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चमक दमक के पीछे भागती मानवता 

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मानवता के पीछे भागती बीमारियां 

बाजार में  मिलने वाले कई खाद्य पदार्थों में इसलिए कुछ खतरनाक रसायनों की मिलावट की जाती है। जो सिर्फ उत्पाद की नकली चमक व  रंग के लिए होते है लेकिन इसी चमक दमक और रंगीन धोखे में हम ही उन उत्पादों को ज्यादा पसंद करने लगते है। जोकी  व्यापारियों और  उत्पादकों को मजबूर कर देता है की वो ऐसी ही मिलावट और छेड़छाड़ जारी रखें  । दालों में चमक दिखाने  के लिए पहले तेल, फिर लागत  कम करने के लिए सस्ते तेल और चर्बी का इस्तेमाल होने लगा। 

 बहुत समय बाद लोगो ने इस बात को महसूस किया और दालों को  लेकर उस पर चर्बी की चमक की चालाकी को लोग समझने लगे तब जा कर लोगो ने बिना पोलिश की दाल को प्राथमिकता देने  लगे। लेकिन आज भी ऐसी कई मिलवाट चलन में है ,जो उत्पादक करना नहीं चाहता लेकिन हमारी धारणा  और मानसिकता के चलते उन लोगो को धंधे के लिए करनी पड़ती है।

गुड़ को लम्बे समय तक पीला बनाये रखना प्राकृतिक रूप से संभव नहीं और ना ही उसका उच्च भण्डारण की लागत एक आम उत्पादक वहन  कर सकता है। ऐसे उत्पादक बहुत ही छोटे और लघु उधोग होते है। जो तकनीकों पर ज्यादा खर्च नहीं कर पाते इसलिए सस्ते जुगाड़ी तरीको का इस्तेमाल उत्पादक  करते है।

 खास तौर पर सब्जी बाजार में सब्जियों को ताजा  और रंगीन दिखाने के चक्कर में सस्ते जहरीले रसायनो का उपयोग आम हो गया है। सिर्फ इस मानसिकता की मांग की पूर्ति के लिए जो की आम ग्राहकों की रहती है रंगीन और चमकदार सब्जियां और फल ही सेहतमंद होते है।,सेब की वैक्सिंग आम बात है।

 खेत से लेकर गोदाम फिर एक मंडी से दूसरे मंडी का सफर और फिर से गोदाम और मंडी से रेहड़ी और आपके सब्जी वाले तक साधारण सब्जी को खेत से आप तक पहुँचने में ही पांच से छ: दिन का समय लग जाता है।

 आलू प्याज और लहसुन तो महीनो तक गोदाम में मुनाफाखोरी के चलते रसायन पोत कर छोड़ दिया जाता है।ऐसे ही फलो को पकने से पहले तोड़ कर उसे दूसरे राज्यों के गोदामों में पहुँचाये जाते है। फिर इनको पकाने के लिए रसायनो का उपयोग कर आप के सामने पेश कर दिए जाते है।

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इसी मानसिकता का भुगतान ग्राहक को  पैकेज फ़ूड में भी करना पड़ता है। पैकेज और प्रोसेस्ड फ़ूड को दिखने में सुन्दर चमकीला रखने के लिए सिंथेटिक और जहरीले रासायनिक रंगो का उपयोग किया जाता आ रहा है। रेडीमेड आटा इतना सफ़ेद होता है जितना घरेलु या चक्की वाले का नहीं होता है।क्योकि  उसमे आटे को सफेद करने और सफ़ेद बनाये रखने के लिए सिंथेटिक रंगो और परिरक्षको का इस्तेमाल किया जाता है। जिसकी जानकारी तक आप से छिपायी जाती है।  वस्तुतः यही हाल मसालों और अन्य प्रोसेस्ड फ़ूड के साथ किया जाता है।

ऐसे में खाद्य को नहीं हमारी मानसिकता में परिवर्तन की आवश्यकता है। बाजार हमेशा मांग के  अनुरूप ही रहा है।जब हमारी मांग सही और बिना चमक दमक के खाद्य उत्पादों की होने लगेगी तो बाजार और उत्पादकों को ग्राहक के अनुरूप ही उत्पाद बनाना होगा। बाजार विज्ञापन पर जोर दे सकता है। आपको लुभावने ऑफर दे सकता है। लेकिन जबरदस्ती नहीं कर सकता है।

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