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कितना जहर छोड़ जायेंगे हम आने वाली पीढ़ी के लिए

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हमारे सामने हमेशा एक यक्ष प्रश्न खड़ा किया जाता है। जनसंख्या वृद्धि और खाद्य संकट .
और वैश्विक स्तर पर बनी  समितियों व समितियों में इस प्रश्न को हमेशा जिन्दा और हमेशा प्राथमिक मुद्दा बनाने की   कोशिश होती है। और प्रदूषण से निपटने के मसौदे सभी देश अपने अपने स्तर  पर कर ही रहे है।  लेकिन भारत में क्या हो रहा है ?
कोरोना की लहर में अमेरिका ने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (HCQ ) की मांग की थी जिसको लेकर कई लोगो ने गर्व भी महसूस किया होगा। लेकिन किसी ने भी ये जानने की कोशिश ही नहीं की क्यों अमेरिका भारत से HCQ मांग रहा है। और भारत को धमका भी रहा है। जबकि इतने विकसित  HCQ बनाना मामूली बात होनी चाहिए।
असल में HCQ बनाने के लिए जो प्रक्रिया होती है वो बहुत अधिक मात्रा में प्रदूषण फैलाती है।न सिर्फ HCQ बल्कि ऐसे सेंकडो रसायन है। जिसको बनाने में भारी मात्रा में पर्यावरण प्रदूषण और स्थानीय स्तर पर जमीन और पानी को नुकसान और प्रदूषण होते है,तथा इनका उत्पादन भारत व  भारत जैसे विकासशील देशो में करवाया जाता है। ताकि पश्चिमी देश अपने पर्यावरण को उन खतरनाक रसायनो से बचा सके।
भारत हर साल एक लाख टन प्लास्टिक कचरे का आयात कर रिसाइकल और  डम्पिंग किया जाता है। भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा रसायन निर्यातक है। जिसमे अधिकतर एग्रोकेमिकल्स कीटनाशक व फर्टिलाइज़र व पेट्रोकेमिकल्स है।इन सभी रसायनो के उत्पादन में भयंकर प्रदुषण फैलता है। साथ ही हर साल देश के खेतो में लाखो टन खतरनाक रसायन कीटनाशकों के नाम पर भर दिए जाते है। जो अब धीरे धीरे भूगर्भीय पानी में घुलने लगे है।देश में कुछ खास क्षेत्रो को छोड़ कर देश  के हवा पानी जमीन ,खेत अनाज सभी में सिंथेटिक जहर की मात्रा सहन करने की सीमा से पार हो चुकी है।हालत गंभीर नहीं भयानक है।  सरकार और मीडिया ने आँखे तो मूँद रखी है
हालही में अमेरिका के खाद्य विभाग ने खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों के अवशेषों पर अपनी 31वी वार्षिक रिपोर्ट जारी की जिसमें 99 % खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों के अवशेष निर्धारित सीमा से भी कम रहे है।

अमेरिका जैसे विकसित देश 30 साल पहले से ही कीटनाशकों के उपयोग व कृषि रसायनों पर गंभीर रूप से कार्यरत है। जिसके परिणाम आप सब के सामने है।हालाँकि इससे ये नहीं कहा जा सकता की अमेरिका ने अपनी सारी फसले जैविक रूप से उत्पादित की हो लेकिन रसायनों के बेइंतहा उपयोग को नियंत्रित किया जा सकता है और कीटनाशक को खाद्य पदार्थों में कम किया जा सकता है।लेकिन हमारे देश की मुख्यधारा मिडिया कभी ऐसी खबरों को लेकर प्राइम टाइम या हेडलाइन नहीं दिखती है। धार्मिक जहर जातिवाद के जहर को फैलाने में मशरूफ भारत का मिडिया इन अजर अमर रासायनिक  जहर को अनदेखा किया हुवा है जो भारत की नौजवान पीढ़ी और आने वाली पीढ़ियों को ख़त्म करने का दम रखता है।

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