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प्रीमिक्स फ़ूड -खाद्य उधोग का नया पैंतरा 

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प्रीमिक्स फ़ूड के नाम पर जीवन में घुलते खतरनाक रसायन 

प्रीमिक्स फ़ूड आज हमारे घरो की रसोई की सच्चाई है। यानि की खुद से मेहनत ना करके किसी भी निर्माता के बने बनाये प्रीमिक्स से अपनी भीख और लालसा को शांत करना अब फैशन बन चूका है।  नूडल्स और पास्ता के कई बहुराष्ट्रीय बड़े बड़े ब्रांड प्रीमिक्स फ़ूड की ही श्रेणी में आते है।

अब उन्ही तकनीकों का उपयोग करते हुवे कई भारतीय कम्पनी भी प्रीमिक्स फ़ूड के बाजार में कूद पड़ी है। हम लोग खाने को सिर्फ स्वाद और स्वाद के लिए ही खाते है। जिसका परिणाम हमारा पेट भर जाता है। लेकिन पोषण और भोजन के अवशोषण की समझ विकसित होते हुवे भी हम हमारे स्वाद  की समझ को काबू नहीं कर पाते 

हम भारतीय होटल रेस्टोरेंट में घर जैसा और घर पर रेस्टोरेंट और होटल जैसा स्वाद और खाना चाहते है। इसी चाह को भुनाने के लिए आप ने भी अक्सर होटल और रेस्टोरेंट के बोर्ड पर घर जैसा खाना होने के दावों के बोर्ड लगे देखे होंगे। और अख़बार टीवी और सोशल मिडिया पर ढाबा स्टाइल या होटल जैसा कोई व्यंजन बनाने की रेसिपी भी देखी होगी।

ठीक इसी चाह को भुनाने के लिए बाजार में अनेक भारतीय व्यंजनों के प्रीमिक्स फ़ूड या रेडी टू कुक उत्पादों की भरमार है। अब  घर में खाना बाजार जैसा न बने तो मजा भी नहीं आता। उपभोक्ता बदल रहा है तो बाजार भी नहीं बदले ये कैसे संभव हो सकता है।वास्तविकता में बाजार ही उपभोक्ता को ढाल रहा है। और विज्ञापन जैसे मजबूत मनोवैज्ञानिक प्रयोग उपभोक्ताओं पर हो रहे है। 

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  इससे पहले सिर्फ प्रीमिक्स फ़ूड के नाम पर मेग्गी ही थी जिसको पैकेट से खोलने के बाद पकाना पड़ता था। अब आपको प्रीमिक्स फ़ूड ,गुलाबजामुन ,दही बड़े ,आइसक्रीम , तथा और भी भारतीय व्यंजन जिनको बनाना आसान नहीं होता और जिनकी सामग्री को इकठ्ठा करना आसान नहीं होता उनके प्रीमिक्स फ़ूड  या रेडी टू कुक पेकिंग बाजार में बेचीं जा रही है। प्रीमिक्स फ़ूड  का बाजार एक उभरता पौधा है जिसको वृक्ष बनने से कोई नहीं रोक सकता।

ऐसे में ये प्रीमिक्स फ़ूड  जिनमे सिर्फ पानी और स्वाद अनुसार नमक मिर्च या चीनी मिलायी जाती है। उनमे बहुत ज्यादा मात्रा में खाद्य सरक्षक रसायन मिलाये जाते है।

खास तौर  पर मीठे खाद्य या मिठाई के प्रीमिक्स में  मिल्क सॉलिड या सूखे दूध के नाम पर कृत्रिम दूध पाउडर और प्रगाढ़ता के लिए माल्टोडेक्सट्रिन और कृत्रिम फ्लेवर डाले  जाते है। जो आपके बाजार जैसी मिठाई जैसा तो बिलकुल नहीं लेकिन घर पर  बाजार जैसा बनाने की चाह को जरूर पूरा करता है। कुछ लोग तो अपने को बेहतरीन रसोइया या हलवाई आज की भाषा में कहे तो “सैफ” या कुक  साबित करने के लिए भी इन खाद्य प्रीमिक्स फ़ूड  का उपयोग करते है।

इन प्रीमिक्स फ़ूड को विज्ञापित करने का तरीका भी अलग होता है ये किसी कुकिंग शो या कुकिंग चैनल से विज्ञापित होते है। जहाँ इन प्रीमिक्स फ़ूड  को काम में लेने के तरीके और विज्ञापन दोनों हो जाते है। इसी तरह स्वस्थ्य से भरपूर बताये जाने वाले सूप  प्रीमिक्स फ़ूड भी खाद्य  रसायनो का ही घोल होता है। जो स्वास्थ्य लाभ से ज्यादा नुकसान पहुंचता है।  बिना किसी कृत्रिम फ्लेवर और स्वाद के बिना ये आपको पसंद ही नहीं आएंगे।

ठीक ऐसे ही फुल्ले या पॉपकॉर्न पर भी नकली फ्लेवर की परत चढ़ा कर बेचा जाता है जिससे सांस  सम्बन्धी रोग व अस्थमा  होने  का खतरा रहता  है।  इन फुल्लो पॉपकॉर्न के फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारियों के  साँस सम्बन्धी रोग को पॉपकॉर्न अस्थमा कहते है।

जिस तरह से  किसी विदेशी मूल के नागरिक को आधार कार्ड पासपोर्ट और भारत की नागरिकता दे कर आप उसको कागजी तौर पर भारतीय कह सकते है। लेकिन  क्या इससे वो सच में मूल भारतीय हो सकता है ? नहीं। ठीक इसी तरह से बाजार के रसायनों से भरपूर प्रीमिक्स फ़ूड से व्यंजन  घर पर बना लेने से वो भी घर के नहीं होते है। सिर्फ ये भ्रम पाल लेना के घर पर इन प्रीमिक्स से बना व्यंजन शुद्ध  होगा। तो ये बात विवेक पर निर्भर करती है।

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