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तनाव का विज्ञान

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आज कल हर कोई तनाव में रहता है। जिसका कारण हम दिखायी देने वाले विषयवस्तु में दुसरो के तनाव के कारण  ढूढ़ने  और  विश्लेषण करने की कोशिश करते रहते है। जब की खुद को तनाव मुक्त मानते हुवे तनाव  भी स्वीकारते है। वैसे तो कोई तुरंत मानने को ही तैयार नहीं कि वो तनाव में है।

लेकिन यकीन मानिये आपका चिकित्सक आपके लक्ष्णों के अनुसार आपके दर्द की दवाओं के साथ साथ तनाव में काम में आने वाली दवा भी लिख ही देता है। आज के पढ़े लिखे दौर में तनाव और फोबिया को ढूंढ ढूंढ कर नामांकित किया जा रहा है। लेकिन शरीर में तनाव होने का प्राकृतिक कारणों पर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है। फ़ूडमेन अपने अनुभवों के अनुसार कहना चाहता है।की मानसिक तनाव से पहले खानपान से होने वाले पाचन तंत्र के तनाव से ही बाकी तनावों की शुरुवात हो जाती है।

पहले के दौर में गांव के लोगो और छोटे बच्चों को तनाव मुक्त समझा जाता था।लेकिन आज के दौर में सूचना प्रौद्योगिकी व  ग्लोबलाइजेशन और पहुंच के आसान होने के साथ ही बच्चों को ही लक्षित किया जा रहा है। विशेषकर गाँवो के बच्चो को। इसमें आप किसी भी तरह की शक्ति का हाथ होना कह सकते है। लेकिन बच्चे ही खाद्य पदार्थों में नये अनुभव की तलाश में रहते है।

आज का कथा कथित ग्लोबल बाजार बच्चो को ललचाने के लिए कृत्रिम रंग व स्वाद से बच्चो के शरीर में प्राथमिक तनाव बचपन में ही देना शुरू कर चुके है। यहाँ तक की बेबी फ़ूड भी जो बच्चो के लिए सुरक्षित माने जाते है।लेकिन कुछ अध्ययनो से ये भी पता चला है की बेबी फ़ूड में मिलाये जाने वाले परिरक्षक 95% तक शरीर से बाहर निकल जाते है। लेकिन शेष 5% शरीर में ही रह जाते है।जो बच्चो में कुपोषण तनाव व एलर्जी की शुरुवात कर सकते है।

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प्रोसेस फ़ूड में मिलाये जाने वाले कृत्रिम खाद्य अवयव शारीरिक क्षमता व क्षेत्रीयता के अनुसार अलग अलग तरह से तनाव पैदा करते है। जो जानते हुवे भी लोग अपने स्वभाव व व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं लाना चाहते है।

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