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भोजन में छुपे जहर : अफ्लाटॉक्सिन (माइकोटॉक्सिन )फफुंदीय जहर

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अफ्लाटॉक्सिन सूक्ष्म फफूंद या फफूंद अदि के बारे में आपने सुना होगा या पुरानी  ब्रेड ,या रोटी व सड़े फल सब्जियों पर भी आपने इसे देखा होगा।  इन्ही  जमीनी  सूक्ष्म फफूंद( fungus ,mold ) द्वारा उत्पादित उन जहरीले तत्वों को  अफ्लाटॉक्सिन कहा जाता है  जिनसे कैंसर  व फ़ूड पॉइजनिंग , लिवर व  जींस तक  की सरचना को प्रभावित हो सकते है ।  ऐसे तत्व सभी खाने पीने की वस्तुओ में पाये  जाते  है जैसे  दूध , अनाज ,दाले ,तिलहन सभी पर स्वतंत्र रूप से फफूंद व उनके द्वारा निर्मित फफुन्दीयविष अफ्लाटॉक्सिन सूक्ष्म व सिमित मात्रा में पाया जाता है।

आमतौर  पर मानव व जंतु शरीर इनको झेल जाते है व इनके विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित है लेकिन आज के आधुनिक व अंधाधुंध रसायनो के इस्तमाल से इन फफूंद व इनके अफ्लाटॉक्सिन  भी बदल गए है और घातक हो गए है एक सीमित  सीमा से ज्यादा होते ही या शरीर के अंगो प्रभाव डालना शुरू कर देते है। कुछ खास फफूंद कुछ खास जगहों पर ही पाए जाते है। अफ्लाटॉक्सिन से दूषित भोजन को देख के या सूघ कर पहचाना जा सकता है लेकिन अगर उसमे कृत्रिम फ्लेवर हो तो वो आपके नाक और आंख दोनों को धोखा दे सकते है प्रोसेस फ़ूड कम्पनी वैसे तो बहुत ख्याल रखती है की अफ्लाटॉक्सिन न आये लेकिन इंसान तो गलतियों का पुतला है
अफ्लाटॉक्सिन को खाने से अलग करना बेहत ही मुश्किल व हाल फ़िलहाल में बहुत ही खर्चीली व लगभग असंभव जैसा ही है। इससे बचा जा सकता है।

अफ्लाटॉक्सिन का विज्ञान बहुत ही जटिल है हजारों तरह की फफूंद की किस्में हैं , कुछ का इस्तेमाल एंटी बॉटिक्स में कुछ का इस्तेमाल खेती में किया जाता रहा है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की पहली एंटीबायोटिक सन 1923  में पेनिसिलिन भी पेनिसिलियम मोल्ड की एक प्रजाति से ही विकसित की गई थी। आज भी  पेनिसिलिन,सेफालोस्पोरिन ,ईरिथ्रोमाइसिन ,टेट्रासीक्लीन जैसी एंटीबायोटिक्स इन्ही सुक्ष्म फ़फ़ूँदो से संश्लेषित की जाती है फफूंद प्राकृतिक रूप से  मृत जैविक प्रदार्थो के अपघटन का काम करता है खेती में इस्तमाल होने वाला ट्राईकोडरमा भी एक प्रकार की फफूंद ही है
अफ्लाटॉक्सिन जानलेवा भी हो सकता है 2003 में केन्या में 120 लोग मरे गए वही 2021 में अमेरिका में 70 से ज्यादा पालतू कुत्तो की मौत का कारण  अफ्लाटॉक्सिन से दूषित पेट फ़ूड था जानवरो से मिलने वाले खाद्य प्रदार्थ अफ्लाटॉक्सिन से ज्यादा प्रभावित होते है जिसका मुख्य कारण उनको खिलाये जाने वाला भोजन ही है जानवरो के भोजन को लेकर अक्सर लोग ला परवाह और सस्ते के चलते न सिर्फ उनके स्वास्थ्य बल्कि हमारे स्वास्थय के लिए भी खतरनाक हो जाते है अफ़ला टोक्सिन से प्रभावित जानवर से प्राप्त दूध अंडे मांस आदि में मानक से अधिक अफ्लाटॉक्सिन पाया गया है।


 FSSAI  के द्वारा समय समय पर अफ्लाटॉक्सिन के लिए ग्राहक व निर्माता दोनों को  दिशानिर्देश दिए है।
 फ़ूड सेफ्टी स्टेंडर्ड रेगुलेशन 2011 में अलग अलग खाद्य प्रदार्थो में अफ़लाटोक्सिन की मात्रा की सीमा  तय की गई है अधिक मात्रा में पाए जाने पर उस खाद्य प्रदार्थ को नष्ट करने का प्रावधान है ।  अफ्लाटॉक्सिन की सिमित मात्रा से अधिक मात्रा में खाद्य प्रदार्थ बेचने वालो के लिए जुर्मना या सजा या दोनों का भी प्रावधान किया गया है।

 खाद्य शृंखला में माफिया और बड़ी बड़ी कम्पनियो की मनमानी के चलते कोई भी इन टोक्सिन का शिकार हो सकता है।  इसलिए सजकता ही सार्थक है  प्रोसेस फ़ूड विशेष टेट्रा अल्मुनियम पेकिंग में पैक पेय प्रदार्थ जिसको देखा न जा सके उसका उपयोग सावधानी से करना चाहिए। लिक या खुले पेकिंग के सामान  खरीदने से बचे तथा पैक फ़ूड के स्वाद और गंध में थोड़ा भी फर्क महसूस करे तो उसे उपयोग में न ले।

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