ब्लॉग
गैस्ट्रोपैरेसिस बचाव ही इलाज है।
गैस्ट्रोपैरेसिस यानी एक तरह का पेट (आमाशय )का पक्षाघात होता है।
गैस्ट्रोपैरेसिस आमतौर पर बुजुर्गो की बीमारी मानी जाती थी।
आज के दौर में यह जवान और बच्चो में भी देखने को मिलती है। जिसकी वजह जंक फ़ूड और खाद्य प्रदार्थो में शामिल प्रिजर्वेटिव्स और वो फ़ूड एडिटिव है जिनका मुख्य उद्देश्य फ़ूड को सरंक्षित करना है। शरीर को इनसे कोई फायदा नहीं बल्कि गैस्ट्रोपैरेसिस जैसे जीवनशैली रोग ही उत्पन्न होते है।
जब भी हम कुछ खाते है तो उसकोपचाने के लिए आमाशय एसिड बनाता है तथा इस में बाइल और अन्य पाचक एंजाइम भोजन को पचाने की कोशिश करते है। एक निश्चित अवधि के बाद भोजन आमाशय से निकल कर छोटी आंत में आता है। इसे आमाशय पाचन अवधि (stomach digestion period ) कहते है। जो आहार अनुसार 3 से 6 घंटे का हो सकता है। यह भोजन के प्रकार और व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है।
गैस्ट्रोपैरेसिस में आमाशय के संकुचन करने वाली मांसपेशियां धीरे धीरे कमजोर हो जाती है।जिससे यह अवधि और ज्यादा बढ़ जाती है। तथा भोजन अमाशय में ठोस या तरल अवस्था में ही बना रहता है और छोटी आंत में जा नहीं पाता है। ऐसे में उल्टी मित्तली ,भूख न लगना ,गैस ,अपच जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है। कई बार इसे ही फ़ूड पॉइज़निंग समझ लिया जाता है। तथा घरेलु उपचार या बिना किसी विशेषज्ञ के इसका इलाज घर में ही शुरू कर दिया जाता है ,जो समस्या को और भी गंभीर बना सकता है।
पेट के संकुचन को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार मांसपेशियों या तंत्रिकाओं में शिथिलता के कारण गैस्ट्रोपैरेसिस उत्पन्न होता है। यह हानि पेट से छोटी आंत में भोजन की सामान्य गति को बाधित करती है, जिससे मतली, उल्टी, सूजन और पेट दर्द जैसे लक्षण होते हैं। जबकि गैस्ट्रोपैरेसिस का सटीक कारण अलग-अलग हो सकता है, निम्नलिखित कारकों को संभावित योगदानकर्ताओं के रूप में पहचाना गया है।
मधुमेह मेलेटस: गैस्ट्रोपैरेसिस का सबसे आम कारण मधुमेह तो होता ही है साथ ही मधुमेह के इलाज या शरीर का ग्लूकोज को नियंत्रित करने वाली दवाओं से भी हो जाता है, विशेष रूप से टाइप 2 मधुमेह। उच्च रक्त शर्करा का स्तर पेट के संकुचन को नियंत्रित करने वाली नसों को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे गैस्ट्रिक खाली होने में देरी हो सकती है।
साथ ही जंक फ़ूड व हाई शुगर फ़ूड व ड्रिंक से भी गैस्ट्रोपैरेसिस हो सकता है। मादक प्रदार्थ भी इसमें अपनी भूमिका रखते है। विशेष कर शराब और नशे की दवाओं से बहुत अधिक सम्भावना बढ़ जाती है।
कुछ मामलों में, गैस्ट्रोपैरेसिस बिना किसी स्पष्ट पहचान योग्य कारण के होता है, जिसे इडियोपैथिक गैस्ट्रोपेरेसिस कहा जाता है। यह पेट की गतिशीलता को नियंत्रित करने वाली तंत्रिकाओं की क्षति या गैस्ट्रिक संकुचन के लिए जिम्मेदार मांसपेशियों में असामान्यताओं के परिणामस्वरूप हो सकता है।
सर्जरी के बाद गैस्ट्रोपैरेसिस: पेट या ऊपरी जठरांत्र संबंधी मार्ग से जुड़ी सर्जरी, जैसे गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी, कभी-कभी गैस्ट्रोपैरेसिस का कारण बन सकती है। यह स्थिति अस्थायी या स्थायी हो सकती है, जो तंत्रिका या मांसपेशियों की क्षति की सीमा पर निर्भर करती है।
गैस्ट्रोपैरेसिस एक धीरे धीरे होने वाली जीवनशैली बीमारी है। और इसका कोई निश्चित इलाज नहीं है। आमतौर पर इसके मरीज को भी यह तब ही पता चलती है जब तक की यह अपने चरम पर नहीं पहुंच जाए। ऐसे में कई मरीजों के लिवर और आंते बुरी तरह प्रभावित हो जाती है और मरीज कुपोषण का शिकार हो जाता है।और धीरे धीरे मरीज को और भी गंभीर बीमारियां हो जाती है।
गैस्ट्रोपैरेसिस को शुरुवात से ही गंभीरता से लिया जाये तो यह स्थिति बनाने से रोकी जा सकती है। अगर आपको भी बार बार गैस ,अपच या पेट संबंधी दिक्क़ते आ रही है तो तुरंत अपने चिकित्सक से संपर्क करे। और गैस व एसिडिटी की रोकथाम के लिए आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल करे। हल्का व सुपाच्य भोजन करे ,जंक फ़ूड को त्याग दे ,शुगरी सोडा व कोल्ड ड्रिंक ना पीये ,बॉडीबिल्डिंग के लिए प्रोटीन व अन्य हेल्थ सप्लीमेंट का उपयोग न करे। याद रखिये गैस्ट्रोपैरेसिस को टाला जा सकता है। लेकिन इसका इलाज थोड़ा बहुत ही संभव है। और उसमे भी आपको उपरोक्त खाद्य प्रदार्थो को छोड़ना ही पड़ेगा।