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अपोषण व कुपोषण से कोई वंचित नहीं
अमीर गरीब अपने अपने कारणों से पीड़ित है
डॉ कौशल किशोर मिश्रा
( आयुर्वेदिक चिकित्सक ) अतिथि संपादक
आमतौर पर आम लोगों की तरह डॉक्टर्स भी यही मानकर चलते हैं कि पोषण से सम्बंधित बीमारियाँ ग़रीब बच्चों तक ही सिमित है । जबकि यह अमीरों और बुज़ुर्गों में भी देखने को मिलता है । हम कुपोषण पर न जाने कितने सालों से काम कर रहे हैं ।लेकिन नतीजे आज भी संतोषजनक नहीं हैं । मुझे लगता है हम लोग इस विषय पर बिल्कुल भी गंभीर और वैज्ञानिक दृष्टि वाले नहीं हैं ।
कुपोषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। खानपान की गड़बड़ी (Eating disorder) जिसमें क्षेत्रीयता या आसपास का वातावरण ( Environmental factors) की भूमिका 30-50% है जबकि वंशानुगत व जींस (Genetic factors) की भूमिका 50-70% होती है । हम इस पर चर्चा भी नहीं करते । हम हिडेन हंगर पर भी चर्चा नहीं करते, हम मेटाबोलिक गड़बड़ियों (Metabolic disorders )पर भी चर्चा नहीं करते ।.जो भी करते हैं वह सिर्फ़ एक रस्म अदायगी भर होती है । बच्चों में प्रति तीन मृत्यु में दो मौतें कुपोषण के कारण हो रही हैं । यह एक भयावह स्थिति है जो स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति हमारी निष्ठा के साथ-साथ सामाजिक दायित्वों पर भी सवाल उठाती है ।
पोषण आवश्यक नहीं कि यह समस्या केवल ग़रीबों की ही हो, पीड़ित तो अमीर भी हैं इस समस्या से, फ़र्क़ यह है कि ग़रीब अपोषित होते हैं जबकि अमीर कुपोषित । अपोषण और कुपोषण के फ़र्क़ को समझना होगा । अपोषण पोषण का अभाव है जबकि कुपोषण भोजन के कुप्रबंधन का परिणाम है । ग़रीब को ठीक से खाने को ही नहीं मिलता इसलिये वह अपोषित रहता है, अमीर अखाद्य और अपेय पदार्थों से पेट को गोदाम बनाता रहता है इसलिये वह कुपोषित होता है ।
वास्तव में यह दरिद्रता से सम्बंधित विषय है । ग़रीब के पास आर्थिक दरिद्रता है और अमीर के पास कुपोषण वैचारिक दरिद्र दोनों ही हैं ।