कंज्यूमर कार्नर

जैविक खेती की और अग्रसर भारतीय युवा उद्यमी 

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https://gropureorganic.com/

आराम की नौकरी छोड़ जैविक खेती में ही अपना कैरियर बनाने की सोच

पिछले दशक से भारत में जैविक खेती व पारम्परिक खेती व्यापक रूप होने लगी है। जिसका श्रेय किसी केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार के नहीं बल्कि उन  नौजवान उधमियों को जाता है जिन्होंने  आराम की नौकरी छोड़ जैविक खेती में ही अपना कैरियर बनाने की सोची। न सिर्फ सोचा बल्कि कई सफल जैविक उत्पादक आज भारत में जैविक खेती के प्रचार प्रसार में लगे है। 

इसमें सरकारे अपने अपने हिसाब से अपना अपनी पीठ थप थापा सकती है। लेकिन सच्चाई ये है की सरकारी जैविक खेती योजनाए आंकड़ों और फाइलों में ही दिखाई देगी धरातल पर नहीं। 

जैविक खेती में पढ़े-लिखे नौजवान जैसे जैसे सामने आ रहे है। वैसे वैसे भारत जैविक उत्पाद व फसलों के उत्पादन में आगे उभर रहा है। 

जैविक खेती सुनने में ही अच्छी लग सकती है। लेकिन जैविक फसल को जैविक बनाने के लिए कई अजैविक परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। 

ऐसे ही एक जैविक उत्पादक  ग्रोप्योर  ऑर्गेनिक (GROPURE ORGANIC ) के निदेशक श्री पंकज चांडक से जैविक कृषि उत्पादन को लेकर फ़ूडमेन की बातचित हुई। 

पंकज ने अपनी कम्पनी के बारे में बताया की किस तरह से उन्होंने एक बड़ी कम्पनी में काम करते हुवे। धीरे धीरे जैविक खेती के क्षेत्र में आये और एक सफल जैविक कृषि उत्पादन की कम्पनी को खड़ा किया। और आज मध्यप्रदेश ,महाराष्ट्र ,राजस्थान में  लगभग  500 एकड़ से भी ज्यादा जमीन पर 50 से ज्यादा  जैविक उत्पादो का उत्पादन किया जा रहा है। तथा 2025 तक 2000 एकड़ तक जमीन पर जैविक खेती का लक्ष्य रखा गया है ,

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भारत में कृषि क्षेत्रो में जैविक खेती शुरू करना इतना आसान नहीं है।

भारत की कृषि योग्य जमीनों पर हरित क्रांति के बाद से ही रासायनिक उर्वरक ,व कीटनाशकों के उपयोग से लगभग 90 % से भी अधिक कृषि योग्य जमीने प्रभावित है। हर साल देश की उपजाऊ भूमि पर 63 मिलियन  मीट्रिक टन  रसायन उर्वरक के नाम पर सींच दिए जाते है। और करीब  70 हजार टन कीटनाशक उपयोग में लाये जाते है। सिर्फ इसी से भारतीय कृषि भूमि में डाले  गए अब तक के रसायनो की मात्रा का अंदाजा लगाया जा सकता है। 

इन हानिकारक रसायनो में  से कई  रसायन अमरत्व  तत्व ( forever chemicals )है। जो कभी ख़त्म नहीं होंगे या तो दीर्धकाल के लिए ये अस्तित्व में रहेंगे या किसी और तत्व में बदल जायेंगे लेकिन खत्म नहीं होंगे। ऐसी जमीनों को इन जहरीले रसायनो को साफ करने में ही 3-4 वर्ष लग जाते है। और जैविक का प्रमाणपत्र मिलता है। शुरुआती 3 -4 सालो में उत्पादक को विशेष लाभ नहीं रहता है। लेकिन बाद में जैविक फसल को प्रमाणपत्र मिलने के बाद जैविक फसल के अच्छे दाम मिलने शुरू हो जाते है। तथा विदेशो में जैविक फसलों की जबरदस्त मांग है। 

पंकज चांडक से बातचीत में उन्होंने भी शुरुआती समस्याओं के बारे में बताया। उर्वरको को कीटनाशक के विकल्पों पर पंकज ने बताया की वो जीवामृत व पारंपरिक उर्वरकों का ही उपयोग अपने खेतो में करते है। तथा किसी भी तरह के रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक उपयोग में नहीं लिए जाते है। कीटनाशकों के लिए पंचपत्ती काढ़े ( मदार(आक ) ,बेसरम,नीम ,धतूरा,तम्बाकू  ) का या तम्बाकू उद्योग के कचरे से गौमूत्र से तैयार कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। 

साधारण फसल के मुकाबले जैविक फैसले थोड़ी महँगी जरूर होती है। जिसका मुख्य कारण पिछले 3-4 वर्षो की जैविक खेती हेतु खेतो को जहर मुक्त करने की लागत तथा जैविक फसलों के उत्पादन की क्षमता भी कारण होती है। 

लेकिन स्वास्थ्य और सरल जीवन की दिशा में यह आपका खाद्य निवेश जैसा होगा। जिसका लाभ ये है की आप जीवनशैली बीमारियों से मुक्त अपना जीवन जी सकते है। तथा यही वर्तमान समय की विशेष मांग है की हम भारतीय अपने भारतीय परंपरागत  खानपान की तरफ वापस लौटे। और भारतीय परिवेश में ढले।

हम कपड़ो और तकनीकों से बाहर की बात नहीं कर रहे है लेकिन अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें परम्परागत होना ही पड़ेगा। वर्तमान चिकित्सा व्यवसाय में किसी भी बीमारी के लिए रोकथाम है, जीवनव्यापी ईलाज है। लेकिन सम्पूर्ण या एक बार में होने वाला इलाज नहीं है।  ऐसे में भविष्य में दवाओं पर खर्च करने से कहीं बेहतर होगा की खानपान और भोज्य पदार्थों की शुद्धता और स्वास्थ्य और स्वच्छता पर खर्च किया जाये। 

फूडमेन द्वारा ऐसे किसी भी प्रयास को आगे बढ़ाने की कोशिश रहेगी जो प्राकृतिक व जैविक रूप से खाद्य उधोग में आगे आने का प्रयास कर रहे है। आप भी अगर खाद्य क्षेत्र में जैविक प्रयास कर रहे हमें जरूर बताये। हमारा प्रयास आपकी कोशिशों को आगे बढ़ाना रहेगा। 

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