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रोजमर्रा दुकानदार से आपातकालीन जरूरत की दुकान में बदलता असंगठित बाजार
अपनी ही लालच और लापरवाही की भेट चढ़ता असंगठित बाजार
हालही में सरकार द्वारा आटा ,दूध ,दही आदी को जीएसटी के अंतर्गत कर दिया गया है। हाल फ़िलहाल में इसे ऐसा समझाया जा रहा है जिसका कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसे ही खाद्य व्यापार में दूध ,आटा ,तेल को फोर्टिफाइड ( अतिरिक्त पोषक तत्व मिलाना ) करने की खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण विभाग की अनिवार्यता करने का भी प्रावधान है ,जिसकी समय सीमा फ़िलहाल पार हो चुकी है।
सरकार द्वारा असंगठित बाजार व उद्योगों को नियमित करने की योजनाएं और प्राधिकरण के प्रति असंगठित बाजार के व्यापारियों का रुख सदैव ही उद्दासीन ही रहा है। जिसके चलते मुख्य बाजार धारा में सालो से माफिया पनप रहे है। जिससे राजस्व के अरबों रुपयों का नुकसान सरकार अब तक उठती आई है। खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ( FSSAI ) के फोस्टक योजना के अंतर्गत रेहड़ी से लेकर फैक्ट्री में काम करने वाले अशिक्षित व अकुशल खाद्य मजदूरों को निशुल्क ट्रेनिंग करवाने की योजना चलाई गई लेकिन असंगठित बाजार के व्यापारियों ने इसे मात्र खाना पूर्ति में ही लिया। ठीक इसी तरह छूटकर दुकानों और मोहल्ले की दुकानों का भी पंजीयन की भी योजना धराशाही हो गई।
सरकार द्वारा असंगठित क्षेत्र के लिए प्रधानमंत्री कौशल योजना और मुद्रा योजना का कोई फायदा देश की जनता और सरकार किसी को भी नहीं मिल सका है। जिसका प्रमुख कारण विभागों का भ्रष्टाचार और जनता का दूरदृष्टि का कमजोर होना है। जिसका फायदा अब पूंजीपति वर्ग उठाने जा रहा है।
हालिया घटना क्रम देखे तो सब अलग अलग ही दिखाई देंगे। लेकिन वृहद रूप से देखा जाये और सब को जोड़ा जाये तो असंगठित क्षेत्र पूर्ण रूप से हाशिये पर ही दिखाई देगा। सिंगल यूज प्लास्टिक प्रतिबन्ध किस क्षेत्र के व्यापार से जुड़ा है। और वही पैक दूध दही आटा अब 5% जीएसटी के अधीन है। वही दूसरी तरफ FSSAI द्वारा खुले में बिकने वाले कई दैनिक उत्पादों पर भी पैकिंग और फोर्टिफिकेशन का प्रस्ताव लंबित है जो कभी भी प्रभावी हो सकता है। जिसके चलते आने वाले कुछ वर्षों में शहरो की मोहल्ला दुकानों का अस्तित्व धुंधला हो सकता है।
दवा दुकानों के व्यापार का उद्दाहरण देख सकते है। देशभर के विरोध के बाद भी ऑनलाइन दवाओं की बिक्री को कोर्ट ने ही मंजूरी देदी जिसके चलते आज 30 प्रतिशत से भी अधिक का दवा बाजार आज ऑनलाइन बाजार के हाथ में चला गया और जल्दी ही रिटेल में बड़ी कम्पनी छोटे दुकानदारों को मात्र आपातकालीन दुकानदार बना देंगी इसी तरह मोहल्ला और छोटे बाजार मंडिया दुरी और आपत्कालीन दुकानों में परिवर्तित हो जाएँगी। तथा पश्चिमी देशो की तरह विकास का बाजार तो बहुत बड़ा होगा लेकिन जनसंख्या के अनुसार बेरोजगारी भी विकास के चरम पर होगी।
इससे बचा जा सकता है। जिसका सीधा सा एक ही रास्ता है कि अपनी दुकान का सरकरी द्वारा स्थापित प्रावधानों में पंजीयन करवाये तथा माल की खरीद और बिक्री सरकार द्वारा स्थापित कर (टेक्स )प्रावधानों के अनुसार ही करे। बड़ा व्यापरी हो या छोटा सरकार को देश में प्रशासन और व्यवस्था के लिए जो धन चाहिए वो टेक्स से ही मिलता है। इसीलिए जो टैक्स देगा, सरकार उसी के भरण पोषण की चिंता करेगी।