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शाकाहार के नाम पर “सोयाबीन कचरे” का प्रोपेगेंडा

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दुनिया भर में समय समय पर आम आदमी की विचार धाराओं के साथ प्रयोग और छेड़छाड़ होती रहती है। ये भी एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।आज कल इंटरनेट सोशल मिडिया और मुख्यधारा मिडिया में कथाकथित “वैगनिजम ” यानी  की शाकाहार को अपनाना और इसको एक समुदाय के रूप में विकसित करने का प्रोपोगेंडा चलाया जा रहा है।  जिसमे आप को पशुओं के मांस और दूध ,शहद आदि पशु आधारित खान पान को बदल कर  वनस्पती आधारित होना बताया और सिखाया जाता है।सुनने में अच्छा लग सकता है।

दुनिया भर के विकासशील देशों में बाकायदा मुहिम चलाई जा रही है। गाय के साथ  दूध के लिए हो रहे अत्याचार पर आंसू छलका कर  सोया दूध ,सोया पनीर की मार्केटिंग मानवीय आधारों पर की जा रही है। एक  नया शिगूफा वनस्पतीय मांस भी बाजार में आ गया है। लेकिन विश्व की सबसे ज्यादा शाकाहारी देश भारत में अभी तक मुख्य मीडिया में  इसके विज्ञापन जारी नहीं हुये  है।.लेकिन सोशल मीडिया और मुख्यधारा  मीडिया चैनलों और अखबारों में इसे बनाने और खाने के फायदों को लेकर कथा कथित विशेषज्ञ आप के  सामने हाजिर हो जाते है।

इसकी  बहुत ही गहराई में जाये तो आपको बहुराष्ट्रीय कंपनियों के  दिमाग की सारी साजिश समझ में आ जाएगी।भारत में दुनिया की  सबसे ज्यादा शाकाहारी जनता रहती है। और इस  जनसंख्या का 50 प्रतिशत ऐसे लोग है जो मांस खाते है और अनाज  दोनों खाते है। लेकिन गरीब है। इन्ही गरीबो  के लिए सोयाबीन बड़ी को  गरीबो  के लिए मांस  को लेकर भारत में खूब प्रसारित किया गया।  लेकिन आज तक कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी।

विश्व का 60 % से भी अधिक सोयाबीन अमेरिका में उत्पादित होता है। जिसका 85 %का उपयोग तेल के लिए किया जाता है। तेल के इसी व्यापार में और  कमाने के लिए तेल निकलने के बाद बची खल या कचरे से ही सोया बड़ी बनती है। जो पहले अमेरिका के  पशु आहार में खपाया जाता था। अब उसी सोयाबीन तेल के बचे शेष भाग को अब  वनस्पति मांस या वेगन मीट के तौर पर  प्रसारित किया जा रहा है। इसके  सोया बड़ी की मार्केटिंग वाली रणनीती न ला कर  जान मानस में मानवता वादी प्रोपोगेंडा फैलाया जा रहा है।

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भारत में धर्म और मानवता और धर्म में मानवता कूट कूट कर  भरी है। इसके लिए टीवी पर विज्ञापन  इस्तेमाल नहीं लिया जाता है। एक भारतीय मूल के विदेशी नागरिक (NRI ) को भारत के शहर में  किसी  पशु हित  सम्बन्धी एक संस्थान खोल कर  पशु क्रूरता के विरोध का आडम्बर रचा जाता है। शहर की कुछ बेसहारा गाय और कुत्तो को इन सस्थानो में ला कर  बहुत ही अच्छी खातिरदारी की जाती है और सोशल मिडिया पर इसके लिए अभियान चलाये जाते  कथाकथित पशु प्रेमियों के पशु को  अपने संस्थान  में लाने  और उसकी ख़िदमतो के वीडियो सोशल मिडिया पर खूब चलाये जाते है। फिर इन्ही पशुओ के दर्द के नाम पर आपको डेयरी और मांस उद्योग के काले सच बता कर आप से दूध और मांस खाने को छोड़ने के नाम पर ये आप को घर पर ही सोयाबीन या मुगफली से कैसे दूध बनाया जाये सिखाते है। और फिर मांस को कैसे गेहू  और सोयाबीन के आटे  से बनाया जाए सिखाते है।

हर कोई इस प्रकार के उत्पाद  बनाना नहीं चाहेगा तो बने बनाए के विकल्प भी ये ही कथा कथित  NRI पशु प्रेमी ही बताएँगे।  ताकि इस बार मांस के विकल्प में सस्ता शब्द न हो कर पशु प्रेम लगे।मांस उद्योग को इन सब से कोई खतरा नहीं उनके लिए तो ये और भी अच्छा है। क्योंकी जो लोग मांस से दूरी बना कर रखते है।  मांस खाना बहुतो के लिए  धार्मिक और मानसिक झिझक होती है, उनके लिए ये ठीक वैसे है जैसे शराबी  की शुरुआत बीयर से होता है।ठीक इसी तरह प्लांट बेस प्रोटीन पाउडर की भी मार्केटिंग की जा रही है। सोयाबीन को हर स्तर पर घुसेड़ा जा रहा है। दवाइयों विशेष कर फ़ूड सप्लीमेंट और आयुर्वेद आदी में सोया प्रोटीन का इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है।पश्चिम के देशो का अधिकतम प्रयास यही होता है की वो अपना कचरा विकासशील और गरीब देशो में मुनाफे के साथ खपा सके। अब चाहे  वो सोयाबीन के तेल निकलने के बाद का कचरा हो या मांस उद्योग का कचरा।

1 Comment

  1. Naresh Bhan

    22 July 2023 at 12:17 pm

    So by all this mention here:I have a small querry:Shoul soyaben chunks and Tofu made out of soyaben be taken as a protein intake??

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