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क्या लम्पी की लपट से झुलसेगा डेयरी उद्योग

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राजस्थान में लम्पी का कहर जारी है। हर रोज प्रदेश में आधिकारिक रूप से 50 के लगभग गोवंश मर रहे है। यही हाल रहा तो 2024 तक थार क्षेत्र के बाहुल्य गौवंश नस्ल के अस्तित्व का खतरा हो सकता है। एक और जहाँ किसान पहले से ही चारे के और पशुआहार के बढ़े हुवे दामों से परेशान था वही अब लम्पी की चपेट में किसानो के पशुधन से होने वाली कमाई शून्य पर आ सकती है। इसका ये मतलब बिलकुल नहीं की फर्क सिर्फ किसान और पशुपालको पर ही पड़ेगा। दूध आधारित भारतीय जनता की जेब और स्वास्थ्य पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

तो दूसरी और भरोसे के अभाव में डेयरी उद्योग भी बर्बादी की तरफ अग्रसर है। जिसका व्यापक असर अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलेगा। दूध पर प्रत्यक्ष रूप से आधारित उद्योग आइसक्रीम ,मिठाई ,चॉकलेट आदि के लघु उद्योग या तो बंद हो सकते या फिर मिलावट और नकली दूध के माफिया के चपेट में आ सकते है। बाजार में भरोसे के आभाव में दूध पर आश्रित अप्रत्यक्ष उधोग जिसमे हेल्थ ड्रिंक ,शेक ,स्मूदीज ,आदि का भी व्यापर प्रभावित हो सकता है। असंगठित क्षेत्र के रोजगार पर भारी क्षति पहुंच सकती है बेरोजगारी और ज्यादा फ़ैल सकती है। और मिलावटी और नकली दूध के कारण आम नागरिको के स्वास्थय और विशेषकर बच्चो के स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा असर पड़ने के आसार नजर आ रहे है।
दूध व्यवसाय बाजार की ही रिपोर्ट माने तो 2014 से ही पहले भारतीय दूध बाजार में 35 प्रतिशत से भी अधिक दूध नकली व मिलावट की चपेट में था। 2018 में यह बढ़ कर 55 प्रतिशत रहने का अनुमान था। अब जब लम्पी के प्रकोप ने अब तक 25 प्रतिशत से भी अधिक दूध व्यापर प्रभावित हुवा है। तब मिलावट और नकली दूध का व्यापार किस प्रतिशत पर आ कर रुकेगा इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल तो नहीं लेकिन प्रामाणिक होने में समय लग सकता है।

हाल ही में राजस्थान के बीकानेर जिले में नकली दूध बनाने की फैक्ट्री का भांडाफोड़ हुया है। जिसमे नकली दूध बनाने के कथाकथित रसायन भारी मात्रा में पकड़े गए है। स्थानीय अख़बार की रिपोर्ट में कहा गया हे की गत वर्ष से अब तक 79 रसायनिक दूध में मामले पकडे जा चुके है। वही हर साल त्योहारी सीजन में नकली मावा और पनीर के मामले पकडे जाते है। मध्यप्रदेश के भिंड ,मुरैना उज्जैन,रांची जैसे शहर उत्तर प्रदेश में फिरोजाबाद वाराणसी सहारनपुर आदि जिले मिलावटी दूध की मंडिया बन गए है। देश के हर प्रदेश विशेषकर हिंदी पट्टी प्रदेश में दूध के व्यापार में पहले से ही दूध माफिया सक्रिय है। और लम्पी के बाद से ही इनकी सक्रियता और बढ़ रही है। आंकड़े चौंका देने वाले और घबरा देने के लिए काफी है। ऐसे में लम्पी के संक्रमण को राष्ट्रीय या राज्य आपदा मानने से इन्कार सरकारों की हठ धर्मिता देश की अर्थव्यवस्था और विशेषकर असंगठित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को अस्तित्वहीन करने का अघोषित प्रयास क्यों नहीं माना जाना चाहिए?

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