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सावधानी और एहतियात के बीच की लक्ष्मण रेखा
विज्ञान और तकनीक के अपने फायदे है तो अपने नुकसान भी होते है। इन्ही सूक्ष्म ,प्रत्यक्ष , अप्रत्यक्ष ,लघु व दीर्घकालीन प्रभावो को रोकने या कम करने के लिए सरकार या सरकार द्वारा निर्धारित एजेंसियां सावधानी या एहतियात के रूप के कानून या प्रावधान करती है। इसे ही एहतियात या सावधानी का सिद्धांत कहते है। दुनिया भर में विशेष रूप से पश्चिमी विकसित देशों में एहतियाती सिद्धांत बहुत ही गंभीरता से लिया जाता है। भारत में भी एहतियाती सिद्धांत और उन पर बने कानून व संविधान बहुत सक्षम है। विडंबना ये है की इनका उपयोग शासन प्रशासन मात्र जनता से वसूली के लिए ही करता है। मसलन हेलमेट या सीट बेल्ट न होने पर जनता से जुर्माना वसूला जाता है। इसी तरह से हर तरह के व्यापार व अन्य क्षेत्र आदि में एहतियातन जरुरी सुरक्षा नाम पर वसूली ही की जाती है। लेकिन कोई ठोस कार्यवाही देखने को नहीं मिलती जब तक की कोई बड़ा हादसा न हो जाये। और हादसे के भी बाद कुछ दिनों की सख्ती के बाद पुनः वही व्यवस्था शुरू हो जाती है। क़ानूनी चाबुक हर समस्या का सैद्धांतिक उपाय नहीं हो सकता
खाद्य सुरक्षा के मामले में एहतियातन जरूरी सुरक्षा के पुख्ता कानून होने के बावजूद एहतियातन सुरक्षा नाम मात्र भी नहीं है।बिलकुल भी नहीं है। और जो है भी तो जन मानस की जानकारी से कोसो दूर है। यहाँ तक की खुद खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को भी कुछ खास जानकारी नहीं रहती है। मात्र कुछ विशेषज्ञ व खाद्य सुरक्षा के उच्च अधिकारियों को ही पता रहता है की कौन कौन सी एहतियातन सुरक्षा होनी चाहिए और क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिए। कौन से खाद्य पदार्थ में क्या और कितना मिलाना सुरक्षित है और कितनी मात्रा एहतियातन सुरक्षा के अनुसार मिलनी चाहिए। किस प्रदार्थ को कोनसे प्रदार्थ के साथ नहीं मिलाना चाहिए। इनसब को लेकर कानून तो है लेकिन कोई स्पष्ट दिशा निर्देश किसी के पास नहीं है। जिसका फायदा बहुराष्ट्रीय कम्पनी और कई खाद्य निर्माता उठाते है और जिसका नुख्सान जनता को उठाना पड़ता है।
वैश्विक रूप से भोजन के तत्वों और अवयव को लेकर सर्वप्रथम अमेरिका में एहतियातन जरूरी सुरक्षा को लेकर प्रस्ताव लाया गया था। जिसे डेलाने क्लॉज के नाम से जाना जाता है। जिसके अंतर्गत प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले कीटनाशकों जो कैंसर कारक हो सकते हो उनकी की एहतियाती मात्रा को लेकर प्रावधान बनाए गए थे। डेलाने क्लॉज 1959 में लागु किया गया था।लेकिन बाद में इसको भी लचर कर दिया गया था। जिसका प्रमुख कारण बहुराष्ट्रीय कम्पनीयो के खाद्य उत्पाद की सेल्फ लाइफ को बढ़ाने वाले तत्वों का उपयोग था। जिनमे कई खतरनाक रसायन तथा कृषि उत्पादों में कीटनाशकों के प्रयोग से कृषि उपजो में उपजे जहर भी है। जो मानव जीवन पर विरोधाभासी प्रभाव डालते है। लेकिन तब तक ही सुरक्षित है जब तक उनकी एहतियाती सीमा में हो।
भारत की बात करे तो भारतीय शिक्षा में ही सिर्फ भोजन और भोजन से मिलने वाले लाभ और व्यापर की ही शिक्षा दी जाती रही है। भोजन अवयव व उनके प्रयोग व निषेधता पर शिक्षा के किसी भी स्तर पर कोई शिक्षा का प्रावधान नहीं है। फ़ूडमेन अपने प्रयासों से खाद्य व भोजन ग्रहण व खाद्य अवयवों की शिक्षा व्यवस्था बनाने को अग्रसर है।