सच का सामना

पहले अंडा आया फिर बीमारी ( भाग एक )

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अंडो के सेवन को लेकर  समाज में स्थिति बिलकुल साफ़ है। जिसको खाना है वो खाते  है जिसको नहीं खाना वो नहीं खाते है।
भारत में अंडे खाने का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। यहाँ तक की मुग़लकाल में भी अंडे के व्यंजन के   सम्बन्ध में कोई खास जानकारी नहीं मिलेगी। अंडा का बाजारीकरण ही 1911  में  ब्रिटीश अविष्कारक जोसफ कायले के अंडे के काजगी कार्टन के अविष्कार से शुरू हुवा था। उससे पहले यूरोप में अंडे खाने का चलन था। हालाँकि अंडे मनुष्य अपनी उत्पति की शुरुवात से ही खा रहा है। मध्यकाल में अंडे गरीबो का खाना ही माना जाता था।
भारतीय जनमानस  में अंडे शाकाहारी और मांसाहारी को लेकर एक संशय हमेशा से रहा है। भारत में आजादी से पहले तक अंडे अंग्रेज अधिकारी व भारतीय अधिकारी ( अंग्रेजो के सेवक ) और   सेनिको की नाश्ते की  खुराक थी। आजादी के बाद अंडे खाना लोकप्रिय हुवा था। भारत में आज भले ही खाने में लोकप्रिय हो लेकिन हर कोई अंडे खाना पसंद नहीं करता है।
अंडो के लिए   भारत में 1982 से ही टेलीविजन और रेडियो पर विज्ञापन आने शुरू हो गए थे। मजे कीबात ये  है की अंडा किसी कम्पनी का प्रोडक्ट नहीं है। फिर भी इसका प्रचार प्रसार कौन और क्यों  रहा है।
जबकि अंडो का जिक्र आते ही हमारे दिमाग में कोई खास कम्पनी या ब्रांड नहीं बल्कि अपने मोहल्ले की दूध या आम सामान की दुकान या सड़क किनारे रेहड़ी वाले ही आते है।
अंडे के प्रसार प्रचार को भारतीय अंडा समन्वय समिति ( National Egg Coordination Committee ) द्वारा प्रायोजित किया जाता है। जो की इंडियन सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट  में रजिस्टर्ड ट्रस्ट है। ये समझने वाली बात है की असंगठित क्षेत्र से जुड़े मुर्गी पालको को कॉर्पोरेट द्वारा क्यों सरंक्षित किया जा रहा है। जबकी अन्य क्षेत्रो में स्थिति बिलकुल विपरीत है।
 अंडो और उनकी माता मुर्गियों के साथ विडंबना ये है की कोई भी धर्म या पंथ ने  इसको हमेशा भोजन की श्रेणी में ही रखा है। या तो यह भोजन के रूप में  स्वीकार्य है या वर्जित है।
अंडो के बारे में बात करेंगे तो  पाठय पुस्तकों से लेकर आम धारणा में अंडे को संतुलित पौष्टिक और फायदेमंद बताया गया है। लेकिन कभी भी अंडो के दुष्प्रभाव व गुणवक्ता पर मिडिया ने अधिक प्रश्न  नहीं उठाये। यहाँ तक की देश विदेश में अंडो को लेकर किये गए अध्ययन और रिसर्च पर भी उसकी विपरीत छवि पर पर्दा डालने का काम होता रहा है।
जबकि स्थिति भयानक है। पोल्ट्री फार्म की गंदगी और एंटीबायोटिक व कीटनाशकों के बीच पैदा हुवा अंडा कई तरह के कीटाणुओं और जहर का संवाहक बन गया है। इसको लेकर कोई चिंता या चिंतन आम आदमी के जहन में ही नहीं आने दिया जाता है। सिर्फ बर्ड फ्लू और अन्य पक्षी संबंधी संक्रमण की विदेशी खबरों के दम पर भारत की स्थिति को बेहतर बता दिया जाता है।

अंडे को लेकर भ्रांतिया और सच्चाईया हम क्रमांक से बताएँगे।

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