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नकली दवा का बढ़ता बाजार। हर कोई प्रभावित है।
सरकारों के नाक के नीचे फलता फूलता नकली दवा कारोबार।
नकली दवा कारोबारियों को राजनैतिक सरक्षण।
नकली दवा आज देशभर की ऐसी समस्या है। जिस पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता है। आम जनता ,सरकार ,और दवाओं की नियामक एजेंसिया में किसी को भी नकली दवाओं के बाजार में होने से दिक़्क़त नहीं है। विडंबना ये भी है की खुद मरीज को भी नहीं पता की नकली दवा खा रहा है या असली ? मरीज कैसे दवा की पहचान करे इसको लेकर कोई सुरक्षा निर्देश अभी तक तय तो हुवे है। लेकिन लागु नहीं हुवे।
नकली दवा से किसी की मौत होने की घटना अभी तक सामने नहीं आयी है। मरीज और चिकित्सक दोनों ही दवा के असली नकली से हट कर बीमारी को ही गम्भीर मानने लगते है। बाजार में कैंसर ,टीबी,व डायबिटीज व हृदय रोग की नकली दवाएं मौजूद है एक रिपोर्ट के अनुसार बाजार में हर दस दवाओं में से एक दवा नकली या निम्न स्तर की है।
निम्न स्तर यानी तय मानकों से दवा की मात्रा कम होना होता है। नकली दवाओं को खाने से असर में कई मरीजों को ज्यादा फरक नहीं पड़ता। क्यों की आधे से ज्यादा मरीजों को बीमारी होती ही नहीं बस उस बीमारी को गाढ़ा जाता है। वैश्विक स्वास्थ्य मापदंडो से परिभाषित ये बीमारिया जरुरी नहीं की सबको हो।
लेकिन हमारा यानि भारत का चिकित्सीय विज्ञान पश्चिम की रिसर्च और रिपोर्ट के अनुसार ही चलता है। जिसके चलते नकली दवा के चलते भी प्लेसिबो इफ़ेक्ट भी अपना काम करता है
(नोट – प्लेसिबो इफेक्ट यानि दवा के बदले सिर्फ किसी और विकल्प जो दवा या इलाज से जुड़ा न हो फिर भी मरीज की बीमारी या हालत में सकारात्मक बदलाव देखने को मिले उसी प्रभाव को प्लेसिबो इफ़ेक्ट कहा गया है। जिसका कारण आज तक वैज्ञानिक नहीं पता कर पाए )
दरअसल में पूर्ण रूप से विज्ञान पर आधारित पश्चिमी चिकित्सीय औषधी प्रणाली भी भारतीय आयुर्वेद की तरह मान्यताओं पर ही आधारित है। जिसको दिखावा वैज्ञानिक रूप से होता है। जबकि ये होती मान्यताओं के आधार पर ही होती है। इनका वैज्ञानिक या तथ्य पूर्ण होना और दिखावा होना एक व्यापारिक वैश्विक षड्यंत्र जैसा ही है।
इसी साल 2 मार्च को वाराणसी में नकली दवा कारोबारी की गिरफ्तारी हुई। जिसके अंतर्गत कई नामी ब्रांड की दवाइयां पकड़ी गई जो हिमाचल के बद्दी से बनवाई गई थी। और करीब 7 करोड़ रूपए की दवा को जप्त किया गया। जिनको पश्चिम बंगाल और बिहार के ग्रामीण और छोटे शहरों में खपना था।
25 अप्रेल 2023 को UPSTF ने वाराणसी के ड्रग सिंडिकेट पर कार्यवाही करते हुवे 25 लाख तक की नकली जीवन रक्षक दवाओं की खेप पकड़ी व कई लोगो को गिरफ्तार किया।
13 मई उत्तराखंड की नैनीताल है कोर्ट ने नकली दवा बनाने और नकली दवा कारोबार में आजीवन कारावास देने का कानून बनाने की वकालत की थी। फ़िलहाल तक कुछ हो नहीं पाया है।
28 मई गाजियाबाद (उत्तरप्रदेश )पुलिस और औषधि विभाग द्वारा 50 लाख की नकली दवाये पकड़ी गई।
20 जून 2023 को ही स्वास्थ्य मंत्री श्री मनसुख मंडाविया ने गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में कफ सीरप से हुई बच्चो के मामले में 71 दवा निर्माताओं को कारण बताओ नोटिस दिया तथा 18 को बंद करने की शिफारिश की गई। लेकिन अभी तक कोई सार्थक कदम उठाये गए है इसकी जानकारी सार्वजानिक मंचों पर नहीं की गई है।
9 जुलाई 2023 आगरा में फैक मेडिसिन बनाने वाली फेक्ट्री का भांडा फोड़ पुलिस द्वारा किया गया। जहा एक कोचिंग इंस्टीटूट और बारात घर की आड़ में कई महीनो से नकली दवा बनाने की फैक्टरी पकड़ी गई। पुलिस सूत्रों के अनुसार अब तक इन लोगो ने 300 करोड़ की नकली दवाये बाजार में खपा दी है।
26 अगस्त 2022 को देहरादून (उत्तराखंड ) से भी नकली दवा बनाने व बेचने वाले गिरोह का पर्दा फाश करते हुवे पुलिस ने करीब 40 करोड़ के नकली दवा के कारोबार को गिरफ्त में लिया।
नकली दवाये छोटे शहरो और गाँवो में झोलाछाप चिकित्सको और दुकानों द्वार भारी मात्रा में बेचीं जा रही है। खुद कई दवा निर्माता इस नकली दवा के व्यापार में लिप्त है। सरकारो के ही खास करीबी भी इस व्यापर में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल है। जिसके चलते कार्यवाहियां तो हुई है लेकिन अपराधियों को कोई सजा नहीं हुई या नाम मात्र सजा के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया है।
हालाँकि केंद्र व अलग अलग राज्य सरकारों की तरफ से हर एक धरपकड़ के बाद कई तरह की घोषणाएं व कानून बनाने की बाते तो होती है और एक दिन या दो दिन अखबारों के भीतरी पन्नो में ये खबरे पढ़ी जा सकती है की फलां सरकार ने फैक मेडिसिन को रोकने के लिए ये सुरक्षा कदम उठाये है या चिकित्सको को जेनरिक दवा लिखने के लिए कानून बनाया है ,या नियम बनाया है जो एक दो दिन जनता में सुर्खिया तो बटोर लेता है लेकिन धरातल पर कुछ नहीं होता। भारत की जनता उम्मीदों पर ही जीती आई है। और जीती रहेगी। लेकिन किसी भी तंत्र या सिस्टम में बदलाव नहीं हुवा है।