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जनविश्वास “घात “बिल 

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छोटे व्यापारियों और स्टार्टअप के लिए चुनौती

हालही में केंद्र सरकार द्वारा मणिपुर के भारी बवाल के बावजूद जनविश्वास बिल संसद की लोकसभा से पारित किया गया है। तथा अब इसे राज्यसभा से पारित होते है राष्ट्रपति को भेज दिया जायेगा। इस बिल में   संयुक्त संसदीय कमेटी  ने जन विश्वास बिल के जरिए 19 मंत्रालयों से जुड़े करीब 42 अधिनियमों के 183 प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव दिया था. तथा इन प्रावधानों में सजा के प्रावधान को हटा कर जुर्माने का प्रावधान रखा गया है।

इसमें सार्वजनिक ऋण अधिनियम 1944, फार्मेसी अधिनियम 1948, सिनेमैटोग्राफ अधिनियम 1952, कॉपीराइट अधिनियम 1957, ट्रेडमार्क अधिनियम 1999, रेलवे अधिनियम 1989, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000, औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940, मोटर वाहन अधिनियम 1988, खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006, मनी लांड्रिंग निरोधक अधिनियम 2002, पेटेंट अधिनियम 1970, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986, मोटर वाहन अधिनियम 1988 समेत 42 अधिनियम शामिल हैं। जिनमे पहले सजा के साथ साथ जुर्माने का भी प्रावधान था।

 आश्चर्यजनक रूप से विपक्ष ने इस बिल को लेकर कोई खास आपत्ति नहीं जताई है। भारत में व्यापार को आसान बनाने के लिए इस बिल को महत्वपूर्ण बताया गया है। और यह बिल बड़े व्यापारियों के लिए ही लाया गया है। ऐसा कहा जा सकता है। हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण 

 खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006,औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940,पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986, में सजा के प्रावधानों को हटा कर जुर्माना को बढ़ाया जाना है। 

खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006

इस अधिनियम में खाद्य सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय फूड सेफ्टी कमिशन गठित किया गया है, जो नागरिकों के खाद्य सुरक्षा से संबंधित मुद्दों के निरीक्षण और समाधान के लिए जिम्मेदार है। इस अधिनियम के तहत राज्य सरकारों को भी खाद्य सुरक्षा के लिए नियम और नियमावली बनाने का अधिकार है ताकि वे खाद्य सुरक्षा के लिए उचित व्यवस्था कर सकें।इन कानूनों को लेकर यूट्यूब चैनल नॉकिंग न्यूज़ के एंकर ग्रीजेश वशिष्ठ ने बहुत ही आसान भाषा में अपने विडिओ में समझाया है।https://youtu.be/5fF8CfPvXvw

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इस अधिनियम में पूर्व में भी कई बार संशोधन करते हुए कई तरह के खाद्य अपराधों के लिए सजा कम या हटाई जा चुकी है। जनविश्वास बिल आने के बाद अब खाद्य क्षेत्र में मिलावट ,गलत प्रचार ,नकली ,एक्सपायर माल बेचने पर सजा के प्रावधान को हटा कर 10 लाख के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। ना सिर्फ खाद्य कानूनों में बल्कि इसी तरह दवा व कॉस्मेटिक क्षेत्र व पर्यावरण संरक्षण कानूनों में भी सजा का प्रावधान हटा कर जुर्माने का ही प्रावधान रखा गया है।

एक उदाहरण से खाद्य कानूनों में जुर्माने का महत्व समझते है। एक छोटा दूध व्यापारी आसपास के इलाको से दूध इकठ्ठा कर कर के बेचता है। अगर किसी दूध उत्पादक या किसान ने उसको नकली या निर्धारित मापदंडो के अनुसार निम्न स्तर का दे दिया और वो व्यापारी किसी तरह या जानबूझ कर या किसी निजी दुश्मनी के चलते पकड़ा गया तो उसे सजा नहीं होगी लेकिन उसको 10 लाख का जुर्माना भरना पड़ेगा। यानि की उस छोटे दूध व्यापारी को अपना सब कुछ बेच कर जुर्माना भरना पड़ेगा। लेकिन उसी क्षेत्र के किसानो और पशुपालको से दूध ले कर पैकेज्ड दूध बेचने वाली कम्पनी को 10 लाख ज्यादा नहीं लगेंगे। क्योकि सजा का प्रावधान ख़त्म हो गया होगा। और भारत में सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार किस तरह से व्याप्त है। हर कोई जनता है। लेकिन अब उसी इलाके में छोटे दूध व्यापारी धीरे धीरे खत्म हो जायेंगे और कॉर्पोरेट कम्पनी अपना दबदबा बना लेगी। पशुपालको का दमन कर सस्ते दामों पर दूध लेगी और महंगे दामों पर आम आदमी को बेच कर उनका भी शोषण करेगी। फायदा कॉर्पोरेट कम्पनी को ही होगा। ऐसे ही मसाले ,छोटे दुकानदार ,व व्यापारी धीरे धीरे ख़त्म हो जायेंगे और छोटी दुकानों की जगह मॉल या सुपरमार्केट ही अस्तित्व में रहेंगे।

सरकार की मंशा और नियत दोनों पर ही कोई सवाल नहीं है। लेकिन इस बिल के आ जाने के बाद बाजार पूंजीपतियों के हाथ में आ जायेगा ,जो किसी भी तरह से अर्थव्यवस्था और आम नागरिको के हित में नहीं है। अब तक उपभोक्ता हितो में उपभोक्ता अदालते पीड़ित के लिए क्षतिपूर्ति प्रावधान में मुआवजा दिलवाती थी। और कम्पनी को देना भी पड़ता था क्यों की सजा का प्रावधान था। लेकिन इस बिल के बाद कम्पनी सरकार को जुर्माना दे कर पल्ला झाड़ सकती है। और पीड़ित पीड़ित ही रहेगा। उसे कोई मुआवजा मिलेगा या नहीं अभी तक स्पष्ट नहीं है।

अब तक जो कॉर्पोरेट कम्पनी सजा के डर से कानूनों के उलंघनो से बचते आ रहे थे। जुर्माने जैसे प्रावधान अब उनके होंसलो में और बढ़ा देंगे। बड़े व्यापारी हर राजनैतिक पार्टी में है। इसीलिए अभी तक किसीने भी विरोध नहीं किया है। और न ही मिडिया इसके दुगामी नतीजों पर बहस कर रहा है। ऐसे में खुद से ही संभल कर रहने की हिदायत छोटे व्यापारियों को दी जा सकती है। कॉर्पोरेट रिटेल सेक्टर के सबसे बड़े राह के रोड़े रहे छोटे दुकानदार ,मिठाई वाले ,मसाले आटा पीसने वाले ,खाने पीने की रेहड़ी और ढाबे वाले जल्दी ही इस कानून की गिरफ्त में होंगे।फ़िलहाल अंदाजा ही लगाया जा सकता है। या कानूनों में और संशोधन व सुधार की आशा की जा सकती है।

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