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मोटापा -एक वैश्विक समस्या या षड्यंत्र।
दुनिया की 20 % आबादी मोटापे का शिकार है।
भविष्य में मोटापा दुनिया की सबसे बड़ी समस्या होगी।
भारत हो या कोई भी पश्चिमी देश आज मोटापा एक बड़ी समस्या बन कर हमारे सामने है।मोटापा कई बीमारियों का शुरुवाती लक्षण हो सकता है। या कई बीमारियों के फलस्वरूप। ऐसे में कुछ भी साफ साफ कह पाना आसान नहीं है। मोटापे को अधिक खाने पीने से जोड़ कर देखा जाता है।
जो की पूर्ण रूप से सही भी नहीं और गलत भी नहीं। मोटापे से परेशान लोग कितना खाते है। ये वही लोग जानते है। कुछ लोगो का मोटापा जन्म से ही हावी रहता है तो कुछ का गम्भीर बीमारी या दुर्घटना या ऑपरेशन के बाद मोटापा बढ़ाना शुरू हो जाता है। जिसका कारण मुख्य रूप से ईलाज के दौरान दिए गए स्टीरोइड व अन्य दवाये होती है। कुछ इसी तरह से महिलाओ में गर्भावस्था व प्रसव पश्चात मोटापे की शिकायत आती है।
मोटापे के शिकार व्यक्ति समाज और अपनों में मजाक और सलाहों से कुंठित रहता है। ऐसा नहीं की मोटापे के शिकार लोग प्रयास नहीं करते लेकिन बाजार में जैसे ही वो अपनी जरुरत के लिए उतरते है तो इतनी ठगी का शिकार होते है। की वो अपने मोटापे को ही स्वीकार कर लेता है।
मोटापे के नाम पर अरबो का कारोबार हर साल होता है। और गौरतलब ये है की हजारो खर्च करने के बाद भी परिणाम नाम मात्र ही दिखाई देते है। जिसमे फेट फ्री ( वसा मुक्त ) लेस फेट और लो कैलोरी या ज़ीरो कैलोरी उत्पाद अपने अपने दावों के साथ बेचे जाते रहे है। साथ साथ आयुर्वेद और योग चिकित्सा भी अब इस बाजार की दौड़ में शामिल है। कई तरीको से मोटापे से परेशान लोगो को ठगा गया है और ठगने के बाद भी उन्ही पर आरोप लगा दिया जाता है की उन्होंने सलाहें नहीं मानी।
मोटापा शुरुवात में आप की लापरवाही हो सकती है या आपको जानबूझ कर लापरवाह बनाया जाता है। और मोटापा बरक़रार रहे इस लिए बाजार क्या क्या षड्यंत्र करता है। कैसे साधारण व दैनिक उपयोग के खाद्य प्रदार्थो से आपको कथा कथित जीवनशैली बीमारियों की तरफ धकेल कर अरबो के वारे न्यारे किये जाते है।
फ़ूडमेन ने ऐसे ही उत्पादों और दावों की पड़ताल की और बहुत ही चौंका देने वाले तथ्य सामने आये। हालाँकि यह पड़ताल सिमित साधनो और जानकारियों के अनुरूप की गई है लेकिन फिर भी वास्तविकता का आसपास के तथ्य आप लोगो तक पहुंचने की कोशिश है।
मोटे लोगो को समाज मजाक ,पेटु ,ज्यादा खाने पीने वाला ही समझते है। जबकि 70 -80 सालो पहले मोटे लोग धनी व खानदानी व समृद्धि के प्रतिक माने जाते थे। आजादी के बाद से बनी फिल्मों में मोटे लोगों को मजाक बनाया गया। फिल्मो में हँसी मजाक के नाम पर शरीर की अवस्था और प्रकार को लेकर हास्य धीरे धीरे समाज की मूल प्रवृतियों में कब शामिल हो गया सही से कहा नहीं जा सकता लेकिन अपने अपने दौर में मोटे पतले और काले लोगो का मजाक फिल्मो से ही समाज में घोला गया। और फिर इन्ही उपेक्षाओ से नया बाजार खड़ा किया गया जिसमे मोटे को पतला और पतले को मोटा काले को गोरा बनाने के उत्पाद बाजार में उतारे गये।
मोटापे को लेकर भारतीय अभिभावकों की मानसिकता भी इसकी जिम्मेदार रही और आज भी है। छोटे बच्चो का हस्तपुस्त होने और मोटे होने की पहचान का फर्क भारतीय अभिभावकों बहुत कम देखा गया है। भारत में मोटापे को लेकर डाइटिंग और कसरत शुरुआती उपायों में से एक रहे। धीरे धीरे दोनों ही तरीकों में नई तकनीक का समावेश हुआ है। तथा साथ साथ ठगी भी विकसित हुई। आयुर्वेद व एलोपैथी, होम्योपैथी के मोटापा कम करने के उत्पाद ज्यादा कारगर नहीं रहे।लेकिन फिर भी उत्पादों की बिक्री पर कोई असर नहीं है।
हर महीने में कुछ नया उत्पाद मोटापा कम करने के लिए बाजार में उपस्थित हो जाता है। दरअसल में मोटापा कम करने के उत्पादों के साथ समस्या ये थी की वो किसी एक पर तो कारगर थे वही दूसरे पर उतना कारगर नहीं जितना एक पर हुवा हो और तीसरे पर बिलकुल भी असरदायक नहीं हुवे लेकिन इन उत्पादों के निर्माता इस बात को छुपाते थे।
देश में विशेष तौर पर कसरतखाने ,अखाड़े या जिम में मोटापा कम करने के लिए बहुत से ऐसे उत्पाद काम में लिए जाते है जिनकी बिक्री विदेशो में प्रतिबंधित है। ऐसे उत्पादों से गम्भीर शारीरिक नुकसान तो होते ही है.साथ साथ जान जाने का भी खतरा बना रहता है। देश आये दिन मोटापा काम करने के नाम पर जिम में व जिम के बाद लोगो की हो रही मौते इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
मोटापे का प्रमुख कारण अतिरिक्त भूख है। साधारण भूख या सामान्य भूख से अधिक भूख लगना आजकल सामान्य हो गया है। लेकिन हमें पता ही नहीं चलता की हमें सामान्य से अधिक भूख लग रही है। क्यों की हमें हमेशा यही लगता आया है की हम जरूरत की भूख पर निर्भर है। लेकिन ऐसा होता नहीं है।
फ़ूड कम्पनीज हमेशा चाहती है की आप भूखे ही रहे और आपकी भूख को छोटी छोटी भूख में परिवर्तित करके अपने उत्पाद को खपा सके। इसके लिए बहुत ही चालाकी से आपके आसपास का माहौल ऐसा बना दिया गया है। की आप की छोटी छोटी भूख हमेशा कायम रहे। इसके लिए बाकायदा कई वैज्ञानिक संस्थान और वैश्विक विश्वविधालयो को रिसर्च के नाम पर दान व अनुदान दिया जाता है। तथा नए शोध नए उत्पादों की वकालत करायी जाती है।
पहले बीमारियों के इलाज की दवाये ढूंढी जाती थी आज दवाइयों के लिए बीमारी गाढ़ी जाती है। खाद्य क्षेत्र और चिकित्सा क्षेत्र की सांठगांठ के चलते ही मोटापा फैला है। उमामी स्वाद मनुष्य के प्रारंभिक स्वाद में से एक है। जब मनुष्य जानवरों का शिकार करते थे और मांस को सीधे आग में भून कर खाया करते थे। मानव विकास के साथ सभ्यता के विकास के साथ कई क्षेत्रीय इलाको में भुला दिया जा चुका था। अब वैज्ञानिको ने इसे व ऐसे और भी तत्व खोज निकाले है। जिनसे खाद्य कम्पनी हमारी भूख को अपनी अधीन कर लिया है।
विज्ञान ने इंसानो में भूख और खाने की लालसा को आकर्षित करने के हर बिंदु पर गहन वैज्ञानिक शोध किये जिसके चलते आज हर व्यक्ति अपनी भूख से अधिक व बार बार कुछ न कुछ खा ही रहा है। और खाने से हो रही बीमारियों से ग्रस्त बाद में जो दवाइयां खा रहा है। वो भी बाजारवाद का ही गढ़ है।
मोटापा कम करने के छद्म खेल यह भी है कि कुछ लोग चीनी (Sugar ) यानी मिठास को जिम्मेवार मानकर अपना पक्ष रखते है। तो कुछ लोग वसा ( सेचुरेटेड फेट ) को जिम्मेदार मान कर अपना पक्ष रखते है। जबकि दोनों ही जिम्मेदार तत्वों को मुख्य कारण बताने वाले तीसरे और इसी क्रम में कई पक्ष बाजार में उतारे जाते है ताकि ग्राहक या जनता हमेशा भ्रम में ही रहे। और जो वो खा रहे है वो कई अलग अलग रूपों खाते रहे और पैसा खर्च करते रहे।
इंटरनेट पर एक ही मत पर अलग अलग विचारधाराओं से संक्रमित सामग्री उपलब्ध है। जिसमे से सत्य के निकट होते हुवे भी उलझा दिया जाता है। ताकि एक व्यक्ति किसी सारांश पर न पहुंच पाए।
1968 में दवा खाद्य अवयव बनाने कम्पनी प्रॉक्टर एन्ड गैंबल ( पी एंड जी ) की लेब में दो वैज्ञानिको ने ऐसे वसा को बनाने की कोशिश में जो शिशुओं के लिए पचाने में आसान हो। इसके लिए जो उत्पाद बना उसके प्रायोगिक अनुसंधान में पाया गया की ये वसा मानव शरीर पचा ही नहीं रहा। बल्कि अन्य वसा का पाचन भी अवरुद्ध हो गया है। फलस्वरूप शरीर में कोलेस्ट्रॉल व शरीर की वसा में 10 से 13 प्रतिशत तक की कमी पाई गई। औषधीय प्रदार्थो के इतिहास में गलती से हुई खोजे प्रमुख है।
अपनी इसी सफलता को भुनाने के लिए पी एंड जी कम्पनी ने इसे वजन कम करने के लिए वैकल्पिक वसा व वसा मुक्त वसा के नाम पर1975 में पेटेंट ले लिया।तथा समय समय पर पेटेंट पुनर्स्थापित किया जाता रहा। अकेले अमेरिका में 25 वर्षो तक इसे फैट मुक्त फेट और ऐसे ही उत्पादों में ओलेस्ट्रा मिला कर बेचा जाने लगा।
1996 की एक के बाद एक दुष्प्रभाव की 20 हजार से अधिक शिकायतो के बाद अमेरिकी खाद्य सुरक्षा विभाग ने माना की ओलेस्ट्रा से दुष्प्रभाव होते है। इसके बावजूद भी इसे बाजार से नहीं हटाया गया। लेकिन यूरोपियन संघ ने दबाव में ओलेस्ट्रा से निर्मित खाद्य पर लेबल पर प्रदर्शित करना अनिवार्य कर दिया जो की 2016 तक आते आते पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया।
ओलेस्ट्रा के प्रभाव से शरीर की आंते जहां एक और ओलेस्ट्रा की वसा को पचा नहीं पाती वही दूसरे जरुरी वसा में घुलनशील विटामिन व अन्य पौष्टिक प्रदार्थो का भी पाचन बाधित हो जाता। तथा वसा के पाचन की अनुपस्थिति में मल का ढीलापन व बड़ी आंत द्वारा पानी के शोषण की कमी के चलते दस्त व मल रिसाव की स्थिति बन जाती है।
आपने भी इंटरनेट पर महिला मॉडल को ऑन कैमरा कपड़ो में मल रिसाव के वीडियो देखे होंगे। ओलेस्ट्रा के नियमित प्रयोग से ओलेस्ट्रा के कण आंतो की दीवार पर चिपक कर अन्य पोषक तत्वों का संश्लेषण भी बाधित करते है। जिसके चलते शरीर में चर्बी कम हो जाती है लेकिन शरीर कुपोषण का शिकार हो जाता है।तथा ओलेस्ट्रा के उपयोग से ह्रदय व रक्तचाप व मधुमेह जैसे रोग होने के भी प्रमाण मिले है।
ओलेस्ट्रा के इस्तेमाल से किसी की मौत का कोई आंकड़ा नहीं है। लेकिन आंकड़ों का छुपा होना इसके प्रतिबंध के इतने लम्बे समय को देखते हुवे कोई भी समझ सकता है।भारत में भी ओलेस्ट्रा से युक्त खाद्य प्रदार्थ बिक्री के लिए कोई दिशानिर्देश नहीं है ,ये कई फेट फ्री आयल ,बटर ,चिप्स ,व अन्य मोटापा कम करने के उत्पादों में उपयोग किया जा रहा है।
एक निश्चित समय में ओलेस्ट्रा का उपयोग शरीर की चर्बी का 6 से 10 प्रतिशत कम कर सकता है। लेकिन इसके उपयोग बंद करने के बाद शरीर पुनः अपनी पूर्व स्थिति में आ जाता है। तथा ओलेस्ट्रा से बाधित हुवे पोषण की कमी से शरीर में कई तरह के हार्मोन बाधित होने की वजह से शरीर में और ज्यादा मोटापा आने लगता है। साथ ही ह्रदय व रक्तचाप सम्बन्धी समस्याओ और बढ़ जाती है।
भारत में कई कम्पनी अपने मोटापे के प्रबंधन सम्बन्धी उत्पादों में ओलेस्ट्रा का प्रयोग कर रही है। लेकिन शब्दों के हेर फेर से ओलेस्ट्रा छुपा लिया जाता है। तथा जनता से मोटापे के नाम पर मोटा मुनाफा वसूल किया जाता है।