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खाद्य अवयवों की जानकारी  छुपा रहे है निर्माता।

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FSSAI ही खाद्य अवयवों की जानकारी छुपाने की दे रही है छूट।

 

खाद्य अवयवों की जानकारी होना और देना निर्माता की जिम्मेदारी है। और ग्राहक का अधिकार है। खाद्य सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सरकारी संस्थान निर्माताओं का भला देख रहे है। और जनता को मुर्ख या अज्ञानता में धकेला जा रहा है। 

आजकल हमारे भोजन या खाद्य स्त्रोत किसी न किसी प्रोसेस फ़ूड उधोग के उत्पादों के आधीन ही होते है। चाहे वो ब्रेड हो या सॉस ,मक्खन,या रेडीमेड मसाले लगभग सभी का प्रसंस्करण किसी न किसी बड़ी छोटी फैक्टरी में किया जाता है। भारत में ऐसे उत्पादों पर पर निगरानी और नियमन के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की स्थापना की गई थी। लेकिन जब से प्राधिकरण की स्थापना हुई है तब से प्रोसेस फ़ूड की सामग्री सूची में जानबूझ कर  खाद्य अवयवों की जानकारी  को छिपाया जा रहा है।

छिपाया पहले भी जा रहा था जब कोई नियमन नहीं था। लेकिन अब जब FSSAI होने के बावजूद अब भी खाद्य अवयवों की जानकारी को छिपाया ही जा रहा है।  आम जनता जो किसी भी रूप से प्रोसेस फ़ूड में मिलाये जाने वाले तत्वों की जानकारी नहीं होती है।

प्रोसेस फ़ूड की पैकिंग के लेबल पर खाद्य अवयव के नाम या ई-कोड़ तो लिखे जाते है लेकिन उनकी मात्रा छिपा दी जाती है।और बहुत से उत्पाद अलग अलग होते हुवे भी सामग्री सूची ही  कॉपी पेस्ट कर दी जाती है।
फ़ूडमेन आपका ध्यान सामग्री( ingredients ) सूची पर लिखे जाने वाले प्रिजर्वेटिवस ,कलर ,फ्लेवर आदि की मात्रा को छुपाये जाने या न लिखने की और ले जाना चाहता है।FSSAI की स्थापना का मूल आधार जनता के स्वास्थ्य व उनके खाद्य गुणवक्ता के अधिकारों को लेकर हुवा था।

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आज भी FSSAI द्वारा खुल्ले में पड़े भोजन और रात के बासी खाने को नहीं खाने और फ़ूड पॉइजनिंग से बचने के आधारभुत जानकारियों के साथ आधे घंटे के भाषण के बाद सोशल मिडिया के लिए फोटो और कोई न कोई प्रमाणपत्र या प्रशस्ती पत्रों का वितरण कर जिम्मेदारियों का निर्वाह हो रहा है।

जबकि  ऐसे में कई उत्पादों की सामग्री सूची से  खाद्य अवयवों की जानकारी  गायब है।  विशेष कर खाद्य अवयव जैसे परिरक्षक ,पायसीकारक ,एंटीबायोटिक ,आदि को ई-कोड में ही दर्शाया जाता है लेकिन इनकी मात्रा को नहीं दर्शाया जाता है।

खाद्य सुरक्षा के नाम पर FSSAI द्वारा हर साल काफी इवेंटबाजी होती है जिसमे आज भी हाथ धो कर खाना खाना सिखाया जाता है। लेकिन किसी भी तरह प्रोसेस फ़ूड में मिलाये जाने वाले खाद्य अवयव या उनके सम्बन्ध में मात्रा व सावधानी को लेकर एक छोटी सी कोशिश भी नहीं की गई है।

यानी की जिन तत्वों की उपस्थिति खाद्य उत्पादों को जनसाधारण की बीमारियों की वजह बन रही है उस पर चर्चा  भी नहीं कहा जा रहा है। 
प्राधिकरण के प्रबंधन में व्याप्त ब्यूरोक्रेसी  और कार्पोरेटोक्रेसी के चलते मनमर्जियो का दौर प्रारम्भ हो गया है।खाद्य सुरक्षा में नवाचार के विचारों पर बनी समितियां ठन्डे बस्ते में या सहमति नहीं बनने के नाम पर महीनों सालो से लंबित संसद द्वारा पारित नियमों/ कानूनों को लागू नहीं किया जा रहा है।

खाद्य अवयवों की जानकारी होना हर ग्राहक का अधिकार है। FSSAI किसी भी खाद्य अवयव की अधिकतम से न्यूनतम मात्रा तो तय करती है। लेकिन ग्राहक को कितनी मात्रा में दैनिक मात्रा का ज्ञान नहीं होता है। जो की भविष्य में ग्राहक के लिए बीमारियों व कैंसर तक का कारण हो सकता है।

जैसे खाद्य रंग या फ़ूड डाई जिसकी मात्रा एक उत्पाद तक तो निश्चित है। लेकिन एक व्यक्ति के लिए कितनी होनी चाहिए यह अभी तक तय नहीं है। जैसे किसी विशेष पदार्थ की अधिकतम दैनिक मात्रा 5 mg ही है और वो किसी भी उत्पाद में उतनी ही हो लेकिन ग्राहक ऐसे उत्पाद का उपभोग दिन में दो बार ही कर ले तो उसने दैनिक सीमा से दो गुणी मात्रा में उस खाद्य अवयव को ग्रहण किया है जो उसकी बीमारियों का कारण हो सकता है।

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खाद्य अवयवों की जानकारी होना बहुत ही जरुरी जानकारियों में से एक है। विडम्बना ये भी है की वैश्विक संसथान विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) भी इस मामले में चुप है। और हर देश की खाद्य सुरक्षा संस्थान भी इस मामले में चुप है। खाद्य अवयवों की उत्पाद में अधिकतम सीमा तय है।

लेकिन खाद्य अवयव की कितनी मात्रा किसी व्यक्ति के लिए कितनी होनी चाहिए ये तय नहीं है। इसी के लिए खाद्य अवयवों की जानकारी होना जरुरी है। लेकिन बड़े बड़े ब्रांड खाद्य अवयवों की मात्रा की जानकारी छुपा रहे है।  जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के सामूहिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है। 

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