क्या आप जानते हैं ?

क्या आप जानते है की एंटीन्यूट्रियंट क्या होते है। 

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क्या आपने कभी एंटीन्यूट्रियंट के बारे में सुना है। 

एंटीन्यूट्रिएंट यानी  की वह तत्व जो शरीर में किसी विशेष पोषक तत्व के अवशोषण को बाधित करे। या विशेष पोषक तत्वों के चयापचय (metabolism ) में उनको पचने में बाधा उत्पन्न करे। एंटीन्यूट्रियंट कहलाते है। 

सुनने में अजीब लग सकता है। लेकिन प्रकृती में एंटीन्यूट्रिएंट भरे पड़े है। पेड़ पौधो में एंटीन्यूट्रिएंट किसी कीट या कीटाणु से खुद को व फल फूल की सुरक्षा के लिए प्राकृतिक रूप से बनते है।ये एंटीन्यूट्रिएंट पौधो की किस्म और प्रजाति व पौधो के अलग अलग भाग जैसे फूल फल बीज आदि में अलग अलग तरह के हो सकते है। तथा मानव शरीर पर भी इनके प्रभाव अलग अलग हो सकते है।

लेकिन मूल रूप से यह पोषक तत्वों या विशिष्ट तत्वों को खुद से जोड़ कर उन तत्वों के अवशोषण को बाधित करते है। इन एंटीन्यूट्रिएंट तत्वों का उपयोग चिकित्सा क्षेत्र में सालो से हो रहा है। ये तत्व कोशिका के अंदर पाचन में सक्रिय भूमिका में पाचन को प्रभावित करते है।

हमारी शिक्षा प्रणाली में पोषक तत्वों को ही पढ़ाया जाता है।तथा उनके गुणों का ही गुणगान किया जाता है। यही वजह है की मात्र सघन चिकित्सीय शिक्षा में ही एंटीन्यूट्रियंट व एंटी विटामिन का जिक्र किया जाता है। यही वजह है की मिडिया या आम चर्चाओं में यह शून्य रहते है। और कोई भी पोषक तत्व विशेषज्ञ आपको इनके बारे में बता या समझा नहीं पाता और न ही साधारण चिकित्सक आपको बता पता है। और जो विशेषज्ञ चिकित्सक इसके जानकर होते है वो बताना नहीं चाहते है। 

आधुनिक विज्ञानं में एंटीन्यूट्रिएंट का उपयोग जहां चिकित्सा क्षेत्र में किये जाते है। अधिकतर एंटीबायोटिक अपने आप में एक तरह की एंटीन्यूट्रिएंट होती है जिनका लक्ष्य संक्रमण के बैक्टीरिया को किसी भी तरह के पोषणहीन करके मारना होता है। वैसे ही फ़ूड प्रोसेसिंग में भी इनका उपयोग बढ़ चढ़ कर किया जाता है। विशेष रूप से परिरक्षको ( प्रीजर्वेटिव ) के रूप में किया जाता है।

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ऐसे में हमें हमारी बीमारियों और पोषण में कमी को लेकर बहुत गंभीरता से सोचना हो होगा।प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एंटीन्यूट्रिएंट अधिकतर पकाने पर कम हो जाते है। लेकिन कृत्रिम एंटीन्यूट्रिएंट अधिकतर पकाये जाने के बाद या प्रोसेस में डाले जाते है।जिससे ये प्रभावशाली बने रहते है।एंटीन्यूट्रिएंट की एक लम्बी लिस्ट है जिसमे कई तरह के तत्वों का उपयोग चिकित्सीय व प्रोसेस फ़ूड इंडस्ट्री व जिम प्रोडक्ट में धड़ल्ले से हो रहा है।और जानकारी के अभाव हमें गंभीर रोगो तरफ धकेल दिया जा रहा है।
जैसे फाइटिक एसिड एक एंटीन्यूट्रियंट है जो  कई पोषक तत्वों को अवशोषित होने में बाधा उत्पन्न करता है जैसे  कैल्शियम ,मैग्नीशियम, लोहतत्वों (आयरन )तांबा व जस्ते (जिंक ) जैसे तत्वों को बाधित कर आंतो के पाचन में अवशोषण से रोकता है। जिसके फलस्वरूप इन तत्वों की शरीर में कमी हो जाती है।

आमतौर पर फाइटिक एसिड अनाज के छिलको ,सूखे मेवे ,और बीजो में होता है। लेकिन इनकी संख्या या मात्रा इतनी ज्यादा नहीं होती है।लेकिन प्रोसेस फ़ूड में इनकी मात्रा उत्पाद की सेल्फलाइफ की अधिकता पर निर्भर करती है।प्रोसेस फ़ूड में इसको E -391 के रूप में लिखा जाता है।


ऐसे ही ओक्सालिक एसिड  एक एंटीन्यूट्रियंट है जो  मुख्य रूप से कैल्शियम को बाधित करता है। तथा प्राकृतिक रूप से बीजो और अनाज में पाया जाता है। शरीर में अधिकांश रूप से बनने वाली पथरी ओक्सालिक एसिड के कारण केल्सियम के बंध जाने से बनती है जिसके कारण कैल्शियम ऑक्सलेट बनता है जिसे ही चिकित्सीय भाषा में पथरी कहते है।

ओक्सालिक एसिड को फ़ूड प्रोसेस फेक्ट्री के बर्तन व औजार साफ करने के काम में लिया जाता है। व कई स्थानों पर इसे कीटनाशक की तरह भी काम में लिया जाता है.मधुमक्खी पालन में इससे मधुमक्खी के छतो की सफाई में काम में लिया जाता है ,जिससे ऐसे छत्ते के शहद में इसकी मात्रा होना स्वभाविक रूप से मिलती है।
फ़ूडमेन इन्ही जानकारियों को सरल व आसान भाषा आप लोगो के सामने लाने की कोशिश में है।ताकि ज्यादा से ज्यादा आप एक अनदेखे षड्यंत्र से बच सके।

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