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दैनिक एकल भोजन पद्धति।
विरुद्ध आहार से बचने के लिए एक सरल तरीका है। दैनिक एकल भोजन पद्धति।
दैनिक एकल भोजन पद्धति।फ़ूडमेन द्वारा अपने संसाधनों द्वारा किया हुवा एक प्रयोग व अनुसंधान है। जिसमे विरुद्ध आहार से बचने और स्वस्थ रहने के आसान तरीको को बताया गया है।
हम लोग खाने में कुछ भी खा लेते है। बिना किसी जानकारी या ज्ञान के हम दिन भर खुश न कुछ खाते ही रहते है।खाने के मामले में हमारे पास ज्ञान तो बहुत है। लेकिन भूख और फैशन के चलते ध्यान रख पाना आसान नहीं है।
किस खाने के साथ या खाया जा सकता है और क्या नहीं खाना चाहिए इन सब पर ना तो हम ध्यान दे पाते है और न ही सिखाया जाता है। वही भागदौड़ की जीवनशैली में कही भी कुछ भी खा लेने की प्रवृति आज हमारी जीवनशैली बीमारियों की प्रमुख वजह है। खाने के सेकड़ो विकल्पों में सही संयोग याद रख पाना और व्यवहार में लाना बिलकुल भी व्यवहारिक नहीं हो सकता है।
लेकिन कुछ एक तरीको से इन सब से बचा जा सकता है।फ़ूडमेन द्वारा एक विशेष पद्धति को आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। जो आसान है। इस पद्धति को भोजन की दैनिक एकल भोजन पद्धति कहते है। यानी एक दिन में एक ही प्रकार का भोजन ग्रहण करना।
हम जीवन में भोजन के रूप में बहुत से भोजन व भोजन के विभिन्न प्रकारो को एक ही दिन में उपभोग करते है। जिससे हमारे शरीर की पाचन प्रणाली पर बहुत बुरा असर होता है।
किसी भी प्रदार्थ को पचाने के लिए शरीर की पाचन प्रणाली को जरुरी एंजाइम और प्रदार्थ के अनुरूप अम्ल का उत्पादन करना पड़ता है। यदि हम एक साथ कई तरह की खाद्य सामग्री जिनकी तासीर (PH ) अलग अलग हो व प्रकार भी भिन्न हो तो उसे पचा पाना आसान नहीं होता है यही कारण है की दावतों में कई व्यंजन और गरिष्ठ भोजन होने की वजह से अपच व अन्य पेट व पाचन सम्बन्धी गड़बड़िया होने लगती है।
कई बार हम सुबह और शाम के भोजन में भी एक दूसरे के विरुद्ध भोजन ग्रहण कर लेते है जिसके कारण भी पाचन के सूक्ष्म प्रकार चय अपचय में अंतर्युद्ध होने से फ़ूड एलर्जी या पॉइजनिंग भी हो जाती है।
दैनिक एकल भोजन पद्धति में एक दिन का भोजन दोनों समय एक सामान ही रहता है। उदाहरण -यदि सुबह के खाने में रोटी व आलू की सब्जी खाई है तो रात्रि भोजन में भी यही दोहराया जाना चाहिए। जिससे पाचन तंत्र आसानी उपलब्ध एन्ज़ाइम से ही भोजन पचा ले। किसी नए तत्व के लिए उसे और एन्ज़ाइम न बनाने पड़े। और विरुद्ध भोजन होने की समस्या से भी बचा जा सकता है।
फ़ूडमेन ने अपने अध्ययन में पाया की दुरस्त ग्रामीण व आदिवासी इलाको में रहने वाले लोग का दैनिक भोजन प्राय सामान रहता है। यानि की स्थानीय समस्याओ के चलते अनजाने में ही दैनिक एकल भोजन पद्धति का ये लोग अनुसरण करते पाए गए।
ये लोग स्थानीय उपलब्ध अनाज व सब्जियों पर निर्भर रहते है। तथा यातायात व अपनी विवशताओं के चलते इनका दैनिक भोजन सामान ही रहता है। उनमे मोटापा व अन्य जीवनशैली बीमारिया बहुत ही कम देखने को मिलती है।जैसे डाइबिटीज व ब्लड प्रेसर ,हृदय रोग व एलर्जी आदि।
दैनिक एकल भोजन पद्धति का अनुसरण भारतीय मूलनिवासी व ग्रामीण परिवेश में सामान्य रूप से पायी जाती है। इन लोगो में कई भारतीय वनवासी व आदिवासी कबीलो पर फ़ूडमेन की टीम द्वारा उपलब्ध शोध व अध्ययन किया गया। जिसमे कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। राजस्थान में बीकानेर में स्थानीय कबीला राइका जनजाती पर हुवे शोध का शोध किया गया। जिसमे पाया गया की ये लोग ऊंटनी का दूध दैनिक उपयोग में लाते है जिसके चलते इन कबीलो में मधुमेह जैसी बीमारी बिलकुल भी नहीं पायी जाती है।
इस शोध के आधार पर ऊंटनी का दूध मधुमेह के लिए उपयोगी बता कर बाजार में उतार दिया गया। लेकिन इसी कबीले की खान पान की आदतों में फ़ूडमेन ने अपने अध्ययन में पाया की ये राइका कबीले के लोगो का खाना अधिकतर बाजरे के रोटी और मरुस्थलीय सब्जियां प्रमुखता से थी और ये इनके दैनिक जीवन में रोज काम में ली जाती है।
जिसके चलते फ़ूडमेन ये दावे से कह सकता है की ऊंटनी का दूध एक मात्रा में इस कबीले की स्वास्थय के लिए एक बिन्दु हो सकता है। लेकिन इनके भोजन की समानता और भोजन में विभिन्नताओं का आभाव भी इनके स्वस्थ जीवन का आधार केंद्र बिंदु है। जिस पर ध्यान नहीं दिया गया।
फ़ूडमेन की टीम द्वारा किया यह शोध सिर्फ एक कबीले की व्याप्त मान्यताओं तक सिमित नहीं है। आप किसी भी क्षेत्रीय सीमा से सम्बंधित हो। आप अपने क्षेत्र में उत्पन्न अनाज और वनस्पति के उपभोग तक ही सिमित होते है। तो आप पर जीवनशैली बीमारियों का असर कम होगा। ये बात हम भारतीय भारत छोड़ने के बाद ही समझ पाते है।
इसलिए यदि आप भी वजन कम करना व मधुमेह व जीवन शैली संबंधी बीमारियों से पीड़ित है तो भोजन की दैनिक एकल भोजन पद्धति व अपने क्षेत्रीयता के अनुसार भोजन करके अपनी बीमारियों को दूर रख सकते है। दैनिक एकल भोजन पद्धति को अपना कर एक बार अनुभव जरूर करें।