ब्लॉग
टेल्क विवाद
हमारे जीवन में दैनिक काम में आने वाली वस्तुओं के क्या क्या मिलाया जाता है। हर कोई पता करना चाहता है। लेकिन पता करने की नीयत खरीदने से पहले की होती है। खरीदने के बाद उपयोग में लेने की जल्दबाजी सिर्फ भारतीयों में ही नहीं अपितु वैश्विक रूप से सामान है। जिसकी वजह चमक धमक और वो भावनाएं होती है जो वास्तविकता से दूर लेकिन सपने साकार होने की कल्पनाओ से लिपटे विज्ञापनों से अवचेतन मस्तिष्क में बैठा दी जाती है।
टेल्क हमारी जरूरत की कई वस्तुओं में शामिल होता है। टेल्क को हाइड्रेटेड मैग्नीशियम सिलिकेट (Hydrated Magnesium Silicate ) कहते है। तथा इसका उपयोग खाद्य पदार्थों में स्नेहक या एंटी केकिंग एजेंट के रूप में E -553 -E-553a, E-553 b लिखा व दर्शाया जाता है।
हालही में जॉनसन एन्ड जॉनसन ने अपने बेबी पावडर से टेल्क को हटाने का ऐलान किया है। जिसकी वजह टेल्क से होने वाले डिम्ब( अंडाशय ) व फेफड़ो के कैंसर है। जॉनसन एंड जॉनसन कम्पनी के मामले में कैंसर पीड़ितों के पक्ष में कोर्ट के आदेश व पीड़ितों को क्षतिपूर्ति की राशी थी। लेकिन बात यहाँ पर खत्म नहीं होती है।
हालाँकि जॉनसन एन्ड जॉनसन कम्पनी ने बहुत कोशिश की थी की टेल्क को सुरक्षित साबित किया जाये। इसके लिए जेएनजे कंपनी ने वैज्ञानिकों की एक कमेटी का भी गठन किया। जिसने ये साबित किया की टेल्क में कैंसर कारक तत्व एस्बेस्टस जेएनजे कंपनी के टेल्क में नहीं है। लेकिन यह दलील और वैज्ञानिक शोध कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया। देखा जाये तो टेल्क ना सिर्फ कॉस्मेटिक में बल्कि निजी स्वछता के प्रसाधन व खाद्य प्रदार्थो में दशकों से उपयोग में लिए जा रहे है। यहाँ तक की प्रोसेस नमक में भी इसका उपयोग हो रहा है। तर्क अनुसार सोचने की आवश्यकता है।
खुद अमेरिकी सरकार और FDA टेल्क को सुरक्षित मानते हुए इसे खाद्य अवयव और दवाओं में भराव के रूप में मान्यता देती है। FDA का अनुसरण करते हुवे भारत में भी खाद्य एवं सुरक्षा प्राधिकरण (FSSAI) भी इसे सुरक्षित मानते है। तो फिर जेएनजे कंपनी को अपने उत्पाद से टेल्क हटाने की नौबत ही क्यों आयी ? और जेएनजे ने टेल्क कैंसर के खतरे को देखते हुए हटाया है तो बाकी की कंपनी टेल्क को क्यों नहीं हटा रही ? आज भी शिशुओं पर लगाये जाने वाले कई ब्राण्डेड पावडर में टेल्क ही है। और यहाँ तक की कई प्रोसेस फ़ूड में भी टेल्क का उपयोग किया जा रहा है। जिस चीज को लगाने मात्र से कैंसर जैसे गंभीर रोग उत्पन्न होते है वो खाने में कैसे उपयोग में लाये जा सकते है। या जो खाने में सुरक्षित है वो लगाने में कैसे खतरनाक हो सकते है।
दरअसल में विज्ञान का गढ़ कहे जाने वाले पश्चिमी देशो का विज्ञान कई बार अपने ही तर्क और तर्कशास्त्र की गिरफ्त में आ जाता है। ऐसे में बली का बकरा किसी व्यक्ति या कम्पनी को बना कर पश्चिमी विज्ञान पर हो रही शंकाओ को मोड़ने का प्रयास किया जाता रहा है।
और यह दशकों से किया जा रहा है। विशेषकर दवा उद्योग व प्रोसेस खाद्य उद्योग में जहाँ किसी तत्व के उपयोग में लिए जाने से होने वाले फायदे लम्बे समय के उपयोग के बाद के दुष्प्रभाव प्रकट हुए है। लेकिन ऐसी यादों को मीडिया और आम लोगों की चर्चाओं से गायब कर दिया जाता है। टेल्क विवाद इसका जीता जागता उदाहरण है। वैश्विक स्तर पर जूठी विद्या या कहे की अपने मतलब निकलने के लिए किये गए फर्जी अध्ययन दिखा कर और सिद्ध कर कई देशों की सरकारों को मुर्ख बना कर दवा खाद्य अवयव तत्वों को मंजूर करवा कर पश्चिमी देशों की कंपनियों ने अपने उत्पाद की मार्केटिंग भारत जैसे विकासशील और गरीब देशों से धन बटोरने की साजिशें करते आये है। फ़ूडमेन इन्ही षडयंत्रो को उजागर करने में कार्यरत है।