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जीएम फसलों का षड्यंत्र – पर्यावरण व इंसान दोनों के लिए खतरा
जीएम फसलों से खाद्य श्रृंखला को नियंत्रित करने की कोशिश
बीटी कॉटन के जरिये जीएम फसलों का जैविक जहर घर घर में पहुँच रहा है।
जीएम फसलों से उत्पादन में वृद्धि जरूर होती है। लेकिन नाम मात्र की ये वृद्धि पारम्परिक खेती में आधुनिक मशीन तकनीक से भी ली जा सकती है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक डर को हमेशा से भुनाया जाता रहा है। जनसख्या वृद्धि और खाद्य संकट। और खाद्य संकट के नाम पर यूरोपियन विकसित देश विकासशील देशो की सरकारों को मुर्ख बना ” जूठी विद्या ” पढ़ाकर कर या अंतर्राष्ट्रीय संधियों में फसा कर धन और सत्ता अपने हाथ में रखने के षड़यंत्र करते आये है।
जीएम फसलें
जीएम फसलों में कीटों से बचने के लिए फसल के डीएनए के जींस में बदलाव करके उसी में किसी अन्य जीव के जींस का जैविक जहर डाल दिया जाता है।
जिससे किट पौधे को नुकसान नहीं पंहुचा पाते। तो क्या वो जैविक जहर जो पौधों में कीटों के लिए है वो इंसान के लिए कैसे सुरक्षित हो सकता है। और फिर भी जीएम फसलों में खाद और कीटनाशकों की आवश्यकता होती है। क्यों की जीएम फसल किसी एक या दो नस्लों के कीटों तक ही सीमित है और प्रकृति में कीटों की असंख्य प्रजातियाँ है जिनका स्वभाव और भोजन एक दूसरे से विपरीत होता है।
जलवायु परिवर्तन के नाम पर भीषण या गंभीर स्थिति में फसलों को सक्षम बनाने के नाम पर भी जीएम तकनीक को ही विकल्प बताया जाता रहा है। जो सुनने में वैज्ञानिक लग सकता है। लेकिन जो जीएम फसल भीषण गर्मी के लिए ईजाद हुई हो वो सामान्य मौसम में या विपरीत परिस्थितियों में उतनी सहनशील नहीं होती है। जबकि प्राकृतिक फसलों में विपरीत स्थिति में अनुकूलता धीरे धीरे स्वाभाविक रूप से विकसित हो जाती है।
वर्तमान में जीएम खाद्य फसलों को भी अब भारत में लाने की तैयारी हो चुकी है। जिस जीएम खाद्य फसलों के लिए 2014 से पहले दर्जनों विदेशी रिसर्च और वैज्ञानिकों ,विशेषज्ञों और धर्म गुरुओं को जीएम के विरुद्ध आंदोलन में झोक दिया गया था।
बीटी सरसो और बीटी बैंगन को लेकर विपक्ष में रही भाजपा ने किसानों के साथ मिल कर जोर शोर से ये मुद्दा उठाया था। जिसके चलते बीटी यानी बैसिलस थुरिंगिनेसिसन जीवाणु के डीएनए से संकर बीज के बैंगन और अन्य जीएम फसलों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। मात्र बीटी कॉटन या कपास के अलावा बाकी सब पर प्रतिबन्ध रखा गया था।
इसके लिए आप यूट्यूब के लिंक https://youtu.b/8prhcxt_xrk में जा कर “थाली में जहर “नाम के शीर्षक में देख सकते है।
अब अचानक 8 साल बाद जब जीएम फसलों का जिन्न बोतल से निकल गया तो वो सभी लोग कहाँ है। आप वीडियो में देख सकते है, कि 8 साल पहले जीएम के जहर के विरुद्ध कथा कथित योग व धर्म गुरु सच्चाई और जनहित के लिए जान निछावर करने को तैयार थे।अब वो खुद ही उसी जहर के व्यापारी बन गए है।
तब हो, चाहे अब हो, सच्चाई यही है की जीएम हो या हाइब्रिड दोनों ही खाद्य संसाधनों को सीमित व्यक्ति और सरकार के नियंत्रण में लाने का एक क्रूर तरीका है।
फसल बोने के सीजन में बीज की कमी खाद की कमी के समाचार और विपक्ष का सरकार पर हमला इस बात का सीधा उदाहरण है कि खाद्य व कृषि संसाधनों पर फ़िलहाल तो सरकार का नियंत्रण है। भविष्य में इसका भी निजी करण हो गया तो किसान और गरीब कहाँ जायेगा?
आरम्भिक हाइब्रिड बीज जो सजातीय नस्लों के संकर से मिलते थे। अब वो किसी के भी जींस में परिवर्तन कर के कुछ भी बना लेते है। और इसी तकनीक का आधुनिक अवतार जीएम फसले है।
जीएम फसलों से धीरे धीरे मानवीय जींस को किस में बदल देगी ये भविष्य के गर्भ में ही है। चिंताजनक विषय ये है की जो कंपनी हाइब्रिड बीज ,खाद,खरपतवार ,कीटनाशक बनाती है। वही कम्पनी दवाईया भी बनाती है। एक तरफ हमें कुपोषित भोजन दिया जा रहा है और फिर उसी कुपोषित भोजन से हुई बीमारियों का इलाज भी किया जा रहा है।
कपास की खेती मूलतः कपास या सूत के लिए की जाती रही है। कपास का प्राथमिक उपयोग कपड़ा बनाने में किया जाता है कपास को कात कर सूती कपड़ो के लिए धागा तैयार करना मनुष्य ने प्राचीन काल में ही सिख लिया था। “कपास का सिवाय कपडा उद्योग के अलावा मानव के प्रत्यक्ष उपयोग में नहीं है “
2002 में इसी मान्यता के आधार पर भारत में बीटी कॉटन की खेती करने की छूट दी गई थी। जो की एक सफ़ेद झूठ था। या तो सरकार कृषि और कृषि उप उत्पादों को समझती नहीं थी या सरकार में वैठे वैज्ञानिक सलाहकारों की अपनी दूरदृष्टि की कम थी।
लेकिन कपास के बीज का तेल सदियों निकला जाता रहा है। व कपास के बीजो के तेल निकलने के बाद बची खल या कचरे को पशु आहार में काम लिया जाता रहा है। कपास के बीजो को “बिनौला” कहा जाता है। 2003 से ही बाजार में बीटी कॉटन का तेल और पशु आहार है।
जो की सीधे सीधे मानव उपयोग में लाया जा रहा है। बीटी कॉटन के तेल में बाजार के खुल्ले में स्नेक्स व नमकीन बना कर बेचीं जाती है। तथा फ़ूड इंडस्ट्री में भुजिया चिप्स में भी बीटी कॉटन के बिनौला तेल का इस्तेमाल होता है। यहाँ तक की खाद्य तेलों में भी बीटी कॉटन के बिनौला तेल की मिलावट की जाती है। और पशु आहार से पशुओं से मानव में डेयरी उत्पाद व मांस ,अंडे आदि से भी अप्रत्यक्ष रूप से ये बीटी जहर हमारे शरीर में आ चुका है।
बीटी का मतलब –
बीटी का मतलब जेनेटिक इंजीनियरिंग से एक भू जीवाणु बैसिलस थुरिंगिनेसिसन ( Bacillus Thuringiensis ) के जहरीले जींस से किसी भी फसल के जींस में तकनीकों द्वारा मिलान करवा कर नए किस्म के संकर बीज को कहते है।
बीटी जीवाणु के जहरीले जींस से फसले किट पतंगों के लिए जहरीली हो जाती है। लेकिन इसका मानव स्वास्थय पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसको लेकर अलग अलग प्रयोगशालाओं में प्रयोग हुये है। जिनके नतीजे समान नहीं थे। इस लिए बीटी संकर बीज आज भी विवादों में है। जिस कारण भारत में सिर्फ कपास को ही मंजूरी दी है। लेकिन अब सरकार बीटी या जीएम फसलों को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं कर रही है। जिससे भविष्य में भारतीयों में दुष्प्रभाव देखने को मिलेंगे।
बता दें कि फ़ूड सेफ्टी स्टैण्डर्ड अथॉरिटी जीएम फसलों की पूरी श्रृंख्ला पर एक ड्राफ्ट को अंतिम चरण में पहुँच चुकी है,जिसे कभी भी ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर की मंजूरी के बाद अध्यादेश का रूप दिया जा सकेगा।
याद रहे जीएम फसलों का जहर एक बार पर्यावरण में फ़ैल गया फिर इसको साफ कर पाना लगभग नामुमकिन है।
Kuldeep Singh Rajpurohit
8 September 2023 at 7:58 am
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