फ़ूड लेबल : इ कोडिंग के सच
कृत्रिम मिठास : वैकल्पिक स्वीटनर (Sweetener ) – E -950-E -969
संयोगवश कृत्रिम मिठास की खोज हुई।
एक सदी पहले इंसान मीठे के लिए चीनी गुड़ शहद और फलो तक ही सिमित था। लेकिन एक संयोग या दुर्घटना वश कृत्रिम मिठास की खोज हुई। ये भी एक तथ्य है की आज इंसान जिन खोज पर इतराता है वो सारी खोजे इत्तफाक और संयोग के नाम रही है।
विज्ञान ने खाद्य क्षेत्र के वैज्ञानिको ने जब मनुष्य के स्वाद को लेकर अपना अध्यन किया तो मनुष्यो की मीठे के प्रति नशे जैसी तलब का पता चला और तब से मीठे और मिठास का इस्तेमाल जोरों पर है।
प्रोसेस फ़ूड इंडस्ट्री ने अपने उत्पादों में कृत्रिम मिठास इतनी भर रखी है की न चाहते हुये भी मीठे उत्पादों के लिए इंसानो को तलब लगी रहती है। मीठा न मिलने की हालत में कइयों को तो चक्कर आने लगते है। या सिर भारी हो जाता है। जिन लोगो को चाय की लत है वो इसको समझ सकते है।
कृत्रिम मिठास के लिए आज बहुत तत्व है। कृत्रिम मिठास में कोई पोषण या कैलोरी नहीं होती इसलिए सुरुवात में इनको बहुत प्रोत्साहन मिला में इसके दुष्प्रभाव भी उभर कर आये बहुत से कृत्रिम मिठास के तत्वों को विश्व में अलग अलग देशो में प्रतिबंधित है। प्रोसेस फ़ूड इंडस्ट्री उत्पाद के सामग्री में मिठास को नाम से या E -650 से 659 के गणितीय अंको में लिखा या दर्शाया है।
सन 1879 जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में जर्मन केमिस्ट रेम्सन व फाहलबर्ग द्वारा घाव की दवा बनाने के प्रयास में चारकोल और अन्य पदार्थ के संश्लेषण में सैकरीन की खोज हुई। जिसके पेटेंट को मोनसेंटो द्वारा लेकर 1950 में इसे बाजार में उतारा गया।
मीठे की प्रति मानव का आकर्षण प्राकृतिक है। मीठापन एक ऐसा स्वाद होता है जो बिना किसी मज़बूरी के अनदेखा और अनचखा नहीं किया जा सकता है। मनुष्य का पहला निवाला यानी माँ का दूध भी मीठा होता है। माँ के दूध में लेक्टोस की मिठास होती है।
सेकरीन (Saccharine) E-954
सेकरीन खाद्य इतिहास का पहला सफल कृत्रिम मिठास का तत्व था जिसकी खोज संयोग से हुई थी इससे पहले मिठास के लिए चीनी गुड़ और शहद का उपयोग होता था। वही पश्चिम में लेड का भी इस्तमाल मिठास के लिए होता था।
सेकरीन जर्मन केमिस्ट रेम्सन और फाहलबर्ग की संयोगवश खोज थी जिसे 1950 से खाद्य प्रदार्थो में मिलाना शुरू किया गया। सेकरीन साधारण चीनी से 300 से 500 गुना अधिक मीठा होता है। लेकिन खाने के बाद इसका स्वाद थोड़ा कड़वा होने लगता है इसलिए सेकरीन के साथ दूसरे मिठास के तत्व मिलाये जाते है।
1977 के एक अध्ययन में पाया गया की सेकरीन से चूहों के मूत्राशय में कैंसर हो जाता है। इस आधार पर इसे कनाडा में बैन कर दिया गया। लेकिन बाद में इसको लेवल पर चेतावनी के साथ बेचा जाने लगा। सेकरीन के साथ विवाद और सरकारों का योगदान दोनों ही रहे है।
आज सेकरीन सुरक्षित मिठास के लिए जाना जाता है। इसका उपयोग शुगर फ्री उत्पादों और दवाइयों और खाद्य प्रसाधनों में मिठास के लिए किया जा रहा है। सेकरीन की अधिकता से मूत्राशय और आंतो में कैंसर , पाचन संबंधी बीमारियां हो सकती है। सेकरीन में लत या आदि बनाने के गुण भी पाया जाता है। यही कारण है की खाद्य उत्पादक इसे इतना पसंद करते है।
एसपारटेम (Aspartame ) E -951
एसपारटेम की खोज की कहानी भी सेकरीन की तरह ही है। 1965 केमिस्ट जेम्स एम स्कालटर घाव भरने की दवा खोज रहे थे तो संयोगवश उनसे एसपारटेम बन गया। कृत्रिम मिठास के तत्वों के खोजकर्ताओ में श्रेय लेने की होड़ नहीं होती है संभवतः उनको भी पता होता हे की वो कुछ अच्छा नहीं बना रहे थे। एसपारटेम में सेकरीन की तरह खाने के बाद कड़वापन नहीं होता है इसलिए इसे सेकरीन के साथ मिलाया जाता है।
एसपारटेम साधारण चीनी से 180 से 200 गुणा मीठी होती है। एसपारटेम मूलतः दो प्रकार के एमिनो एसिड एस्पार्टिक एसिड ( Aspartic acid )फेनीलालाइन (Phenylalanine ) से बनाया जाता है। एसपारटेम अत्यधिक तापमान पर नष्ट या बिगड़ता नहीं है जो इसे पकने के हिसाब से बहुत अच्छे खाद्य अवयव बनता है।
एसपारटेम भी सेकरीन की तरह विवादों में रहा है। लेकिन हर बार सरकार और खाद्य सुरक्षा परिषदों ने नकार दिया और एसपारटेम को सुरक्षित घोषित किया हुया है। एसपारटेम की अधिकता से कैंसर ,तंत्रिका तंत्र की बीमारियां व पाचन संबंधी बीमारियां हो सकती है।