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खाने में कीड़े (भाग 1)
पैकेट देख कर तो खोल रहे हैं आप ?
क्या आपने कभी चापड़ा चटनी या बस्तरिया चटनी खाई है ? खट्टी मीठी जायकेदार सुर्ख लाल रंग और पोषण गुणों से लथपथ ये चटनी डेंगू और मलेरिया के बुखार में बहुत लाभदायक है। नहीं। हम में से किसी ने भी ये चटनी नहीं खाई हो सकती है। छत्तीसगढ़ की आदिवासियों का पारम्परिक ये चापड़ा चटनी अमरुद के पेड़ो पर पाई जाने वाली लाल चींटियों से बनती है।
भारतीय में किट पतंगों को नहीं खाया जाता है। एक दो अपवाद हो सकते है। लेकिन अधिकतर लोग कीड़ो को खाने की सोच भी नहीं सकते है। हमारे लिए कीड़े खाना टेबू है। जबकि अन्य देशो में कीड़ो को चाव से खाया जाता है। अपनी मर्जी ,पोषण और स्वाद के लिए विश्व की 30 प्रतिशत आबादी कीड़े खाती है। कीड़ो को सस्ता और बहुत सुपाच्य प्रोटीन के रूप में देखा जाता है। जिसमे घरेलु तिलचट्टे ,गुबरेले ,मक्खी ,तितली ,बिच्छू ,लार्वा आदी होते है। हम भारतीय जेब में पैसा हो और कोई देख रहा हो तो वो चाय भी ना पीये जिसमे मक्खी गिरी हो।
एक पुरानी कहावत है की गेंहू के साथ घुन भी पीसता है। और वर्तमान प्रोसेस फ़ूड और पीसे पिसाये खाद्य सामग्री की सच्चाई भी है। क्यों की पीसने के बाद ये पता लगाना मुश्किल है की क्या क्या पीस गया है।
हर साल सेंकडो किलो कीड़े अनाज और दालों के साथ पीस दिए जाते है। या भोजन के साथ पक्का दिए जाते है। पुराने ज़माने में जब अनाज को घरो में पीसा जाता था तब अनाज को फटकार कर मरे हुये कीड़ो को अलग किया जाता था। लेकिन वर्तमान में सब पीसा पिसाया ही ख़रीदा बेचा जाता है।
भारत में खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (Fssai) के सख्त दिशानिर्देश है, कि पीसने वाली औधोगिक इकाइयां पीसने के उत्पाद से कीड़े लगे अनाज ता मसाले को अलग करे। और ये भी सुनिश्चित करे की पिसाई के दौरान कोई भी किट पतंगे या जंतु पिसाई की प्रक्रिया में ना आये । इसके बावजूद पीसे हुवे आटे मसलो में कीड़ो को पीस दिया जाता है। कई बार लोगो को पैकेट में से कीड़ो के टांग सर पंख पूंछ मिलते रहते है। लेकिन खुले पैकेट पर सारे कानून ख़त्म हो जाते है।
सबसे अच्छी बात ये है , कि ये अनाज के कीड़े मानव शरीर के लिए नुख्सान दायक बिलकुल भी नहीं है। बस इस बात का ही ध्यान रहे की जब भी पीसा पिसाया का पैकेट खोले तो कोई दूसरा आपको न देख रहा हो ताकी आप भी सभी की तरह उसे निकाल कर फेंक दे।