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लम्पी महामारी संयोग या प्रयोग

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  न्यूज़ पर व्यूज 

राजस्थान में क्यों हो गयी हज़ारों गायों की मौत ?, लम्पी बीमारी दूसरे प्रेदशों में क्यों पसार रही है अपना प्रकोप ?

भारत कृषि प्रधान देश है।  और भारत के किसान मवेशी प्रधान कृषक है।  किसानों की अतिरिक्त या आपातकाल आमदनी का स्रोत मवेशियों से ही होती है।  जिस पर अब पिछले कुछ महीनों  लम्पी वायरस का खतरा मंडरा रहा है।
लम्पी वायरस का भारत में प्रवेश ही रहस्य पूर्ण है। क्यों की मवेशी विदेशी यात्रा नहीं करते है। वही दूसरी और जानवरो के लिए पशुआहार व उनके अवयवो  का आयत निर्यात होता रहता है।  तो जाहिर है कही तो चूक हुई है।
लेकिन अब जब लम्पी वाइरस फ़ैल चुका  है। तो हर राज्य का प्रशासन हरकत में है। सुनने में आया है की लम्पी वायरस के लिए स्वदेशी वैक्सीन भी बना ली गई है और भारत में इस वैक्सीन के लिए केंद्र से आपातकालीन मंजूरी भी मांगी जा चुकी है। लेकिन अब भी केंद्र सरकार ने लम्पी वायरस को राष्ट्रीय आपदा मानने को तैयार नहीं है।
लम्पी वायरस जिसे निथलिंग वायरस भी कहा जाता है इस रोग के कारण पशुओं की त्वचा पर गांठे होने लगती है। साथ ही शरीर के अंदरूनी अंगों में सूजन आ जाती है। जिससे दुर्बल या कुपोषित मवेशियों की मौत हो जाती है। देश भर  में मवेशियों की मौतों का आंकड़ा लाख से पार हो गया है।
लम्पी वाइरस को लेकर पीक का अंदाजा फ़िलहाल दूर की कोड़ी है। ऐसे में किसानो और पशुपालन आधारित किसानो को लेकर मुआवजा या राहत पैकेज का अभी तक कोई जिक्र मिडिया में नहीं है।  लेकिन अफवाओं का दौर जारी है। मिडिया में लम्पी वाइरस को मवेशियों से इंसानो में होने की सम्भावनाये हो या लम्पी को मंकी पॉक्स के साथ जोड़ने का। अभी तो  अधूरी और संकीर्ण तथा गलत जानकारियों के आधार पर मिडिया लम्पी वाइरस पर पत्रकारिता कर रही है।
 आधे विश्व में फैली मवेशियों की बीमारी लम्पी वायरस ने भी आम लोगो को चौकन्ना किये हुये  है।
                        लेकिन एक तरफ यूरोप में मवेशियों की संख्या 30 प्रतिशत तक काम करने के सरकारी फरमान और भारत जैसे अन्य देशो में मवेशियों में लम्पी वाइरस का फैलाव हाल फ़िलहाल में एक संयोग ही समझा जाना चाहिए।
डेयरी उधोग अपने  अस्तित्व को लेकर हाशिये पर खड़ा है। ऐसे में 2022 तक किसानो की आय दोगुनी होने की बजाय आधी से “कुछ भी नहीं ” पर आ सकती है। तथा देश का एक बड़ा असंगठित व्यापार तबका तबाह होने की कगार पर आ चुका है।  फ़ूडमेन ने ये पाया है कि महंगे पशुआहार और चारे के चलते कई पशुपालको ने अपने पशु बेचने और कम करने शुरू कर दिए है। वही लम्पी वाइरस ने पशुपालको की कमर और उम्मीदे भी तोड़ दी है। यही हाल रहा तो दूध जल्दी ही पेट्रोल को पछाड़ देगा। और नकली और मिलावटी दूध हर तरफ से बिकेगा। 

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