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रक्षाबंधन का त्यौहार और चॉकलेट की टक्कर में देशी सोन पपड़ी 

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राखी का त्यौहार सनातन सांस्कृतिक त्यौहार है जिसमें मिठाई खाई और खिलाई जाती है। मिठाई भी हमारी सांस्कृतिक पहचान है।
किन्तु क्या करें इन मिलावटखोरों का,
 मिल्क माफिया  ने तो जैसे कसम खा रखी है कि उसे तो दो सौ  रुपये किलो मिठाई के लिए खोआ गांव से शहर सप्लाई करना है।
फ़ूड सेफ्टी ऑफिसरों ने टीम टीम बना बना कर भी खूब छपे डाल के देख लिए , चार दिन के छापे डाल कर महकमा फिर वही अपने पुराने राग में सुस्त।
अब इन सबके बीच कैडबरी, मोंडेलेज, मार्स, पेप्सी, कोक और स्विग्गी जोमाटो पिज़्ज़ा ने गुणी लोंगो को मैनेजमेंट स्कूल से उठा कर अपने ही देश की जनता के दिमाग में ये बात घुसेड़ दी है कि चॉकलेट से बेहतर कुछ नहीं।
 बाजार के सड़े  गले फलों की जगह शीतल पेय से जैसे तुम जन्म दिन सेलिब्रेट करते हो, वैसे ही सारी  फॅमिली के लिए कॉम्बो पिज़्ज़ा पैक क्यों नहीं माँगा लेते जोमाटो से , बहन जो आयी है टीका करने।
किन्तु बड़ी कंपनी के बड़े बड़े पैक और गिफ्ट हैंपर में चॉकलेट के नग छोटे और मुंह मीठा करने के लायक ही होते हैं। हम अपनी मिठाई की विविधता को एक तरफ रख कर ब्रांडेड कंपनी से त्यौहार बना कर आधुनिक तो हो ही रहे हैं। 
हमारे यंहा के हलवाई को ग्राहक का बजट पता होता है और वो हर साल महगाई को देखते हुए  उतना ही माल बनता है जो त्यौहार की समाप्ति तक खप  जाता है।
हल्दीराम , बीकाजी और देशी ब्रांड ने जिस तरह से इन त्योहारों पर अपनी सोन पपड़ी खपायी है शायद ही कोई विदेशी कंपनी ये  कर सकी हो।  फ़ूडमेन ने ऐसे हज़ारों ठेले बाज़ारों में देखे हैं जिस पर देशी कंपनी की सोन पपड़ी थोक में बिक रही है।  स्टॉकिस्टों पर दो महीने से पहले इसकी एडवांस बुकिंग रहती है।
अब महंगाई के आलम की तो बात ये है  कि जो लोग पहले अपने आप को मिडिल क्लास का कहते थे वो अब कोई कह रहा था की वो लोअर मिडिल क्लास में पहुँच गया है।

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