कंज्यूमर कार्नर

रचनात्मक विज्ञापन के नाम रक्तचरित्र मानसिकता का प्रदर्शन  

Published

on

विज्ञापनों से कैसे हमें मानसिक गुलाम और हमारी सूझबूझ और विवेक को चुनौती दी जा रही है। हालिया सोशल मीडिया पर हिंदुस्तान यूनिलीवर के उत्पाद  (Vim ) डिशवॉश लिक्विड के विज्ञापन में यही मानसिकता  दिखायी दी  है।  जिसमे वीम (Vim ) डिशवॉश लिक्विड ब्लैक यानी की बरतन धोने के लिए पुरुषो का अलग से डिश वाश लिक्विड। विज्ञापन की माने तो बर्तन धोने के तरल पदार्थ में भी लिंग भेदी भावना का प्रदर्शन एक बार फिर से किया गया है। जैसा की परफ्यूम क्रीम और निजी प्रसाधन  की वस्तुओं के विज्ञापन से  कई दशकों से समाज के दिमाग में लिंग भेदी भावना हमेशा से परोसी जा रही थी। उसी का एक और भद्दा स्वरूप हमें विम  (Vim )के  इस विज्ञापन में देखने को मिल रहा   है।

 हालांकि इसमें सकारात्मकता पैदा करने की कोशिश की गई थी। लेकिन ”महिलाओं का और पुरुषो का” का करके विज्ञापन विवादों में आ गया। विज्ञापन में वीम ब्लेक को पुरुषों का डिश वाश बता कर विज्ञापन किया गया है। जिसमे मात्र बोतल के रंग  काला करके काले रंग को पुरुषो से जोड़ कर दिखाया गया है। जैसा की दशकों  से कथा कथित पुरुष लग्जरी निजी प्रसाधन की पैकिंग और उत्पादों को काले रंग से जोड़ कर तथा  महिलाओ के साथ गुलाबी रंग में ऐसा किया जा रहा है।पुरुषो की दाढ़ी करने का उस्तरा काले रंग में 50 रु का और वही उस्तरा गुलाबी रंग और एक अलग से स्त्रीवादी शब्दों और विज्ञापन से 100 रु में बेचा जाता रहा है। ठीक ऐसे ही मर्दाना साबुन स्प्रे और इनरवेयर के साथ काला रंग और महिलाओं के उत्पाद के साथ गुलाबी रंग हमारी मानसिकता में ठोक ठोक कर भर दिया गया है।
जिससे आज भी हमारी मानसिकता नहीं हट सकती और काले गुलाबी के चक्कर में जेबे लूटी जा रही है। लड़कियों वाली क्रीम और लड़को वाला परफ्यूम जैसा कुछ नहीं है। लेकिन मार्केटिंग में भाव तभी मिलते है जब आप समाज के किसी एक वर्ग को विशेष बता कर अपना उत्पाद उसकी मानसिकता पर थोप सकते है।  इसी विकृत मानसिकता को रचनात्मकता बोल कर पुरुष महिला में भेद बता कर आप इनके रक्त चरित्र को समझ सकते है। और वीम ब्लैक के विज्ञापन से हालिया उदाहरण के रूप में ले कर देख सकते है।
हालांकि हिंदुस्तान यूनिलीवर कम्पनी ने इस विज्ञापन से सोशल मीडिया में किरकिरी होने के बाद अपने विज्ञापन से कदम पीछे खींच लिए है।  और इसे मात्र एक मजाक कह कर पिंड छुड़ाने की कोशिश की है। शहरी जीवन में विशेष कर लॉकडाउन के दौरान और बाद में भी पुरुषो का घरेलु काम काज में हाथ बताने प्रतिशत बढ़ा है। जो की समाज के दोनों वर्ग महिला और पुरुष के रिश्तो को लेकर एक अच्छा बदलाव है।  लेकिन अपने उत्पाद को बेचने और ग्राहक को आकर्षित करने के लिए कंपनियां विज्ञापन में रचनात्मकता के नाम पर लिंगभेदी सोच को प्रदर्शित करती भी है। और किरकिरी के बाद मजाक मजाक बोल कर समाज का मजाक बना दे रही है। वीम ब्लेक बाजार में बिक्री के लिए उतरा भी गया या नहीं ये भी एक सोचने का बिंदु है। क्योकि किसी भी ऑनलाइन वेबसाइट पर यह आउट ऑफ़ स्टॉक है।  और अगर कम्पनी ने ये उत्पाद बनाया ही नहीं या बहुत ही सिमित मात्रा में बना कर विज्ञापित किया है। तो ये मिथ्या विज्ञापन के धाराओं में आएगा। और कम्पनी पर उपभोक्ता केस दायर कर सकते है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Trending

Exit mobile version