सच का सामना
फूड सेफ्टी और चिकित्सा विभाग की जांच , बोतल बंद पानी के 43 नमूनों में से 16 फेल
भास्कर रिपोर्ट: जयपुर
गर्मी की शुरुआत के साथ ही पानी का काराेबार भी जोर पकड़ने लगता है। प्रदेश में बिना लाइसेंस के बेचा जा रहा बोतल बंद पानी मानकों पर खरा नहीं उतर रहा है। हाल ही फूड सेफ्टी एंड ड्रग कमिश्नरेट की ओर से लिए गए पानी के 43 नमूनों में से 16 फेल हो गए। लिए गए पानी के नमूनों में बदबू थी और साफ-सुथरे भी नहीं थे। चौंकाने वाली बात ये है कि फ्लेवर, कूपर और मिनरल वाटर के नाम से बिकने वाले पानी की लैबलिंग में भी गड़बड़ी है।
लेबल में निर्माण तिथि, एक्सपायरी डेट, पीएच, टीडीएस की मात्रा तक अंकित नहीं की गई, जिसे विभाग ने गंभीरता से लिया है। गर्मी में उल्टी-दस्त, आंतों का संक्रमण, टाइफाइड व हैजा होने का खतरा है। अधिकारियों ने माना है कि निर्माता कंपनियां मानकों की अनदेखी कर रही है। प्रदेश में 131 निर्माता कंपनियों के पास लाइसेंस हैं, इनमें जयपुर जिले की 31 कंपनियां शामिल हैं। सवाल यह उठता है कि पानी का कारोबार सबसे ज्यादा हो रहा है, जबकि लाइसेंस लेने वालों की संख्या कम है। इससे साफ है कि प्रदेश में बिना लाइसेंस के ही बोतल बंद पानी की पैकिंग कर बेचा जा रहा है। नियमानुसार बीआईएस मार्का लाइसेंस देने का काम भारतीय मानक ब्यूरो का है, जबकि किसी तरह की कार्यवाही करने की जिम्मेदारी खाद्य सुरक्षा विभाग की होती है, लेकिन मार्का में किसी तरह की गड़बड़ी होने पर मानक ब्यूरो कार्रवाई करता है।
शहर में 31 कंपनियां लाइसेंसधारी, फिर भी आ रहा अमानक पानी
खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की टीम ने जयपुर, अजमेर, जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर, सवाईमाधोपुर, कोटा, सीकर, झुन्झुनंू, भरतपुर में बोतल बंद पानी के 43 नमूने लिए थे। जांच रिपोर्ट के नतीजे सामने आने के बाद गर्मियों में पानी की खपत को देखते हुए संबंधित अधिकारियों को लगातार सैंपलिंग करने के निर्देश दिए गए हैं।
वह सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं
बोतल बंद पानी में तैरते कण यानि फॉरेन पार्टिकल और साफ-सुथरे नहीं होने से उल्टी-दस्त, गेस्ट्रोएंट्रोटाइटिस, टाइफाइड, हैजा जैसी अनेक बीमारियों की गिरफ्त में आ सकते हैं। विशेषकर गर्मियों के दिनों में तो ऐसे पानी से बीमार होना तय है।
लोगों की सेहत से जुड़ा मामला है। यदि किसी कंपनी का पानी गड़बड़ है तो इसे पीने वाले के शरीर को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। लाइसेंस देने वाले और मिलावट रोकने की जिम्मेदारी वाले विभाग को विशेष अभियान चलाना चाहिए।
निर्माता कंपनियों के पास बीआईएस मार्का होना अनिवार्य है, लेकिन अधिक फीस होने के कारण गली निकाल रखी है।
भास्कर एक्सपर्ट पैनल : डॉ.सुधीर भंडारी, डॉ.एस.एस.शर्मा व डॉ. पुनीत सक्सेना)
प्रदेश में चिकित्सा विभाग की जांच में वर्ष-2022 में 53% बोतल बंद पानी मिलावटी मिला। प्रदेशभर से लिए गए 28 सैंपल में से 15 फेल हो गए। जिसमें मिसब्रांड व सबस्टैंडर्ड कैटेगरी शामिल है।