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FSSAI और कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो का दोगलापन।
कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो का भारत में इस्तेमाल उत्पाद और एक्सपोर्ट उत्पाद की क्वालिटी में फर्क।
पिछले कई सालों से कई व्हिसलब्लोअर, खोजी पत्रकार और खाद्य पत्रकार देश में हो रही खाद्य मिलावटों और प्रोसेस्ड फूड की खामियों को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं।कुछ पत्रकार यूट्यूब आदि प्लेटफार्म पर खाद्य सुरक्षा जागृति का प्रयास कर रहे है। वही मुख्यधारा मिडिया कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो के विज्ञापन में ही व्यस्त है। भारतीय और अंतरराष्ट्रीय प्रोसेस्ड फूड, कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो द्वारा भारतीय जनता के साथ दोगला व्यवहार किया जा रहा है।
हाल ही में एवरेस्ट और एमडीएच जैसी बड़ी मसाला कंपनियों के मसालों में कीटनाशकों को लेकर हांगकांग में उठे सवाल ने देश में FSSAI और खाद्य निर्यात करने वाली संस्था APEDA को कठघरे में ला खड़ा किया है। इसके चलते देश भर में कई ब्रांड के मसालों की जांच की गई और हांगकांग की खाद्य सुरक्षा एजेंसी की बात सच साबित हुई।यही नहीं नौनिहालों और बच्चो के खाने पीने के उत्पादों में कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो का दोगलापन साफ साफ झलकता है। विदेशो में बिकने वाले हेल्थ ड्रिंक और भारत में बिकने वाले हेल्थ ड्रिंक,चॉकलेट ,और बेबी फ़ूड में चीनी की मात्रा में बहुत ज्यादा फर्क देखने को मिलता है।
सिर्फ प्रोसेस फ़ूड में ही नहीं बल्कि हमारे देश की फसले भी कितनी खाने लायक है। यह सवाल भी पूछना चाहिए। 2022 में मिस्र और ईरान द्वारा भारत से निर्यातित गेहूं को वापस भेजने का मामला सामने आया था, तो FSSAI और तत्कालीन भाजपा सरकार ने इसे मुस्लिम विवादों से जोड़कर पेश किया, जबकि इस सच्चाई पर मुख्यधारा मीडिया या यूट्यूबर पत्रकारों ने कोई खास रिपोर्टिंग नहीं की। पिछले साल एक NGO, ACP द्वारा देश में बिक रहे सभी ब्रांडेड शहद की भारतीय गुणवत्ता और एक्सपोर्ट गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाए गए, लेकिन किसी ने भी इस कदम पर कोई रिपोर्टिंग नहीं की।
फ़ूडमेन का कहना यह है कि भारतीय उपभोक्ताओं को उत्पाद का उचित मूल्य चुकाने के बाद भी वह गुणवत्ता नहीं मिल रही है। वहीं उसी उत्पाद की गुणवत्ता निर्यात में अंतरराष्ट्रीय स्तर की हो जाती है।ये दोगलापन FSSAI बड़ी ही बेशर्मी के साथ देख भी रही है और उदासीन बनी हुई है।
कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो का भारत में इस्तेमाल उत्पाद और एक्सपोर्ट उत्पाद की क्वालिटी में फर्क क्यों है।
भारत में FSSAI यानी खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण का काम खानपान में सुरक्षा और प्रोसेस्ड फूड में मानक स्थापित करना है। लेकिन जैसा कि हम अपने पिछले लेखों में बता चुके हैं कि FSSAI को किस तरह बड़े उद्योग घराने अपने फायदे के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दखलअंदाजी कर नियमों और कानूनों से छेड़छाड़ करते हैं, और भारतीय खाद्य सुरक्षा नाम मात्र ही रह गई है। ऐसे में दूसरे देशों को देखा जाए, विशेषकर पश्चिमी और यूरोपीय देशों में, खाद्य सुरक्षा को लेकर सरकारें और एजेंसियां बहुत सक्रिय रहती हैं। यही कारण है कि हमारे खाद्य पदार्थों में कैसी-कैसी मिलावटें हैं, हमें विदेशी जमीन पर वहां की खाद्य सुरक्षा एजेंसियां बताती हैं।
FSSAI एक कॉर्पोरेट संचालित संस्था की तरह काम करती है, और इसके CEO जो कि निविदा पर नियुक्त हैं। यह उद्योग और स्वास्थ्य मंत्रालय की व्यवस्था है कि सरकारी व्यवस्था में सचिव स्तर का कोई अधिकारी भारत में खानपान की निम्न स्तरीय गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार नहीं होता। जिस तरह से FSSAI नागरिकों के टैक्स से भारी बोझ साबित हो रही है, उनके अधिकारी सभी शिकायतों पर खानापूर्ति करते हैं और सैकड़ों-हजारों शिकायतों की अनदेखी की जा रही है।
ये बहुत ही मज्जेदार बात है की इस विषय पर वर्तमान विपक्ष भी खामोश ही रहता है। सदन में खाद्य सुरक्षा के मानकों और अनियमितताओं को लेकर सदन में कोई भी प्रश्न नहीं उठाया जाता है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद सेबी अध्यक्ष माधवी बुच पर रोज खुलासे विपक्ष द्वारा किये जा रहे है। लेकिन स्वास्थ्य और भोजन से जुडी कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो को लेकर विपक्ष भी शांत है।
FSSAI के कार्यप्रणाली की गंभीरता को समझना बेहद ज़रूरी है क्योंकि यह संस्था देश के खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता की देखभाल के लिए बनाई गई है। लेकिन, जैसे-जैसे समय बीता है, यह साफ़ हो गया है कि इस संस्था के अंदर भारी अनियमितताएँ हैं और यह बड़े उद्योगपतियों के दबाव में आकर अपने असली उद्देश्य से भटक गई है। आज स्थिति यह है कि भारतीय उपभोक्ताओं को खराब गुणवत्ता वाले उत्पाद मिलते हैं, जबकि वही कंपनियां अपने उत्पादों के निर्यात में अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता सुनिश्चित करती हैं।
जब देश के भीतर खाने-पीने के सामान की गुणवत्ता की बात आती है, तो FSSAI की सख्ती की कमी के कारण कंपनियां मिलावट और घटिया क्वालिटी के उत्पाद बेचने से पीछे नहीं हटतीं। इसके विपरीत, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यात के समय ये कंपनियां सभी मानकों का पालन करती हैं, क्योंकि वहाँ की सरकारें और एजेंसियां खाद्य सुरक्षा के मामले में कोई समझौता नहीं करतीं।
भारतीय खाद्य सुरक्षा के लिए सुधार की आवश्यकता
हमारे देश में खाद्य सुरक्षा और मानकों को लेकर जो ढीला-ढाला रवैया अपनाया जा रहा है, उसे बदलने की सख्त जरूरत है। इसके लिए सबसे पहले FSSAI की जवाबदेही तय करनी होगी। FSSAI को एक स्वतंत्र और पारदर्शी संस्था के रूप में कार्य करना चाहिए, न कि उद्योगपतियों के प्रभाव में आकर। इसके लिए ज़रूरी है कि इसकी संचालन व्यवस्था में सुधार हो और किसी भी प्रकार की धांधली या पक्षपात के मामलों की सख्ती से जाँच की जाए।
इसके अलावा, केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खाद्य सुरक्षा के सभी मानकों का पालन हर स्तर पर हो, चाहे वह घरेलू बाजार हो या अंतरराष्ट्रीय निर्यात। इसके लिए स्थानीय स्तर पर निरीक्षण और निगरानी को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। जो भी कंपनियां इन नियमों का उल्लंघन करती हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि उन्हें यह समझ आ सके कि वे उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते।
आज भारत में खाद्य सुरक्षा और मानकों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। FSSAI जैसी संस्थाओं को सशक्त और जवाबदेह बनाकर, और खाद्य सुरक्षा कानूनों का सख्ती से पालन करवाकर ही इस स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। इसके लिए सरकार, मीडिया, और जनता को मिलकर काम करना होगा, ताकि हर नागरिक को सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण भोजन मिल सके। जब तक हम सभी इस दिशा में एकजुट होकर कदम नहीं उठाएंगे, तब तक हमारे खाद्य उत्पादों में मिलावट और गुणवत्ता की कमी का सिलसिला चलता रहेगा। मोदी जी को इस ओर तत्काल ध्यान देकर आवश्यक कदम उठाने चाहिए, ताकि देश की खाद्य सुरक्षा को और अधिक मज़बूत बनाया जा सके।