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एल्युमिनियम के स्वास्थ्य खतरे  

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एल्युमिनियम -विरोधाभासी शोध-रिपोर्ट्स और स्वास्थ्य

श्री के के मिश्रा (आयुर्वेदाचार्य )अतिथि संपादक 

एलुमिनियम का उपयोग खाद्य प्रसाधनों में प्लास्टिक से पहले से होता आया है। एल्युमिनियम को पहले दुर्लभ धातु माना जाता था। तब इसकी कीमत सोने से भी अधिक हुवा करती थी। लेकिन जैसे जैसे सभ्यता का विकास हुवा।  एल्युमिनियम  उपलब्धता बढ़ती रही और उपयोगिता भी। एल्युमिनियम की उपयोगिता को लेकर इसके दुष्प्रभाव  कई चौकाने वाले अध्ययन सामने आये है। 

दुर्भाग्य से राजनीति और धर्म की तरह ही स्वास्थ्य को भी दोषपूर्ण शोधजन्य विरोधाभासों ने विवादास्पद बना दिया है । यह दुर्भाग्य से अधिक मानवीय दुष्टता का परिणाम है । खाद्य सुरक्षा और खाद्यजनित व्याधियों पर नियंत्रण के लिए अमेरिका का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है किंतु वैज्ञानिक धोखाधड़ी में भी अमेरिका ही सबसे आगे है ।

विगत कुछ दशकों में वैज्ञानिक अनुसंधानों की दृष्टि से दूध, गेहूँ और एल्युमिनियम की खूब चर्चा होती रही है जिसके परिणामस्वरूप खाद्य श्रृंखला में दूध और गेहूं को एवं धातु श्रृंखला में एल्युमिनियम को गम्भीर विषाक्त श्रेणी में रखा गया है ।

वैदिक ग्रंथों के अनुसार भारतीय खाद्य पदार्थों में चावल और यव (जौ) को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ करता था । विगत कुछ दशकों में गेहूँ के प्रचुर उत्पादन के कारण उसका भोजन के लिये और यव का प्रयोग अल्कोहल (बियर) बनाने में किया जाने लगा है । स्वास्थ्य की दृष्टि से गेहूं की अपेक्षा यव कहीं अधिक श्रेष्ठ है जिसमें ग्लूटेन की मात्रा कम होती है । यूँ भी, जौ का उपयोग मधुमेह के लिये प्रशस्त माना जाता है ।

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विषाक्त धातुओं को लेकर वैज्ञानिकों के शोध अद्भुत हैं, हम यह समझ पाने में असमर्थ हैं कि उनके शोध परिणाम परस्पर विरोधाभासी क्यों होते हैं?

अब आम उपभोक्ता को स्वयं विचार करना होगा कि पिछले कुछ दशकों में मधुमेह, कैंसर, अल्ज़ाइमर्स, हृदय रोग, थॉयरॉयड डिस्फ़ंक्शन और मल्टीपल ओवेरियन सिस्ट्स जैसी व्याधियों में हो रही अनियंत्रित वृद्धि के आख़िर क्या कारण हो सकते हैं?

खाद्य उधोग के बड़े से लेकर छोटे कारखानों में  एल्युमिनियम ही काम में लिए जा रहे है। बड़े होटल और ढाबो पर भी  एल्युमिनियम के बर्तन ही उपयोग लिए जाते है व खाने की पेकिंग में भी  एल्युमिनियम ही काम में लिया जाता है। 

अब कई लोगो में जागृति तो आई है। अब बहुत से लोग एल्युमिनियम के बर्तनो को रसोई से हटा रहे है। 

शराब उधोग में भी  एल्युमिनियम  की पैकिंग का उपयोग होता है। लेकिन बहुत ही तकनीकी चालाकी से  एल्युमिनियम के कैन के भीतरी हिस्से में प्लास्टिक लगा दिया जाता है। ताकि धातु से शराब कोई क्रिया नहीं कर पाए।

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ऐसे में कोई भी भूल या लापरवाही एल्युमिनियम  को अल्कोहल के संपर्क में ला सकती है। जिससे शराब सीधे  शराब या बियर को जहरीला कर सकती है। यहाँ तक की कोल्ड ड्रिंक के एल्युमिनियम कैन में भी यही सावधानी राखी होती है।  क्यों की कोल्ड ड्रिंक के उपयोग हुवे रसायन भी एल्युमिनियम से क्रिया कर के उसका स्वरूप व असर को प्रभावित कर सकते है। 

 दैनिक व्यवहार में प्रयुक्त मेटल्स में एल्यूमिनम को हैविली टॉक्ज़िक माना जाता है । मोलीकुलर फ़ॉर्म में यह धातु ब्लड-ब्रेन बैरियर को लाँघ कर मस्तिष्क में पहुँच सकती है जहाँ दीर्धकाल तक एकत्र होने के बाद यह अल्ज़ाइमर या डिमेंशिया जैसी व्याधियों के लिए उत्तरदायी हो सकती है । यदि मस्तिष्क में एल्यूमिनम की 0.01 मिली-माइक्रॉन मात्रा एकत्र हो जाय तो अल्ज़ाइमर्स होने की प्रायिकता बढ़ जाती है । 

भोजन निर्माण में प्रयुक्त एल्यूमिनिम की कढ़ाई और टी-पैन से लेकर भोजन की पैकिंग में प्रयुक्त एल्यूमिनम फ़ोइल से लीच होने वाले एल्यूमिनम ऑक्साइड से हमारी चाय, सब्जी और फ़ोइल में पैक्ड भोजन कितना विषाक्त हो जाता है उसकी कल्पना आम आदमी के लिये सम्भव नहीं है ।

एल्यूमिनम फ़ोइल का व्यवहार IRCTC द्वारा भी ट्रेन में दिये जाने वाले भोजन की पैकिंग में ख़ूब किया जा रहा है । सरकारों को इसके प्रतिबंध के बारे में गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। 

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