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जहर बुझे अकड़ ( एटीट्यूड )के साथ बच्चो की मानसिकता से खिलवाड़ करते विज्ञापन

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आज के दौर में विज्ञापन एक ऐसा हथियार बन चूका है जिसके चलते सामाजिक या मानवीय  मौलिकता का हनन हो रहा है। और इनका सबसे बड़ा लक्षित वर्ग नाबालिक बच्चे और जवानी की दहलीज पर पांव रखते युवा होने लगे है। बिस्किट टॉफी चॉकलेट और सॉफ्ट ड्रिंक के विज्ञापनों के किरदार  बहुत ही बेवकूफ और विज्ञापन के नायक को बहुत ही समझदार दिखाया जाता है। कई विज्ञापनों में बच्चो से भी जहरबुझी मानसिकता को अपने उत्पाद की गुणवक्ता से जोड़ कर दिखाया जाता है। और बहुत ही चालाकी से बच्चो के टीवी प्रोग्राम और फ्री मोबाइल गेम में अनिवार्य विज्ञापनों के रूप में चलाया जा रहा है।

आज की भाग दौड़ के जीवन में बच्चो के दिनभर की दिनचर्या को अभिभावक चाह कर भी निगरानी नहीं रख सकते। जिसका नुकसान  ये है की बच्चो में जिद्द और जहरीली मानसिकता और नेगेटिव एटीट्यूड का शिकार हो रहे है।  ये विज्ञापन और बच्चो के प्रोग्राम से जोड़ देते है। आप के हिसाब से आपका बच्चा  बच्ची कार्टून ही देख रहे होंगे। लेकिन कैसे इन कार्टून के तत्वों व किरदारों के साथ अकड़ और जिद  साथ तालमेल बैठाते  विज्ञापन आपके बच्चे के मन मस्तिष्क में कई नकारात्मक मनोवैज्ञानिक विकार उत्पन्न किया जा रहा है। उसे समझना हम अभिभावकों के लिए जरुरी हो गया है।

बच्चो के मन में अपने उत्पाद को लोकप्रिय बनाने और सिर्फ अपने उत्पाद की बिक्री बढ़ाने के लिए बच्चो के मन में सुपरहीरो और सुपरहीरो के नाम पर जिद्द और अकड़ जैसी जहरीली मानसिकता को बच्चो में बढ़ायी जा रही है। साजिश कहे या षड्यंत्र इन सब का लक्ष्य अपने प्रोडक्ट की बिक्री तक ही सिमित है। चाहे आपका बच्चा इस जहरीली मानसिकता  साथ अपने दोस्तों या अपनों के साथ कोई आपराधिक घटना को ही अंजाम देने लग गया हो।

बच्चो का मन निर्मल होता है लेकिन आज के बच्चो में अपना अलग एटीट्यूड  अपनी अलग पहचान की भावना जानबूझ कर बढ़ाई  जा रही है। और इसी अलग और सुप्रीम मानसिकता का परिणाम आप अखबारों और समाचारो के जरिये महसूस कर सकते है। जहा छोटे छोटे नाबालिग बच्चे गंभीर से गंभीर आपराधिक घटनाओ के मुख्य अपराधी बने है।और उसका आदर्श कोई कार्टून का किरदार भी हो सकता है।  और उत्पाद के विज्ञापन के किरदार का भी हो सकता है।
आपकी संतान टॉपर हो सकती है। खेलने में भी अच्छी हो सकती है।ये उसके रिपोर्ट कार्ड या खेल की ट्रॉफी में झलकता है जो किसी भी अभिभावक  गर्व का विषय हो सकता है।ठीक इसी तरह बच्चों के  आपराधिक गतिविधियों या किसी जहरीली मानसिकता से ग्रसित हो चुकी हो ये आप को उसके अपराध करने पर ही पता चलता है। बच्चो को हीरो बनाने और आत्ममुग्धता का शिकार बनाने वाले बच्चों के प्रोग्राम और उनसे तालमेल बिठाते बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रोडक्ट के विज्ञापन आपके बच्चे की मौलिकता को बचपन में ही खा जाते है।

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इनसे अपने बच्चों को बचाने के लिए अपनी आवाज जरूर उठाये। ऐसे बच्चों के प्रोग्राम को सोशल मीडिया में तथा सम्बंधित नियमन सरकारी संस्थान को लिखे।  शिकायत करे। हो सकता है की आपकी अकेली शिकायत काफी न हो लेकिन जंगल जलने की शुरुआत भी किसी चिंगारी से ही होती है। इतिहास से सिखा समझा जा सकता है की बच्चो की मानसिकता का परिणाम उनके अभिभावक अपने बुढ़ापे और मरने तक भुगतते है।

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