सम्पादकीय

धीमी आंच या नियंत्रित तापमान पर पका भोजन -सॉस विड (Sous vide )

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पके हुवे भोजन को परिभाषित करती फ़ूडमेन की नई शृंखला -भाग 2 

जिस तरह रोटी का फूलना उसके पकने की निशानी मानी जाती है। जबकि ऐसा है नहीं। ठीक वैसे ही सब्जी दाल चावल आदि के साथ भी हमारे पूर्वाग्रह चिपक गए है। आज जहां हम खुद को स्वस्थ रखने के लिए खाने में कई प्रयोग कर रहे है। वही खाना बनाने या पकाने की मात्र एक या दो ही विधि बची है। हम में से अधिकतर गैस चूल्हे पर और कुछ मात्र ही ओवन तक सिमित है। लेकिन ऐसा नहीं है की हमने सिर्फ सीधे आग पर ही खाना पकाना सीखा है।

राजस्थान में दाल बाटी की परम्परागत बाटी गोबर कंडो  व लकड़ी के अंगारो के बीच की राख में पकाये जाते है। जो की धीमी आंच या तापमान पर धीरे धीरे पकाया जाता है। वही कई राजस्थानी परम्परागत भोजन रात को या दिन में अंगारो को जमीन में गाड़ कर 12 घंटे तक धीमे तापमान पर पकाये जाते है।

गुजरात में भी परम्परागत “उंधियू”  को मिटटी की मटकी में अंगारो के साथ गाड़ दिए जाते है और करीब 10 से 12 घंटे तक धीमे तापमान पर पकाया जाता है। ऐसे ही दक्षिण में इडली बनाने का पारम्परिक तरीके में मिटटी के घड़े या मटकी में पानी डाल कर धीमी आंच में ही इडली पकाई जाती है।

ऐसा नहीं है की यह तकनीकी सिर्फ भारत में ही इस्तेमाल होती है। पश्चिमी देशो ने भी भारतीय पाक कला से प्रभावित हो कर इसके प्रभावों का अध्ययन कर आज कई प्रोसेस फ़ूड में औधोगिक रूप से धीमे तापमान पर भोजन पकाया जाता है। इस तकनीक का पश्चिमी देशो में सॉस विड (Sous vide ) के नाम से जाना जाता है। दरअसल में औधोगिक रूप से सॉस पकाने में इसका उपयोग हुवा करता था। जब फ़ूड डाई के बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं था और तेज आंच पर सॉस का रंग भूरा हो जाता था सॉस विड तकनीक यानि धीमी और नियंत्रित तापमान पर सॉस पकाने पर सॉस का रंग लाल ही रहता है।

यही तकनीक प्रेशर कुकर के आविष्कार की प्रेरणा रही है। आज भी भारत के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में मटकी के ऊपर ढक्कन को आटे या मिटटी से चिपका कर एक तरह का प्रेशर कुकर ही बनाया जाता है। और इसका वर्णन हमारी कई पौराणिक सभ्यता और इतिहास में मिलती है। जबकि यूरोप और पश्चिमी देशो में इसका वर्णन 2 सदी पहले ही मिलता है। 

धीमी आंच में पकाने से भोजन के कई पोषक तत्व नष्ट होने से बच जाते है। और स्वाद भी नहीं बिगड़ता।कई सब्जिया धीमी आंच में पकाने से अपने छिलको से स्वतः ही अलग हो जाती है जैसे टमाटर और मिर्च। आमतौर पर आप ने भी यह महसूस किया होगा की टमाटर अपने छिलके के साथ ही पकी हुई सब्जी में रहता है। टमाटर और मिर्च के छिलके को  मनुष्य का पाचन तंत्र पचा नहीं पाता। वही धीमी आंच पर पकाया हुवा टमाटर से छिलके स्वतः ही अलग हो जाते है। क्रमशः   No schema found.

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