवन और समय की कमी के कारण, घर के खाने की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।

शहरी जीवन में खाने के हर अवयव को प्री-प्रोसेस्ड व पैकेज फ़ूड से ही रसोई भरी रहती है। आटा ,बेसन ,मसाले आदि सभी पैकेट में आने लगे है। जो दो दशक पहले तक मोहल्ले की चक्कियों तक सिमित थे आज बड़े बड़े मॉल सुपरमार्किट के शोकेस से लेकर घरेलु रसोई में दिखने लगे है। ऐसा नहीं है की सभी लोग अब पैकेट के प्री प्रोसेस फ़ूड ही लाते है शहर और विशेषकर गावों में आज भी स्वास्थ्य के लिए सजक लोग अपने मसाले और आटा मोहल्ले की ही चक्की पर पिसवाते है।

फैक्टरी मेड प्रोसेस फ़ूड की गुणवक्ता में कमी आ जाती है। तथा साथ ही फैक्टरी मेड प्री -प्रोसेस फ़ूड में उत्पाद की शेल्फलाइफ बढ़ाने उत्पाद को सुन्दर बनाने व के लिए कई तरह के रसायन भी मिलाये जाते है। जिससे फ़ूड प्रोडक्ट की गुणवक्ता में कमी तो आती ही है। साथ ही इन रसायनो से शरीर को भी नुकसान होता है।

पैकेज फ़ूड प्रोडक्ट को अधिकतर प्लास्टिक व पॉलीथिन की पैकिंग की जाती है। इन प्लास्टिक की पैकिंग के साथ साथ कुछ मात्रा में नेनो प्लास्टिक के अणु चिपके रहते है। जो मुख्य उत्पाद में मिल जाते है।

शहरो में रसोई में खाना पकाने के लिए एलपीजी गैस का उपयोग होता है। हालही में न्यूयॉर्क टाइम में छपे एक लेख में एलपीजी गैस चूल्हे की आंच में मिश्रित अन्य गैसों से कैंसर तक होने की सम्भावना को लेकर लेख छापा था। बड़े शहरो में मध्यम वर्ग परिवारों में रसोई का आकार ज्यादा बड़ा नहीं होता जिससे गैस चूल्हे की मिश्रित गैस से संपर्क ज्यादा रहता है। जो की हानिकारक हो सकता है। शहरी गृहणियों में अस्थमा ,व फेफड़ो कैंसर ज्यादा पाया जाता है। जबकि ग्रामीण परिवेश की महिलाये जो अभी पारम्परिक चूल्हे का उपयोग कर रही है। उनमे अस्थमा व फेफड़ो का कैंसर कम पाया गया है।

पैकेज फ़ूड को बिना रसायनो के लम्बे समय तक सुरक्षित रखने के लिए कई देशो के वैज्ञानिक शोध कर रहे है। आधुनिक विज्ञान अभी तक ऐसी कोई खोज या तरीका अभी तक खोज नहीं पाया है। जिसमे बिना रसायन के फ़ूड प्रोडक्ट को साधारण बाजार में बिना किसी परेशानी या प्रावधान के सुरक्षित रखा जा सके। आपका डेटा लम्बे समय के लिए सुरक्षित किया जा सकता है। लेकिन आटा नहीं

ये कहा जा सकता है। की जैसे जैसे हम और हमारी रसोई आधुनिक हो रही वैसे वैसे भोजन की गुणवक्ता और जीवन के अनुभवों की गुणवक्ता में नाटकीय परिवर्तन हो रहा है।

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सहूलियत के साथ साथ जीवनशैली बीमारियां हमारे जीवन महत्पूर्ण हिस्सा बन गई है। यहाँ तक की पैदा होते ही शिशुओं को जीवनव्यापी रोग होने लगे है। ऐसे में करोडो के टर्नओवर के व्यापार और लाखो रु महीने के पैकेज की सैलेरी मायने तो रखती है। लेकिन महत्वपूर्ण नहीं है।

हम चाह कर भी शुद्ध व स्वस्थ खाना नही खरीद पा रहे है। अब कुछ जगह हम पुनः मिटटी के बर्तन या मिटटी की परत चढ़े बर्तन काम में लिए जा रहे है। जलावन लकड़ी के लिए नए डिजाइन के चूल्हे देखे जा सकते है। जो धुंआ बहुत कम पैदा करते है ,तथा धुंआ सीधे ही रसोई या खाना बनाने की जगह से दूर छोड़ा जाता है।

अब समय आ चूका है की हम भोजन के तत्वों की शुद्धता और स्वछता पर विचार विमर्श करे। और इनके आधुनिक विकल्पों की जगह पारम्परिक तरीको पर नवाचार के साथ उपयोग में लाये। फ़ूड इन्वेस्टमेंट या” खाद्य निवेश “को समझे और व्यवहार में लाने की कोशिश करे।

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